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दुधवा टाइगर रिजर्व की शान बंगाल फ्लोरिकन खतरे में

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बेहद धीमी गति से संख्या में बढ़ोतरी को लेकर चिंतित हैं वन्यजीव विशेषज्ञ
बांकेगंज। बंगाल फ्लोरिकन पक्षी दुधवा टाइगर रिजर्व की शान है। इस पक्षी के संरक्षण और संवर्धन के काफी प्रयास किए जा रहे हैं, बावजूद इसके बेहद धीमी गति से इनमें हो रही बढ़ोतरी को लेकर वन्यजीव चिंतित हैं। यहां बता दें कि दुधवा पार्क प्रशासन पिछले कुछ वर्षों से दुधवा के पर्यटन में बंगाल फ्लोरिकन की ब्रांडिंग भी कर रहा है।लुप्त हो रहे बंगाल फ्लोरिकन को शेड्यूल वन की श्रेणी में रखा गया है। यह दुर्लभ प्रजाति के 17 पक्षियों में से एक है। इसे स्थानीय भाषा में चरस भी कहते हैं। दुधवा टाइगर रिजर्व बंगाल फ्लोरिकन का प्राकृतिक आवास है।विशेषज्ञों के मुताबिक, बंगाल फ्लोरिकन और गैंडों के प्राकृतिक आवास में काफी समानता देखने को मिलती है। बंगाल फ्लोरिकन पूरे उत्तर प्रदेश में सिर्फ दुधवा टाइगर रिजर्व में पाया जाता है। इसके अलावा एक-दो की संख्या में पीलीभीत टाइगर रिजर्व में दिखाई पड़ते हैं। दुधवा टाइगर रिजर्व में मौजूदा समय में बंगाल फ्लोरिकन की संख्या 60 से 70 के बीच बताई जाती है।वर्ष 1985 से 1989 के बीच बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के अध्ययन में दुधवा नेशनल पार्क में कुल 40 बंगाल फ्लोरिकन पक्षी पाए गए थे। 1991 से 1995 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर वाइल्ड लाइफ एंड एंश्रोलॉजी विभाग और पार्क अधिकारियों के अध्ययन में दुधवा नेशनल पार्क में 25 नर बंगाल फ्लोरिकन दिखाई दिए थे। इससे अनुमान लगाया गया कि उस समय यहां 50 बंगाल फ्लोरिकन होंगे। क्योंकि इनमें नर मादा का अनुपात 1:1 रहता है। वैसे बबड़ी घास में उड़ान भरकर छिप जाने से फिर नीचे तेजी से एक जगह से दूसरी जगह दौड़ जाने के कारण इनकी गणना करना बहुत ही मुश्किल काम है।बंगाल फ्लोरिकन दुधवा नेशनल पार्क के सोनारीपुर फांटा, गड़ैय्या फांटा, गैंडा क्षेत्र, भादीताल फांटा, बेलरायां रेंज के ग्रासलैंड और किशनपुर सेंक्चुरी के झादीताल एरिया में फरवरी से अप्रैल के बीच अक्सर दिखाई देते हैं। यही समय दुधवा के पर्यटन का होता है। पक्षी प्रेमी, सैलानी और विशेषज्ञ बंगाल फ्लोरिकन के दीदार करने को लालायित रहते हैं।वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. वीपी सिंह और अशोक कश्यप का कहना है कि जंगल में आग लगने से घास के मैदानों को काफी नुकसान होता है, जिससे बंगाल फ्लोरिकन के प्राकृतिक आवास को काफी क्षति पहुंचती है।
धीमी होती है बंगाल फ्लोरिकन के प्रजनन की गति
बंगाल फ्लोरिकन के प्रजनन की गति काफी धीमी है। यही कारण है कि इनकी संख्या में उतनी वृद्धि नहीं हो रही है जितनी कि अन्य पक्षियों की। दुधवा टाइगर रिजर्व की स्थापना के बाद बंगाल फ्लोरिकन की संख्या में गुणात्मक वृद्धि न होना इस बात का प्रमाण है।
ऊंची लंबी घास बंगाल फ्लोरिकन का पसंदीदा प्राकृतवास
बंगाल फ्लोरिकन प्राय: लंबी घास के बीच रहना पसंद करते हैं। दुधवा टाइगर रिजर्व में कई ऐसे घास के मैदान हैं जहां नरकुल घास प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। यह मध्य फरवरी से अप्रैल मध्य तक अक्सर घास के मैदान की पगडंडियों पर विचरण करते दिखाई देते हैं। साल के दस अन्य महीनों में यह नहीं दिखाई पड़ते। इन दस महीनों में इनकी गतिविधियों का पता लगाने के लिए शोध किया जा रहा है।

