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ग्राउंड रिपोर्ट : उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में परदेसी वोटर भी हैं ट्रंप कार्ड

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यूपी के पंचायत चुनावों में दूसरे राज्यों में रह रहे परदेसी मतदाताओं के साथ लॉकडाउन में गांव लौटे मजदूरों की भूमिका काफी अहम है। पूर्वांचल और बुंदेलखंड के जिलों से दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में गए लाखों मजदूरों को बुलाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। प्रत्याशी उन्हें लाने के लिए टिकट और बसों का इंतजाम करने में लग गए हैं। केन्द्र सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार यूपी के 32.49 लाख मजदूर गांव लौटे। इनमें बड़ी संख्या पूर्वांचल के 20 जिलों के मजदूरों की है। वापस आए मजदूरों में आधे के आसपास काम की तलाश में लौट गए। उन्हें भी वापस बुलाया जा  रहा है। चुनाव यूपी में, प्रचार मुंबई में…मुंबई में उत्तर भारतीय महासंघ के महासचिव इंजीनियर इम्तियाज अली का गांव के 350 मतदाताओं पर प्रभाव है। वह बताते हैं, “कई लोग तो मुंबई में मीटिंग करके गए हैं। हमारी प्रॉपर्टी गांव में है, इसलिए दखल रखना पड़ता है। मजदूरों के साथ मीटिंग होती रहती है, किसे वोट देना है? हम उनकी मदद करते हैं तो वो हमारी बात सुनते हैं।मतदाता के आने-जाने का इंतजाम प्रत्याशी करते हैंनेपाल सीमा से सटे सिद्धार्थनगर जिले के गांव बजहा में 3287 मतदाता हैं, इनमें से 500 बड़े शहरों में रहते हैं। अन्य गांवों के 20-30% वोटर भी बड़े शहरों में रहते हैं। परदेसी वोटरों को मतदान में लाने के लिए आने-जाने का किराया-भाड़ा देने के साथ ही गांवों में कॉलोनी और अन्य सुविधाओं का लालच दिया जाता है। मुंबई या दिल्ली से लोग पूरी की पूरी बोगी बुक कर चुनावों में अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए पहुंचते हैं। धनौरा में प्रधानी का चुनाव लड़ चुके मुन्ना यादव बताते हैं, हमारे गांव में मुस्लिम आबादी अधिक है, कुल मतदाता