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खौफ में बाहुबली: जिनके बल पर मुख्तार अंसारी दुश्मनों से बघारता था शेखी वही उसके लिए पड़ रहे हैं भारी

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पंजाब में पेशी के दौरान बाहुबली मुख्तार अंसाली व्हील चेयर पर
– फोटो : PTI (File Photo)

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उत्तर प्रदेश की बागपत जेल। नौ जुलाई 2018 का दिन पूर्वांचल के लिए महत्वपूर्ण था। पश्चिम उत्तर प्रदेश की जेल में प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी के रूप में एक ऐसे कुख्यात अपराधी की हत्या हो गई, जिसके नाम से जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर का परिक्षेत्र कांपता था। सीधे या परोक्ष रूप से मिली एक धमकी अच्छे-अच्छे धाकड़ों के होश उड़ा देती थी। 90 के दशक से यह भी आम था कि मुन्ना बजरंगी (सुपारी किलर मशीन) मुख्तार के इशारे पर काम करता है और उसके हाथ नहीं कांपते। मुख्तार अंसारी तो एक ऐसा नाम बन चुका था, जिनका डॉन के नाम से मशहूर धरहरा के बृजेश सिंह के सिवा कम लोग सामना करने की सोच पाते थे। अब वही मुख्तार अंसारी आज अपने दुश्मनों के बिछाए जाल के साथ कानून के दायरे में लगातार उलझता जा रहा है। बताते हैं मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद से ही उसके माथे पर बल हैं।
कौन रख सकता था मुख्तार के कंधे पर हाथ?
उत्तर प्रदेश पुलिस को शानदार सेवाएं देने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी रंजन द्विवेदी उन दिनों बनारस में तैनात थे। मुख्तार के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी थी और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में उन्हें प्रमोशन देकर ऐसा करने से रोक दिया गया। दूसरी तैनाती दे दी गई। मुख्तार अंसारी पर पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने पोटा लगाना चाहा, तो उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ी। शैलेन्द्र सिंह ने पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया। उत्तर प्रदेश में कई ऐसे पुलिस अधिकारी और आईएएस वर्तमान तथा रिटायर मिल जाएंगे, जो ऑफ द रिकार्ड अपने हाथ राजनेताओं द्वारा बांध देने के बारे में जानकारी देंगे।उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृजलाल ने हाल में कई बड़े खुलासे किए हैं। हालांकि बृजलाल ने एक बार भी नहीं बताया कि उन्होंने डीजीपी रहते हुए मुख्तार पर शिकंजा क्यों नहीं कसा। मुख्तार पर शिकंजा कसे जाने की दूसरी संभावना तब ज्यादा जोर पकड़ने लगी थी, जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने भदोही से विधायक विजय मिश्रा पर कानूनी कार्रवाई करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य उत्तर प्रदेश के माफिया राज पर बारीकी से नजर रखने वाले मानते हैं कि मुख्तार की सपा और बसपा के राज में चलती थी। उनका राजनीतिक रसूख विरोधियों को घेरने और खुद से जुड़े लोगों को सुरक्षा कवच देने में करीब-करीब सफल रहता था। मुख्तार के इसी राजनीतिक कनेक्शन के जवाब के तौर पर बृजेश सिंह के परिवार और उनके कई करीबी राजनीति में आए। यहां तक कि वाराणसी परिक्षेत्र में दहशत का पर्याय बने बृजेश सिंह ने भी राजनीति के रास्ते को चुन लिया।
