Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

Ajit Singh: ‘वो हंसी नहीं भूलती’…’छोटे चौधरी’ की अधूरी कसक जयंत के जिम्मे, अजित सिंह के ना होने के मायने

हाइलाइट्स:चौधरी अजित सिंह जाटलैंड में छोटे चौधरी के नाम से चर्चित2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में हार गए थे अजितमुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटलैंट की बदल गई सियासतकिसान आंदोलन से फिर अजित की पकड़ हुई थी मजबूतलखनऊ’उनकी जो हंसी है वो भूली नहीं जाती। निर्दोष हंसी होती थी। मजाक करते थे और खुद ही बहुत जोर से हंसते थे। इसका इंतजार नहीं करते थे कि सामने वाला हंसता है या नहीं।’ जाटलैंड के छोटे चौधरी यानी चौधरी अजित सिंह का कुछ इस अंदाज में वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने जिक्र किया। चौधरी चरण सिंह की विरासत को संभालने वाले अजित सिंह की सियासत कई मायनों में जुदा थी। आइए जाटलैंड के इस योद्धा की राजनीति पर डालते हैं एक नजर…’पश्चिम ही नहीं पूर्वी यूपी में भी थे उनके प्रशंसक’अजित सिंह की राजनीति का जिक्र करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया, ‘बहुत उन्मुक्त स्वभाव के थे। उनसे हुई तमाम मेल-मुलाकातों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि चीजों को समझने में बहुत शार्प थे। चूंकि खुद भी पढ़े-लिखे थे, इसलिए समझते बहुत खूब थे। निश्छल हंसी उनकी मुझे अभी तक याद आती है। नाराज होते थे लेकिन नाराजगी बहुत देर तक नहीं रहती थी। किसानों की समस्या की समझ अच्छी थी। वेस्टर्न यूपी ने एक बड़ा नेता खो दिया है। चौधरी साहब की विरासत संभाल गए। एक बड़ा किसान नेता जोकि राजनीति में था, जिसकी वेस्टर्न यूपी ही नहीं ईस्टर्न यूपी (पूर्वी उत्तर प्रदेश) में भी फॉलोइंग थी। उनके जाने से किसान आंदोलन को झटका तो लगा है।’ ‘किसान आंदोलन ने अजित सिंह को दी थी नई ताकत’वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया, ‘अजित सिंह का पश्चिमी यूपी की जाट बेल्ट में जो पराभव हुआ था वह समाप्त होने लगा था। किसान आंदोलन ने अजित सिंह को एक नई ताकत दी थी। आम तौर पर दिल्ली में बने रहने वाले अजित सिंह ने किसान आंदोलन के बहाने पश्चिमी यूपी के गांव-गांव में फिर पैठ बढ़ाई थी। लेकिन ऐसे समय में अजित सिंह चले गए जब किसान आंदोलन के एक बार फिर से खड़े होने को उम्मीद मिली थी। चौधरी चरण सिंह के बाद अजित सिंह और अब जयंत चौधरी को वह जाट राजनीति की विरासत दे गए हैं। अब अजित सिंह के ना रहने पर जयंत चौधरी चौधरी चरण सिंह की विरासत को आगे बढ़ाएंगे।’ हाथरस बना ‘जंग’ का मैदान, जयंत चौधरी को RLD कार्यकर्ताओं ने लाठीचार्ज से यूं बचाया, देखिए वीडियोजातीय राजनीति बिगड़ने से मैदान से हुए बाहरवरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस आगे कहते हैं, ‘क्रेडिबिलिटी ने अजित सिंह को खत्म किया, वरना चौधरी चरण सिंह के ना रहने के बाद लोगों ने उन्हें हाथों हाथ लिया था। ऑटो मोबाइल इंजिनियर थे। अमेरिका से पढ़कर आए थे। जाट उनको अपना नेता मानते थे। समय-समय पर पाला बदलते रहे और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जातीय राजनीति जिस तरह बिगड़ी उसने उन्हें मैदान से बाहर किया था। अब पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ आरएलडी ने अलायंस में अच्छा प्रदर्शन किया है। विधानसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं है। अब उनके निधन के बाद जाट बेल्ट में जयंत चौधरी को सिम्पैथी निश्चित रूप से मिलेगी। जयंत चौधरी काफी मेहनत भी कर रहे हैं। वह जाटलैंड में चौधरी चरण सिंह की विरासत को संभाल चुके थे इसलिए नुकसान नहीं होगा। सहानुभूति का कुछ लाभ ही मिलेगा।’