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संगम पर छाया कोरोना का खौफ, डुबकी लगाने से भी लोग कर रहे परहेज

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गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती के जिस संगम में डुबकी लगाने से सनातनधर्मियों का जीवन धन्य हो जाया करता था, वहीं अब संक्रमण फैलने के डर से लोग त्रिवेणी तट पर स्नान से हिचकने लगे हैं। कोविड-19 के संक्रमण की दूसरी लहर ने इस तरह डर पैदा कर दिया है कि संगम से चहल-पहल गायब हो गई है। हमेशा भीड़ से भरे रहने वाले संगम पर अब गिनती के ही लोग नजर आ रहे हैं। शनिवार को ध्वजा निशान चढ़ाने वाले भी गिनती के ही पहुंचे। स्नानार्थियों की तादाद घटने से नाविकों का कारोबार जहां बुरी तरह ठप पड़ गया है, वहीं तीर्थपुरोहितों की चौकियां खाली पड़ गई हैं।त्योहार मनाने, पवित्र नदियों में डुबकी लगाने  और धार्मिक कर्मकांडों, रीति-रिवाजों का पालन करने में सनातनधर्मी हमेशा आगे रहे है। कोरोना काल में भी बीते महीनों में माघ मेले में मकर संक्रांति से लेकर माघी पूर्णिमा तक संगम में भक्तों की भीड़ की वजह से तिल रखने की जगह नहीं रही है, लेकिन अब तेजी से फैलते कोविड-19 के प्रकोप ने अब लोगों को घरों में कैद रहने के लिए मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि हफ्ते भर से संगम पर स्नानार्थियों की संख्या में जबरदस्त गिरावट आई है।इससे कर्मकांड और संगम पर दीपदान, यज्ञ, हवन और आरती पर असर पड़ गया है। तीर्थयात्रियों की संख्या में कमी आने से तीर्थपुरोहितों, नाविकों, फेरी वालों और पूजा-प्रसाद की सामग्री बेचने वालों की जीविका पर भी प्रभावित हो गई है। शनिवार की दोपहर बाद संगम पर सन्नाटा छाया रहा। तीर्थपुरोहित राजमणि तिवारी बताते हैं कि संक्रमण की डर से अब श्रद्धालु खुद बाहर निकलने से परहेज करने लगे हैं। पहले जहां दिन भर वाहनों का तांता लगा रहता था, वहीं अब गिनती के ही लोग संगम पर आ रहे हैं। उनकी मानें तो संगम पर अब अस्थि विसर्जन या फिर ऐसे ही जरूरी कार्यों के लिए लोग आ रहे हैं।लेकिन, स्नान-ध्यान या फिर संगम पर अनुष्ठान और मुंडन, जनेऊ संस्कार कराने के लिए लोग नहीं आ रहे हैं। बंटी निषाद के मुताबिक करीब 1200 से अधिक नावें खड़ी हैं। नौका संचालन पूरी तरह ठप पड़ गया है। इस वजह से मल्लाह परिवारों की जीविका प्रभावित हो गई है। अब घरों में रोजमर्रा की वस्तुओं के जुगाड़ के लिए भी दिक्कतें आने लगी हैं। संगम पर चाय की दुकान लगाने वाले वीरेंद्र गुप्ता बताते हैं कि रोजगार पूरी तरह ठप पड़ गया है। तीर्थयात्रियों के न आने की वजह से दिन भर खाली बैठना पड़ रहा है। पहले जहां पांच से सात सौ रुपये तक की कमाई हो जाती थी, वहीं अब सौ रुपये भी नहीं मिल पा रहे हैं।संगम पर श्रद्धालुओं की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। हालत यह है कि तीर्थपुरोहित भी अब संक्रमण की डर से चौकियों पर बैठने से कतराने लगे हैं। वैसे भी अब समय आ गया है कि हम अपनी धार्मिक मान्यताओं, प्राचीन परंपराओं में समय और देश-काल को ध्यान में रखते हुए बदलाव करें। अब नई तकनीक के सहारे बहुत से काम अत्यंत सुविधाजनक तरीके से और सुरक्षित हो रहे हैं। हमें अपनी धार्मिक मान्यताओं में भी नई तकनीक को बढ़ावा देना चाहिए। डॉ प्रकाश चंद्र मिश्र, अध्यक्ष-प्रयागवाल सभा।नारियल, चुनरी के अलावा अन्य पूजा सामग्री की बिक्री घट गई है। दिन भर संगम पर बैठने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हो रहा है। फूलमाला और दीपक की बिक्री नाममात्र की ही हो पा रही है। ननकी देवी, व्यवसायी-पूजन सामग्री।