मुख्तार के विरोधी राजनीति में
अब मुख्तार अंसारी के धुर विरोधी बृजेश सिंह वाराणसी से एमएलसी हैं। 2016 में वह एमएलसी बने। 2008 में दिल्ली पुलिस ने बृजेश सिंह को भुवनेश्वर से गिरफ्तार किया था। उनके भतीजे और बाहुबली सुशील सिंह चंदौली सैयदराजा सीट से भाजपा के विधायक हैं। सुशील सिंह तीसरी बार विधायक बने हैं। वाराणसी की एमएलसी की सीट चार बार से बृजेश सिंह और उनके पास है। इससे पहले इसी सीट से उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह एमएलसी थीं। इससे पहले दो बार उनके बड़े भाई उदय नाथ सिंह एमएलसी थे। मुख्तार का नाम जिस भाजपा विधायक कृष्णानंद की हत्या में लिया जाता है, उनकी पत्नी अलका राय गाजीपुर के मुहम्मदाबाद से विधायक हैं। कृष्णानंद राय की हत्या ने पूर्वांचल और खासकर मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, बनारस और जौनपुर के भूमिहारों का खून खौला दिया था। माना जा रहा है कि मुख्तार का विरोधी यह खेमा अब मुख्तार के खिलाफ मामलों को खुलवाने, शिकायत करने वालों को आगे लाने तथा राज्य प्रशासन से मुख्तार के खिलाफ मुकदमों की पैरवी में धार लाने की कोशिश में लगा है।
इतना क्यों डर रहे हैं मुख्तार?
कभी माफियाओं के लिए काम करने वाले प्रमुख सूत्र की मानें तो बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या ने अच्छे-अच्छे माफिया को हिलाकर रख दिया। दूसरी बड़ी घटना कानपुर बिकरू गांव के विकास दूबे की मुठभेड़ की है। विकास दूबे पुलिस की गाड़ी पलटने के बाद भागने की कोशिश और जवाबी गोलीबारी में मारा गया, लेकिन माफियाओं के बीच में यह घटना पुलिस द्वारा आत्मसर्मण कर चुके विकास की सुनियोजित हत्या के तौर पर स्थापित है।तीसरी घटना भदोही के विधायक विजय मिश्रा की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ पुलिस की कार्रवाई की है। बताते हैं इलाहाबाद में बाहुबल का पर्याय बने मोहम्मद अतीक जैसे माफिया शांति से जेल में रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। सूत्र का कहना है कि चाहे मोहम्मद अतीक हो या फिर मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इन्हें लेकर बहुत संवेदनशील बने हैं। पिछले एक-दो साल में मुख्तार अंसारी के खिलाफ प्रशासन की कार्रवाई भी इसी का संकेत दे रही है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता तो यहां तक कहते हैं कि जो भी अपराधी हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। चाहे वह कोई भी हों, लेकिन राज्य सरकार को चयनात्मक नहीं होना चाहिए।