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किसान आंदोलन का कितना पड़ेगा असर, ग्रामीण इलाकों में अभी से महसूस हो रही तपिश

कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुए किसान आंदोलन को चार महीने बीत चुके हैं। इसका हल निकलता नहीं दिख रहा है। अब देखना होगा कि यूपी चुनाव में किसान आंदोलन का कितना असर पड़ेगा।  ग्रामीण क्षेत्रों में अभी से इसकी तपिश दिखाई दे रही है। एक तरफ भाजपा नेताओं का उनके अपने ही क्षेत्रों में विरोध शुरू हो गया है। दूसरी ओर भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत पर हमले से किसान और अधिक उग्र हो गए हैं। रविवार को गाजीपुर बॉर्डर पर आयोजित किसानों की महापंचायत में किसानों ने दृढ़ता दिखाई है कि वे कृषि कानूनों की वापसी तक अपना आंदोलन जारी रखने को तैयार हैं।भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने कहा कि सरकार किसान आंदोलन को हिंसक बनाने का प्रयास न करे। अगर किसान नेताओं पर हमले किए गए तो इन हमलों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इनका हर स्तर पर मजबूत विरोध किया जाएगा। सरकार अपनी तरफ से इस तरह की कोई कोशिश न करे, जिसके कारण अब तक अहिंसक रहा आंदोलन किसी गलत रास्ते की तरफ बढ़े। टिकैत ने यह भी साफ करने की कोशिश की कि किसानों का राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं है। वे किसी चुनाव में किसी का समर्थन या विरोध करने के लिए सामने नहीं आएंगे।संभल से गाजीपुर बॉर्डर तक मोटरसाइकिल रैलीभारतीय किसान यूनियन (असली अराजनीतिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी हरपाल सिंह बिलारी ने रविवार को संभल से लेकर गाजीपुर बॉर्डर तक मोटरसाइकिल रैली निकाली। हजारों की संख्या में किसान गाजीपुर बॉर्डर तक पहुंचे और कृषि कानूनों पर आक्रोश प्रकट किया। इस अवसर पर हरपाल सिंह बिलारी ने कहा कि उनका विरोध केवल कृषि कानूनों को लेकर है। पंचायत चुनाव में किसान किसी के पक्ष में जाने या विरोध करने की कोई अपील नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि उनके साथ हर राजनीतिक दल के लोग शामिल हैं। ऐसे में वे किसी दल को सपोर्ट करने या विरोध करने के बारे में अपील नहीं कर सकते।
किसान आंदोलन के चलते भाजपा नेताओं का अपने ही क्षेत्रों में कड़ा विरोध हो रहा है। वे किसानों के विरोध का सामना कर रहे हैं। किसान नेताओं के इनकार के बाद भी माना जा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है।पूर्वी यूपी में पड़ेगा बड़ा असरउत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष विश्वविजय सिंह ने कहा कि यूपी सरकार किसानों के गुस्से को समझने में भारी भूल कर रही है। उसे लग रहा है कि यह विरोध केवल दिखावे तक सीमित रह जाएगा। वह यह आरोप भी लगा रही है कि उत्तर प्रदेश के किसान इस आन्दोलन में बड़ी संख्या में शामिल नहीं हो रहे हैं, लेकिन भाजपा को सत्ता के नशे में यह अनुभव नहीं हो पा रहा है कि इसका बेहद निचले स्तर के किसानों तक पर गहरा असर पड़ रहा है। इसी पंचायत चुनावों में भाजपा को इसका अनुमान भी हो जाएगा।आंदोलन तेज करने में प्रियंका गांधी की बड़ी भूमिकाकिसान आंदोलन को तेज करने में जहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, वहीं उत्तर प्रदेश अध्यक्ष लल्लू सिंह ने बार-बार आंदोलन किया और गिरफ्तारी दी। कांग्रेस किसान आंदोलन को पूर्वी यूपी के निचले इलाकों तक ले जाने की तैयारी कर रही है। पार्टी ने पहले चरण के लिए अपने सभी उम्मीदवारों के नाम की घोषणा भी कर दी है। अगर कांग्रेस की कोशिश कामयाब रहती है तो भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
किसान आंदोलन की सबसे ज्यादा तपिश पश्चिमी उत्तर प्रदेश में महसूस की जा रही है। यहां भाजपा नेता अपने क्षेत्रों में किसानों के कड़े विरोध का सामना कर रहे हैं। मेरठ के कांग्रेस नेता अभिमन्यु त्यागी बताते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान भाजपा से बेहद नाराज है। कृषि कानूनों के प्रति उसके रवैये ने किसानों के अंदर भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ा दी है। भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।
बात केवल कृषि कानूनों तक सीमित नहीं है। किसानों से जुड़े अनेक मुद्दे हैं जो उन्हें लगातार मुश्किल में डाल रहे हैं। हाल ही में उर्वरकों के मूल्यों में भारी बढ़ोतरी हुई है। किसानों को अनाप-शनाप बिजली के बिल भेजे जा रहे हैं। किसानों की गेहूं की फसलों की खरीद पर अभी भी सरकार की नीति स्पष्ट नहीं हुई है तो गन्ना किसानों का बकाया अब तक नहीं मिल पाया है।…तो मंडियों में जड़ देंगे तालेकिसानों ने तय कर लिया है कि अगर गेहूं की खरीद में सरकार कोई लापरवाही बरतती है तो मंडियों में ताले जड़ दिए जाएंगे। गन्ना किसानों का भुगतान नहीं हो पाता है तो वह भी किसानों का गुस्सा बढ़ाने वाला साबित होगा। इन सभी कारणों से भाजपा को किसानों के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है।