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गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती के जिस संगम में डुबकी लगाने से सनातनधर्मियों का जीवन धन्य हो जाया करता था, वहीं अब संक्रमण फैलने के डर से लोग त्रिवेणी तट पर स्नान से हिचकने लगे हैं। कोविड-19 के संक्रमण की दूसरी लहर ने इस तरह डर पैदा कर दिया है कि संगम से चहल-पहल गायब हो गई है। हमेशा भीड़ से भरे रहने वाले संगम पर अब गिनती के ही लोग नजर आ रहे हैं। शनिवार को ध्वजा निशान चढ़ाने वाले भी गिनती के ही पहुंचे। स्नानार्थियों की तादाद घटने से नाविकों का कारोबार जहां बुरी तरह ठप पड़ गया है, वहीं तीर्थपुरोहितों की चौकियां खाली पड़ गई हैं।

त्योहार मनाने, पवित्र नदियों में डुबकी लगाने  और धार्मिक कर्मकांडों, रीति-रिवाजों का पालन करने में सनातनधर्मी हमेशा आगे रहे है। कोरोना काल में भी बीते महीनों में माघ मेले में मकर संक्रांति से लेकर माघी पूर्णिमा तक संगम में भक्तों की भीड़ की वजह से तिल रखने की जगह नहीं रही है, लेकिन अब तेजी से फैलते कोविड-19 के प्रकोप ने अब लोगों को घरों में कैद रहने के लिए मजबूर कर दिया है। यही वजह है कि हफ्ते भर से संगम पर स्नानार्थियों की संख्या में जबरदस्त गिरावट आई है।

इससे कर्मकांड और संगम पर दीपदान, यज्ञ, हवन और आरती पर असर पड़ गया है। तीर्थयात्रियों की संख्या में कमी आने से तीर्थपुरोहितों, नाविकों, फेरी वालों और पूजा-प्रसाद की सामग्री बेचने वालों की जीविका पर भी प्रभावित हो गई है। शनिवार की दोपहर बाद संगम पर सन्नाटा छाया रहा। तीर्थपुरोहित राजमणि तिवारी बताते हैं कि संक्रमण की डर से अब श्रद्धालु खुद बाहर निकलने से परहेज करने लगे हैं। पहले जहां दिन भर वाहनों का तांता लगा रहता था, वहीं अब गिनती के ही लोग संगम पर आ रहे हैं। उनकी मानें तो संगम पर अब अस्थि विसर्जन या फिर ऐसे ही जरूरी कार्यों के लिए लोग आ रहे हैं।
लेकिन, स्नान-ध्यान या फिर संगम पर अनुष्ठान और मुंडन, जनेऊ संस्कार कराने के लिए लोग नहीं आ रहे हैं। बंटी निषाद के मुताबिक करीब 1200 से अधिक नावें खड़ी हैं। नौका संचालन पूरी तरह ठप पड़ गया है। इस वजह से मल्लाह परिवारों की जीविका प्रभावित हो गई है। अब घरों में रोजमर्रा की वस्तुओं के जुगाड़ के लिए भी दिक्कतें आने लगी हैं। संगम पर चाय की दुकान लगाने वाले वीरेंद्र गुप्ता बताते हैं कि रोजगार पूरी तरह ठप पड़ गया है। तीर्थयात्रियों के न आने की वजह से दिन भर खाली बैठना पड़ रहा है। पहले जहां पांच से सात सौ रुपये तक की कमाई हो जाती थी, वहीं अब सौ रुपये भी नहीं मिल पा रहे हैं।

संगम पर श्रद्धालुओं की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। हालत यह है कि तीर्थपुरोहित भी अब संक्रमण की डर से चौकियों पर बैठने से कतराने लगे हैं। वैसे भी अब समय आ गया है कि हम अपनी धार्मिक मान्यताओं, प्राचीन परंपराओं में समय और देश-काल को ध्यान में रखते हुए बदलाव करें। अब नई तकनीक के सहारे बहुत से काम अत्यंत सुविधाजनक तरीके से और सुरक्षित हो रहे हैं। हमें अपनी धार्मिक मान्यताओं में भी नई तकनीक को बढ़ावा देना चाहिए। डॉ प्रकाश चंद्र मिश्र, अध्यक्ष-प्रयागवाल सभा।

नारियल, चुनरी के अलावा अन्य पूजा सामग्री की बिक्री घट गई है। दिन भर संगम पर बैठने के बाद भी कुछ हासिल नहीं हो रहा है। फूलमाला और दीपक की बिक्री नाममात्र की ही हो पा रही है। ननकी देवी, व्यवसायी-पूजन सामग्री।