अब मुख्तार अंसारी के करीबियों को कई तरह की आशंकाएं घेर रही हैं। उसके भाई और सांसद अफजाल अंसारी ने भी अपनी चिंता व्यक्त की है। दरअसल मुख्तार गिरोह के लोगों और सहानुभूति रखने वाले लोगों को डर सता रहा है। उत्तर प्रदेश की तमाम केन्द्रीय जेलों में मुख्तार के विरोधी गैंग के गुर्गे बंद हैं। बांदा जेल को दिल्ली से जाकर इंजीनियरों ने दुरुस्त किया है, ताकि मुख्तार को वहां सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को जेल में अपने भाई के विरुद्ध षडयंत्र का पूरा डर सता रहा है। मुख्तार को पेशी के लिए अदालत में ले जाते समय यह खतरा और बड़ा हो सकता है। अफजाल साफ कह रहे हैं कि उन्हें राज्य सरकार पर ही भरोसा नहीं है। उनके पास अदालत में जाने के सिवा कोई चारा नहीं है।
मुख्तार का राजनीति एजेंडा भी हैं
सपा, बसपा और कांग्रेस पार्टी के नेता इस बारे में कुछ नहीं बोलना चाहते। ऑफ द रिकार्ड केवल इतना कहते हैं कि राज्य सरकार की कार्रवाई सेलेक्टिव नहीं होनी चाहिए। भाजपा के नेता ज्ञानेश्वर शुक्ला कहते हैं कि मुख्तार अंसारी कोई संत तो है नहीं। अपराधी और माफिया है। तमाम मुकदमे उस पर दर्ज हैं। सरकार और पुलिस प्रशासन कानूनी कार्रवाई कर रहा है तो आखिर इसमें परेशानी क्या है? एक अन्य भाजपा विधायक का कहना है कि यही समस्या है। लोकतंत्र में कुछ कीजिए, सवाल खड़ा हो जाता है। लोगों को राजनीति, हिन्दू-मुसलमान दिखाई देने लगता है। हालांकि पूरे पूर्वांचल में यह खबर आम है कि मुख्तार के खिलाफ राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा खोल रखा है।
कभी राजनीतिक रसूख ही थी मुख्तार का हथियार
मुख्तार अंसारी का परिवार रसूखदार राजनीतिक परिवार है। उसके परिवार और घराने से पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी ताल्लुक रखते हैं। उसके दादा मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और अपने जमाने के राष्ट्रीय नेता रहे हैं। मुख्तार खुद पांच बार का विधायक है। उसके भाई अफजाल अंसारी बसपा के टिकट से लड़कर संसद में पहुंचे हैं। मुख्तार उत्तर प्रदेश का अल्पसंख्यक माफिया चेहरा भी है। हालांकि अपने जिले, चुनाव क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। इसी रसूख के चलते मुख्तार के खिलाफ प्रशासन बमुश्किल कार्रवाई की हिम्मत जुटा पाता था। मुख्तार के खिलाफ करीब 30 एफआईआर दर्ज हैं। 14 मामलों में ट्रायल चल रहा है। उस पर हत्या, हत्या का षडयंत्र जैसे कई गंभीर मामले विचाराधीन हैं। पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में बस दो माफियाओं की चलती है। एक मुख्तार के नाम का डंका बजता है, तो दूसरी तरफ माफिया डॉन के नाम से मशहूर बृजेश सिंह सामानांतर है। बृजेश सिंह का अपराध और आर्थिक साम्राज्य कई राज्यों तक फैला है। माना यह जा रहा है कि राजनीतिक, अपराध की दुनिया और मौजूदा समय का यह तालमेल मुख्तार के विरोधियों के पक्ष में ज्यादा है और उनपर भारी पड़ रहा है।

