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Sultanpur News: सत्ताधारियों से टकराव पड़ा महंगा, 48 घंटे में हुआ ट्रांसफर, मातहत की बचाने में खुद की कुर्सी गंवा बैठे सुलतानपुर SP

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असगर, सुलतानपुरप्रदेश में शुक्रवार को कई जिलों के कप्तान बदले गए हैं। जनवरी में सुलतानपुर और प्रतापगढ़ के एसपी को हटाकर नए कप्तान तैनात किए गए। ढाई माह पूरे हुए तो दोनों जगह शुक्रवार को फिर कप्तान बदल दिए गए। प्रतापगढ़ की कमान संभालने वाले शिव हरी मीणा को हटाने की वजह मां के देहांत को लेकर उनकी लंबी छुट्टी बताई जा रही, जबकि जनवरी माह के शुरुआत में बाराबंकी से सुलतानपुर आए कप्तान डॉ. अरविंद चतुर्वेदी का ट्रांसफर भाजपाइयों से टकराव बना। सरकारें ये फैसले तब ले रही हैं, जब देश की शीर्ष अदालत का आदेश है कि एक जिले या एक पोस्ट पर कम से कम दो साल की तैनाती दी जाए, जब तक कोई गंभीर आरोप या भ्रष्टाचार की शिकायत न हो।गोसाईंगंज पुलिस ने बीजेपी नेता और उनके समर्थक को भेजा था जेलवैसे गुरुवार से ही जिले में इस बात की सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि सत्ताधारियों से टकराव कप्तान डॉ. अरविंद चतुर्वेदी की कुर्सी पर असर हो सकता है। आखिर जिस बात का कयास लगाया जा रहा था। शुक्रवार जब शासन से कप्तान के तबादलों की सूची जारी हुई तो उस पर मुहर लग गई। दरअस्ल, कप्तान अरविंद चतुर्वेदी और भाजपाइयों में तना-तनी मंगलवार को तब हुई, जब जिले के गोसाईंगंज थाने की पुलिस ने पूर्व प्रधान एवं बीजेपी नेता रमेश शर्मा समेत 6 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। पुलिस ने बीजेपी नेता और उसके साथियों पर पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के सुपरवाइजर की तहरीर पर मुकदमा दर्ज किया था। आरोप लगा था कि मिट्टी ढुलाई के काम में बीजेपी नेता रंगदारी मांग रहे हैं।UP Panchayat Chunav 2021: यूपी में पंचायत चुनाव से पहले आईपीएस अधिकारियों के बंपर ट्रांसफर, देखें लिस्टबीजेपी का प्रतिनिधि मंडल एसपी से था मिलापुलिसिया कार्रवाई के बाद ये मामला राजनीतिक रूप ले लिया था। बुधवार को बीजेपी जिलाध्यक्ष डॉ. आरए वर्मा, सांसद प्रतिनिधि रणजीत सिंह, सुलतानपुर विधायक सूर्यभान सिंह, कादीपुर विधायक राजेश गौतम और लंभुआ विधायक देवमणि द्विवेदी और अन्य प्रतिनिधि डीएम-एसपी से मिले थे। भाजपाइयों ने गोसाईंगंज थाने के प्रभारी पर जबरिया कार्रवाई का आरोप लगाया था। साथ ही ये भी आरोप मढ़े थे कि थानाध्यक्ष गैर कानूनी कृत्य करा रहे हैं। लेकिन एसपी ने बात को सुना अनसुना कर दिया और शिकायत के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया। नतीजा ये हुआ कि मातहत की कुर्सी बचाने में उनकी खुद की कुर्सी चली गई।