बेहद धीमी गति से संख्या में बढ़ोतरी को लेकर चिंतित हैं वन्यजीव विशेषज्ञ

बांकेगंज। बंगाल फ्लोरिकन पक्षी दुधवा टाइगर रिजर्व की शान है। इस पक्षी के संरक्षण और संवर्धन के काफी प्रयास किए जा रहे हैं, बावजूद इसके बेहद धीमी गति से इनमें हो रही बढ़ोतरी को लेकर वन्यजीव चिंतित हैं। यहां बता दें कि दुधवा पार्क प्रशासन पिछले कुछ वर्षों से दुधवा के पर्यटन में बंगाल फ्लोरिकन की ब्रांडिंग भी कर रहा है।

लुप्त हो रहे बंगाल फ्लोरिकन को शेड्यूल वन की श्रेणी में रखा गया है। यह दुर्लभ प्रजाति के 17 पक्षियों में से एक है। इसे स्थानीय भाषा में चरस भी कहते हैं। दुधवा टाइगर रिजर्व बंगाल फ्लोरिकन का प्राकृतिक आवास है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, बंगाल फ्लोरिकन और गैंडों के प्राकृतिक आवास में काफी समानता देखने को मिलती है। बंगाल फ्लोरिकन पूरे उत्तर प्रदेश में सिर्फ दुधवा टाइगर रिजर्व में पाया जाता है। इसके अलावा एक-दो की संख्या में पीलीभीत टाइगर रिजर्व में दिखाई पड़ते हैं। दुधवा टाइगर रिजर्व में मौजूदा समय में बंगाल फ्लोरिकन की संख्या 60 से 70 के बीच बताई जाती है।

वर्ष 1985 से 1989 के बीच बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के अध्ययन में दुधवा नेशनल पार्क में कुल 40 बंगाल फ्लोरिकन पक्षी पाए गए थे। 1991 से 1995 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर वाइल्ड लाइफ एंड एंश्रोलॉजी विभाग और पार्क अधिकारियों के अध्ययन में दुधवा नेशनल पार्क में 25 नर बंगाल फ्लोरिकन दिखाई दिए थे। इससे अनुमान लगाया गया कि उस समय यहां 50 बंगाल फ्लोरिकन होंगे। क्योंकि इनमें नर मादा का अनुपात 1:1 रहता है। वैसे बबड़ी घास में उड़ान भरकर छिप जाने से फिर नीचे तेजी से एक जगह से दूसरी जगह दौड़ जाने के कारण इनकी गणना करना बहुत ही मुश्किल काम है।

बंगाल फ्लोरिकन दुधवा नेशनल पार्क के सोनारीपुर फांटा, गड़ैय्या फांटा, गैंडा क्षेत्र, भादीताल फांटा, बेलरायां रेंज के ग्रासलैंड और किशनपुर सेंक्चुरी के झादीताल एरिया में फरवरी से अप्रैल के बीच अक्सर दिखाई देते हैं। यही समय दुधवा के पर्यटन का होता है। पक्षी प्रेमी, सैलानी और विशेषज्ञ बंगाल फ्लोरिकन के दीदार करने को लालायित रहते हैं।