विस्तार

उत्तर प्रदेश की बागपत जेल। नौ जुलाई 2018 का दिन पूर्वांचल के लिए महत्वपूर्ण था। पश्चिम उत्तर प्रदेश की जेल में प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी के रूप में एक ऐसे कुख्यात अपराधी की हत्या हो गई, जिसके नाम से जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर का परिक्षेत्र कांपता था। सीधे या परोक्ष रूप से मिली एक धमकी अच्छे-अच्छे धाकड़ों के होश उड़ा देती थी। 90 के दशक से यह भी आम था कि मुन्ना बजरंगी (सुपारी किलर मशीन) मुख्तार के इशारे पर काम करता है और उसके हाथ नहीं कांपते। मुख्तार अंसारी तो एक ऐसा नाम बन चुका था, जिनका डॉन के नाम से मशहूर धरहरा के बृजेश सिंह के सिवा कम लोग सामना करने की सोच पाते थे। अब वही मुख्तार अंसारी आज अपने दुश्मनों के बिछाए जाल के साथ कानून के दायरे में लगातार उलझता जा रहा है। बताते हैं मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद से ही उसके माथे पर बल हैं।

कौन रख सकता था मुख्तार के कंधे पर हाथ?
उत्तर प्रदेश पुलिस को शानदार सेवाएं देने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी रंजन द्विवेदी उन दिनों बनारस में तैनात थे। मुख्तार के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी थी और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में उन्हें प्रमोशन देकर ऐसा करने से रोक दिया गया। दूसरी तैनाती दे दी गई। मुख्तार अंसारी पर पूर्व डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने पोटा लगाना चाहा, तो उन्हें प्रताड़ना झेलनी पड़ी। शैलेन्द्र सिंह ने पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया। उत्तर प्रदेश में कई ऐसे पुलिस अधिकारी और आईएएस वर्तमान तथा रिटायर मिल जाएंगे, जो ऑफ द रिकार्ड अपने हाथ राजनेताओं द्वारा बांध देने के बारे में जानकारी देंगे।उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी बृजलाल ने हाल में कई बड़े खुलासे किए हैं। हालांकि बृजलाल ने एक बार भी नहीं बताया कि उन्होंने डीजीपी रहते हुए मुख्तार पर शिकंजा क्यों नहीं कसा। मुख्तार पर शिकंजा कसे जाने की दूसरी संभावना तब ज्यादा जोर पकड़ने लगी थी, जब उत्तर प्रदेश पुलिस ने भदोही से विधायक विजय मिश्रा पर कानूनी कार्रवाई करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य उत्तर प्रदेश के माफिया राज पर बारीकी से नजर रखने वाले मानते हैं कि मुख्तार की सपा और बसपा के राज में चलती थी। उनका राजनीतिक रसूख विरोधियों को घेरने और खुद से जुड़े लोगों को सुरक्षा कवच देने में करीब-करीब सफल रहता था। मुख्तार के इसी राजनीतिक कनेक्शन के जवाब के तौर पर बृजेश सिंह के परिवार और उनके कई करीबी राजनीति में आए। यहां तक कि वाराणसी परिक्षेत्र में दहशत का पर्याय बने बृजेश सिंह ने भी राजनीति के रास्ते को चुन लिया।

मुख्तार के विरोधी राजनीति में
अब मुख्तार अंसारी के धुर विरोधी बृजेश सिंह वाराणसी से एमएलसी हैं। 2016 में वह एमएलसी बने। 2008 में दिल्ली पुलिस ने बृजेश सिंह को भुवनेश्वर से गिरफ्तार किया था। उनके भतीजे और बाहुबली सुशील सिंह चंदौली सैयदराजा सीट से भाजपा के विधायक हैं। सुशील सिंह तीसरी बार विधायक बने हैं। वाराणसी की एमएलसी की सीट चार बार से बृजेश सिंह और उनके पास है। इससे पहले इसी सीट से उनकी पत्नी अन्नपूर्णा सिंह एमएलसी थीं। इससे पहले दो बार उनके बड़े भाई उदय नाथ सिंह एमएलसी थे। मुख्तार का नाम जिस भाजपा विधायक कृष्णानंद की हत्या में लिया जाता है, उनकी पत्नी अलका राय गाजीपुर के मुहम्मदाबाद से विधायक हैं। कृष्णानंद राय की हत्या ने पूर्वांचल और खासकर मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़, बनारस और जौनपुर के भूमिहारों का खून खौला दिया था। माना जा रहा है कि मुख्तार का विरोधी यह खेमा अब मुख्तार के खिलाफ मामलों को खुलवाने, शिकायत करने वालों को आगे लाने तथा राज्य प्रशासन से मुख्तार के खिलाफ मुकदमों की पैरवी में धार लाने की कोशिश में लगा है।

