Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

दंतेवाड़ा: ग्राम मासोड़ी की महिलाओं को हो रहा है बटेर पालन से फायदा

Default Featured Image

(सफलता की कहानी)

बदलता दंतेवाड़ाः- नई तस्वीर

बटेर पालन से बेहतर बनी जिंदगी

दंतेवाड़ा, 08 जून 2023।

पशुपालन संबंधित आजीविका मूलक गतिविधियों एवं व्यवसायों में गाय, बकरी, सुकर पालन, कुक्कुट एवं बतख पालन सदैव ही लाभ देने वाले व्यवसायों के रूप में अग्रणी रहें हैं। बदलते दौर में अब बटेर पालन भी एक स्वरोजगार के विकल्प के रूप में उभर रहा है। इस कड़ी में जिले में बटेर पालन को बढ़ावा देने में कृषि विज्ञान केन्द्र दंतेवाड़ा की अहम भूमिका अदा कर रहा है, इसके चलते स्थानीय स्व सहायता समूह की महिलाएं भी बटेर पालन करके अपने लिए रोजगार के विकल्प के रूप में इस व्यवसाय को अपना रही हैं। ब्लॉक दंतेवाड़ा अंतर्गत ग्राम मासोड़ी निवासी महिला उत्थान समूह की अध्यक्ष श्रीमती पार्वती मौर्य और सदस्य महिलाएं भी पिछले 4 महीनों से बटेर पालन व्यवसाय से जुड़ी हुई हैं। इस क्रम में श्रीमती मौर्य बताती है कि बटेर पालन मुर्गी पालन से मिलता जुलता व्यवसाय है, वहीं इसके पालन से खर्च कम और मुनाफा ज्यादा है। शुरुआत में कृषि विज्ञान केन्द्र गीदम से बटेर पालन ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद समूह की महिलाओं को कृषि विज्ञान केन्द्र की ओर से बटेर के 100 चूजे दिए गए। और 1, 2 माह के अंदर ही चूजों के वजन में वृद्धि और विकसित होने के साथ वे बिक्री की स्थिति में आ जाते हैं। वर्तमान बाजार मूल्य के मुताबिक एक नग बटेर की कीमत 80 रुपए है तथा इसकी जोड़ी 180 रुपए प्रति नग में उपलब्ध की जा रही है। उन्होंने आगे बताया कि अब बटेर खरीदने के लिए लोग दंतेवाड़ा, फरसपाल, गीदम तथा आलनार से भी आते है, अभी उनके शेड में 20 बटेर शेष बचे हैं। उनका कहना था कि बटेर पालन का व्यवसाय कम स्थान, कम समय व कम लागत से शुरू किया जा सकता है। यही कारण है कि उनके समूह को इस व्यवसाय से जुड़ने में थोड़ा ही समय हुआ है और इस अल्प समय में ही इस व्यवसाय के प्रति किसानों व उपभोक्ता दोनों का अच्छा उत्साह वर्धक प्रतिसाद मिल रहा है। इस प्रकार अभी तक स्व सहायता समूह के द्वारा 5 हजार रुपए तक की बटेर की विक्रय हो चुकी है, साथ ही बटेर के लिए दाना वगैरह भी केवीके के माध्यम से मिल जाता है और बटेर के अंडे को समूह की महिलाएं वापस कृषि विज्ञान केंद्र में पहुंचा देती है जहां उन्हें फिर से चूजा दिया जाता है। स्नातक शिक्षित श्रीमती मौर्य ने यह भी बताया कि वे पहले से ही वे कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़कर कार्य कर रही है। इसके अलावा उनका समूह सीजन में मशरूम उत्पादन का कार्य भी करता है जिससे भी उनको अच्छी आमदनी मिल जाती है।

बटेर पालन है फायदेमंद व्यवसाय

बटेर पालन के संदर्भ में कृषि विज्ञान केन्द्र के श्री अनिल ठाकुर ने बताया कि बटेर के एक अंडे का वजन 10 ग्राम तथा मुर्गी के अंडे का वजन 55 ग्राम का होता है परंतु मुर्गी के अंडे के अनुपात में बटेर के अंडे के पौष्टिक तत्व जैसे जर्दी, सफेदी, कैल्शियम, फास्फोरस, लौह तत्व, विटामिन, प्रोटीन तथा बीटा बी की मात्रा में अधिकता होती है। इसकी पौष्टिकता को देखते हुए बटेर की कीमत मुर्गे की कीमत से ज्यादा होने के बावजूद मांस प्रेमी बटेर के प्रति आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने आगे बताया कि केंद्र में क्रमशः मुर्गी पालन एवं बतख पालन पहले और दूसरे क्रम पर हैं। तथा तीसरे क्रम पर बटेर पालन को लिया गया है। लगभग डेढ़ से दो माह में बटेरों को बाजार में विक्रय किया जा सकता है। साथ ही जितने क्षेत्र में एक मुर्गी-मुर्गे को रखा जाता है। उतने ही क्षेत्र में 8-10 बटेर को पाला जा सकता है। एक बटेर लगभग दो से ढाई किलो दाना खपत करता है और इससे 300 ग्राम मांस प्राप्त होता है जो पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है। इस कारण इसका मांस मुर्गे की अपेक्षा महंगा भी बिकता है। एक बटेर छह-सात सप्ताह में अंडे देने शुरू कर देती है। वर्ष भर में बटेर का पांच से छह बार पालन कर उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। बटेर के अंडे का वजन उसके वजन का आठ प्रतिशत होता है जबकि मुर्गी का तीन प्रतिशत ही होता है। बटेर में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने के कारण इसमें बीमारियों का प्रकोप न के बराबर होता है। फिर भी समय-समय पर चिकित्सक की सलाह के साथ बटेर पालन शेड की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना जरूरी भी होता है। कुल मिलाकर ग्राम मासोड़ी की श्रीमती पार्वती, गीता, सविता, संगीता, सुंदरी, लखमी जैसी महिलाएं आज बटेर पालन व्यवसाय करते हुए अपने लिए नई राह बनाई है वह निश्चय ही घरों की चारदीवारी और मजदूरी करने तक सीमित रहने वाली ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत है।