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जनता कर्फ्यू के एक साल: ऐसी थी बेबसी की भूखे प्यासे ही निकल पड़े थे अपनों के पास जाने के लिए

वीरेंद्र शर्मा, नोएडावैश्विक महामारी कोरोना वायरस की वजह से दुनिया के लोगों को आज भी परेशानी झेलनी पड़ रही है। कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए 22 मार्च 2020 को देशभर में जनता कर्फ्यू लगा दिया गया। जिसके बाद सड़कों पर सन्नाटा पसर गया और लोग घरों में कैद हो गए। जिंदगी थम सी गई। शहर से लेकर गांव की सड़कें भी वीरान हो गई थीं। दिल्ली-एनसीआर में कारोबार और कंपनी बंद होने के बाद मजदूरों पर दोहरी मार पड़ी थी। नोएडा में ही लाखों लोग बेरोजगार हो गए। उनके सामने मकान का किराया देना तो दूर खाने के भी लाले पड़ गए थे।लॉकडाउन में ट्रेनें और बसें बंद होने के बाद लाखों की संख्या में लोग पैदल ही अपने घर की तरफ निकल लिए। इंडियन इंडस्ट्री एसोसिएशन (आईआईए) के अध्य़क्ष विशारद गौतम ने बताया कि गौतमबुद्ध नगर में 20 हजार से ज्यादा छोटी और बड़ी कंपनियां हैं। जिनमें 6 लाख से ज्यादा मजदूर हैं। शहर में लाखों मजदूर दिहाड़ी पर काम करते है। लॉकडाउन की वजह से उनके पास खाने और रहने तक के पैसे नहीं रहे। अपनों से मिलने के लिए मजदूरों का हुजूम उमड़ पड़ा। उस दौरान महिलाएं, बच्चों के अलावा नौजवान तक भी भूखे प्यासे अपने घर की तरफ निकल पड़े। अपने घर जा रहे मजदूरों पर पुलिस ने भी उस दौरान लाठियां तक भांजी थीं। बेबसी सड़कों पर खाने-पीने के लिए कुछ नहीं।Bihar News : लॉकडाउन की बरसी पर पिछला साल याद कर रहे बिहार वाले, ‘दिक्कत तो थी लेकिन जान से बढ़कर नहीं’उड़ती रही थीं अफवाएंनोएडा में पूर्वांचल यूपी के साथ बिहार और अन्य राज्यों के लाखों लोग रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान कई बार नोएडा दिल्ली बॉर्डर, कौशांबी-आनंद विहार, गाजीपुर बॉर्डर से बस चलने की अफवा फैली। बॉर्डर पर नोएडा के अलावा दिल्ली, हरियाणा से भी लाखों लोग पहुंच गए। इन्हें संभालने के लिए पुलिस को लाठियां तक भांजनी पड़ी थी। साथ ही नोएडा में स्कूल, कॉलेज और अन्य सरकारी बिल्डिंगों में रैन बसेरे बनाए गए। जहां अपने घर जा रहे लोगों को रखा गया। हालांकि, मजदूरों की भीड़ को देखते हुए सरकार ने बसें तक भी चलाई थीं।कोरोना का दंश अब भी हैआईआईए के अध्यक्ष विशारद गौतम का कहना है कि लॉकडाउन के बाद से अभी तक भी कंपनियां घाटे में चल रही हैं। हालांकि, मजदूर लौटने लगे हैं। लेकिन अभी भी ट्रॉसपोर्ट की सुविधा न होने की वजह से रॉ मैटेरियाल लाने के लिए भी भार अधिक पड़ रहा है। वहीं, नौकरी करने वालों को भी अधिक जेब ढीली करनी पड़ रही है।