इतना क्यों डर रहे हैं मुख्तार?
कभी माफियाओं के लिए काम करने वाले प्रमुख सूत्र की मानें तो बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या ने अच्छे-अच्छे माफिया को हिलाकर रख दिया। दूसरी बड़ी घटना कानपुर बिकरू गांव के विकास दूबे की मुठभेड़ की है। विकास दूबे पुलिस की गाड़ी पलटने के बाद भागने की कोशिश और जवाबी गोलीबारी में मारा गया, लेकिन माफियाओं के बीच में यह घटना पुलिस द्वारा आत्मसर्मण कर चुके विकास की सुनियोजित हत्या के तौर पर स्थापित है।तीसरी घटना भदोही के विधायक विजय मिश्रा की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ पुलिस की कार्रवाई की है। बताते हैं इलाहाबाद में बाहुबल का पर्याय बने मोहम्मद अतीक जैसे माफिया शांति से जेल में रहने में ही अपनी भलाई समझ रहे हैं। सूत्र का कहना है कि चाहे मोहम्मद अतीक हो या फिर मुख्तार अंसारी उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इन्हें लेकर बहुत संवेदनशील बने हैं। पिछले एक-दो साल में मुख्तार अंसारी के खिलाफ प्रशासन की कार्रवाई भी इसी का संकेत दे रही है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता तो यहां तक कहते हैं कि जो भी अपराधी हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। चाहे वह कोई भी हों, लेकिन राज्य सरकार को चयनात्मक नहीं होना चाहिए।अब मुख्तार अंसारी के करीबियों को कई तरह की आशंकाएं घेर रही हैं। उसके भाई और सांसद अफजाल अंसारी ने भी अपनी चिंता व्यक्त की है। दरअसल मुख्तार गिरोह के लोगों और सहानुभूति रखने वाले लोगों को डर सता रहा है। उत्तर प्रदेश की तमाम केन्द्रीय जेलों में मुख्तार के विरोधी गैंग के गुर्गे बंद हैं। बांदा जेल को दिल्ली से जाकर इंजीनियरों ने दुरुस्त किया है, ताकि मुख्तार को वहां सुरक्षित रखा जा सके, लेकिन मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को जेल में अपने भाई के विरुद्ध षडयंत्र का पूरा डर सता रहा है। मुख्तार को पेशी के लिए अदालत में ले जाते समय यह खतरा और बड़ा हो सकता है। अफजाल साफ कह रहे हैं कि उन्हें राज्य सरकार पर ही भरोसा नहीं है। उनके पास अदालत में जाने के सिवा कोई चारा नहीं है।

मुख्तार का राजनीति एजेंडा भी हैं
सपा, बसपा और कांग्रेस पार्टी के नेता इस बारे में कुछ नहीं बोलना चाहते। ऑफ द रिकार्ड केवल इतना कहते हैं कि राज्य सरकार की कार्रवाई सेलेक्टिव नहीं होनी चाहिए। भाजपा के नेता ज्ञानेश्वर शुक्ला कहते हैं कि मुख्तार अंसारी कोई संत तो है नहीं। अपराधी और माफिया है। तमाम मुकदमे उस पर दर्ज हैं। सरकार और पुलिस प्रशासन कानूनी कार्रवाई कर रहा है तो आखिर इसमें परेशानी क्या है? एक अन्य भाजपा विधायक का कहना है कि यही समस्या है। लोकतंत्र में कुछ कीजिए, सवाल खड़ा हो जाता है। लोगों को राजनीति, हिन्दू-मुसलमान दिखाई देने लगता है। हालांकि पूरे पूर्वांचल में यह खबर आम है कि मुख्तार के खिलाफ राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मोर्चा खोल रखा है।

कभी राजनीतिक रसूख ही थी मुख्तार का हथियार
मुख्तार अंसारी का परिवार रसूखदार राजनीतिक परिवार है। उसके परिवार और घराने से पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी ताल्लुक रखते हैं। उसके दादा मुख्तार अहमद अंसारी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और अपने जमाने के राष्ट्रीय नेता रहे हैं। मुख्तार खुद पांच बार का विधायक है। उसके भाई अफजाल अंसारी बसपा के टिकट से लड़कर संसद में पहुंचे हैं। मुख्तार उत्तर प्रदेश का अल्पसंख्यक माफिया चेहरा भी है। हालांकि अपने जिले, चुनाव क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। इसी रसूख के चलते मुख्तार के खिलाफ प्रशासन बमुश्किल कार्रवाई की हिम्मत जुटा पाता था। मुख्तार के खिलाफ करीब 30 एफआईआर दर्ज हैं। 14 मामलों में ट्रायल चल रहा है। उस पर हत्या, हत्या का षडयंत्र जैसे कई गंभीर मामले विचाराधीन हैं। पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में बस दो माफियाओं की चलती है। एक मुख्तार के नाम का डंका बजता है, तो दूसरी तरफ माफिया डॉन के नाम से मशहूर बृजेश सिंह सामानांतर है। बृजेश सिंह का अपराध और आर्थिक साम्राज्य कई राज्यों तक फैला है। माना यह जा रहा है कि राजनीतिक, अपराध की दुनिया और मौजूदा समय का यह तालमेल मुख्तार के विरोधियों के पक्ष में ज्यादा है और उनपर भारी पड़ रहा है।