वाराणसी सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत में लंबित ज्ञानवापी प्रकरण में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को वाद मित्र बनाए जाने के मुद्दे पर शनिवार को लगभग दो घंटे तक बहस हुई। इसके बाद अदालत ने अपना आदेश आठ मार्च तक सुरक्षित रख लिया। ज्ञानवापी स्थित प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की तरफ से अदालत ने पैरवी के लिए विजय शंकर रस्तोगी को वाद मित्र नियुक्त किया है। इस बीच, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से आवेदन देकर कहा गया कि काशी विश्वनाथ मंदिर की तरफ से उन्हें वाद मित्र रखा जाए। इस बाबत उनके पास काफी अहम जानकारियां और साक्ष्य हैं, जो मुकदमे के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे।स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की अर्जी का वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने विरोध किया। उन्होंने कहा कि भगवान विश्वेश्वरनाथ की तरफ से पहले से ही वह वाद मित्र हैं। एक ही मामले में दूसरा वादमित्र नहीं रखा जा सकता है।
जबकि अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से दलील दी गई कि वह देवता के भक्त हैं। वाद मित्र रखे जाने से भगवान विश्वेश्वरनाथ का पक्ष मजबूत होगा। अन्य पक्षकारों अंजुमन इंतजामिया मसजिद कमेटी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से वाद मित्र रखे जाने का विरोध किया गया।अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आठ मार्च तक आदेश सुरक्षित कर लिया। गौरतलब है कि इस मुद्दे पर निर्णय आने के बाद अदालत में ज्ञानवापी परिसर के पुरातात्विक सर्वेक्षण, पूजापाठ और जीर्णोद्धार संबंधी वर्ष 1991 से लंबित मुकदमे की सुनवाई शुरू होगी।
वाराणसी सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी की अदालत में लंबित ज्ञानवापी प्रकरण में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को वाद मित्र बनाए जाने के मुद्दे पर शनिवार को लगभग दो घंटे तक बहस हुई। इसके बाद अदालत ने अपना आदेश आठ मार्च तक सुरक्षित रख लिया।
ज्ञानवापी स्थित प्राचीन मूर्ति स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वरनाथ की तरफ से अदालत ने पैरवी के लिए विजय शंकर रस्तोगी को वाद मित्र नियुक्त किया है। इस बीच, स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की तरफ से आवेदन देकर कहा गया कि काशी विश्वनाथ मंदिर की तरफ से उन्हें वाद मित्र रखा जाए। इस बाबत उनके पास काफी अहम जानकारियां और साक्ष्य हैं, जो मुकदमे के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की अर्जी का वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने विरोध किया। उन्होंने कहा कि भगवान विश्वेश्वरनाथ की तरफ से पहले से ही वह वाद मित्र हैं। एक ही मामले में दूसरा वादमित्र नहीं रखा जा सकता है।
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