Chaudhary Ajit Singh passes away: आरएलडी मुखिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का कोरोना से निधन, गुरुग्राम के अस्पताल में भर्ती थेअब दो कसक पूरा करने का जिम्मा जयंत परचौधरी अजित सिंह की दो कसक अधूरी रह गई। एक वेस्ट यूपी को हरित प्रदेश बनाना और दूसरा मुजफ्फरनगर से आखिरी चुनाव में जीत। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें मुजफ्फरनगर से करीबी मुकाबले में शिकस्त मिली थी। इस पर वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह कहते हैं, ‘बीजेपी के आने के बाद इस तरह के आंदोलन खत्म हो गए। एक फेज आया था जबकि जाट और मुसलमान साथ हो गए थे। काफी दिन वो रहे लेकिन बाद में जब बीजेपी का उत्थान हुआ तो ये समीकरण टूट गया। मुजफ्फरनगर में जाट-मुस्लिम संघर्ष इसी का उदाहरण हैं। इसलिए जाटों में उनकी फॉलोइंग कम होती गई लेकिन उनके बेटे जयंत चौधरी ज्यादा ऐक्टिव हैं। वह उनकी विरासत को अच्छी तरह संभाल रहे हैं और उनसे जाट आंदोलन और पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाने के आंदोलन को लेकर उम्मीदें हैं।’ बीजेपी सांसद पर जमकर बरसे जयंत चौधरीजाटों के सर्वमान्य नेता, विदेश से लौटे लेकिन जड़ों से कटे नहींवरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया, ‘जब भी लखनऊ आते थे तो पत्रकारों से बड़े प्रेम से मिलते थे। हंसते बहुत थे, हर बात पर हंस देते थे। उनकी हंसने की जो आदत और स्टाइल थी वह बहुत अच्छी थी। बहुत ही बेबाक तरीके से बात रखते थे। अजित सिंह की खासियत ये रही कि विदेश से पढ़कर आने के बाद भी अपनी जड़ों से कभी कटे नहीं। अपने पिता की विरासत को सहेजने में पूरी तरह तो नहीं लेकिन कुछ हद तक कामयाब हुए। कुछ समय तक पश्चिमी यूपी की राजनीति पर उनकी मजबूत पकड़ रही। खास तौर से जाट बिरादरी के बीच पकड़ रही और काफी समय तक जाटों के सर्वमान्य नेता रहे। हाल ही में इसका उदाहरण देखने को मिला, जब नरेश टिकैत ने किसानों की सभा में कहा कि हम लोगों ने अजित सिंह को हराकर बहुत गलती की। ये कहना दिखाता है कि भले ही आरएलडी को जाट समाज ने 2014 और 2019 में हरा दिया लेकिन जाटों के मन में उनके लिए स्नेह या सम्मान की भावना जरूर थी। समाज को ये लगता था कि किसानों की पीड़ा को वो समझते हैं।’Chaudhary Ajit Singh Biography: अमेरिका में नौकरी छोड़ अजित ने संभाली थी पिता चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत, जाट नेता कहलाना था पसंदजाट राजनीति में दिखेगा निधन का असर!वेस्ट यूपी ती जाट राजनीति पर अजित सिंह की पकड़ थी। वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय ने कहते हैं, ‘अजित सिंह का अपने क्षेत्र के किसानों से रिश्ता गहरा था। दिल्ली में उनका जो घर था उसके दरवाजे वेस्ट यूपी के किसान और खाप चौधरियों के लिए खुला हुआ था। भारतीय राजनीति के ऐसे नेता थे जिन्होंने बहुत रिफाइंड होते हुए भी देसी राजनीति पर अपनी पकड़ बनाई। ऐसे नेताओं में उनका नाम हम शुमार कर सकते हैं जो विदेश से आकर राजनीति में सफल हुए और नीचे के स्तर से लोगों के बीच पकड़ बनाई। अगले साल ही चुनाव हैं और उनके निधन का एक राजनीति असर जाट पॉलिटिक्स में देखने को मिल सकता है। जयंत चौधरी के लिए आने वाले चुनाव में सहानुभूति का फैक्टर भूमिका अदा कर सकता है।’ Kisan Andolan : महापंचायत में किसानों से बोले नरेश टिकैत- अजित सिंह को हराना बड़ी भूल, बीजेपी को सिखाएंगे सबकयूपी बॉर्डर पर बोले राकेश टिकैत, ’10 मई के बाद सरकार से फिर करेंगे दो-दो हाथ’जब अजित सिंह बन सकते थे सीएमअजित सिंह के बारे में वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल कहते हैं, ‘अजित सिंह के पास देश के सबसे बड़े किसान नेता चौधरी चरण सिंह की विरासत थी जिसे संभालने वह अमेरिका से भारत आए। यहां वह वीपी सिंह के करीबी हो गए। 1989 में जब यूपी में जनता दल ने चुनाव जीता तो वीपी सिंह अजित सिंह को सीएम बनाना चाहते थे लेकिन मुलायम नहीं माने। उन्होंने इसका विरोध किया जिसके बाद पार्टी विधायकों के बीच वोटिंग हुई। इसमें अजित सिंह हार गए और मुलायम सीएम नियुक्त हुए। जनता दल के विभाजन के बाद अजित सिंह वीपी सिंह के साथ चले गए।’ Chaudhary Ajit Singh: पश्चिम यूपी को हरित प्रदेश बनाना चाहते थे अजित सिंह लेकिन मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बदल गए हालात’2013 के जख्म भरे तो जाटलैंड में सफल होंगे सपा-आरएलडी’अजित सिंह पर अवसरवादी राजनीति के आरोप भी लगे। इस पर वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय कहते हैं, ‘इस बात को वह समझते थे कि अकेले उनके वश का कुछ नहीं है। किसी के साथ रहकर ही वह कुछ कर सकते थे या राजनीति में कुछ हासिल कर सकते हैं। इस वजह से उन्होंने 2014 के पहले तक उन्होंने अलग-अलग दलों को चुना। हर दल में वह फिट हो जाया करते थे, क्योंकि उनके पास एक वोट बैंक था। हर पार्टी जानती थी कि उनके साथ आने से जाटलैंड का वोट आसानी से ट्रांसफर हो जाएगा। वह कहते भी थे कि हमें अपने लोगों के लिए कुछ करना है तो किसी के साथ जुड़ेंगे नहीं तो हम उनके लिए बिना पावर शेयर किए कुछ कर ही नहीं पाएंगे।’ संजय पांडेय कहते हैं कि पंचायत चुनाव में सफलता के बाद 2022 में सपा और आरएलडी को उम्मीदें हैं। सपा और आरएलडी का साथ तभी सफल होगा अगर 2013 के दंगों के जख्म अगर भर गए होंगे तो जाट-मुसलमान साथ आ सकते हैं। किसान आंदोलन ने कुछ हद तक खाई को पाटने का काम किया है।’ Ajit Singh Death: वीपी सिंह, नरसिम्हा राव, अटल, मनमोहन…सियासी हवा भांपने में माहिर थे अजित’जयंत काफी सक्रिय, लोगों को उनसे उम्मीद भी’वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल आगे कहते हैं, ‘चौधरी चरण सिंह के बेटे होने के कारण इन्हें काफी बड़ी विरासत मिली थी, जाट वोट बैंक था। हर पार्टी इनकी ओर हाथ मिलाने के लिए लपकती थी लेकिन उसे बचाने में इन्हें काफी मुश्किलें आईं। यूपी में दो सीटें किला मानी जाती थीं- रायबरेली और बागपत। बागपत चौधरी परिवार का किला था, चौधरी चरण सिंह कभी वहां से चुनाव नहीं हारे और यह भी 6 बार सांसद रहे लेकिन दो बार शिकस्त झेलनी पड़ी। फिर 2019 में इनके बेटे जयंत भी बागपत से हार गए। अजित सिंह के निधन के बाद जयंत के सामने चुनौतियां होंगी पार्टी के छिटके वोटबैंक को दोबारा लाने की। हालांकि जयंत राजनीति में सक्रिय हैं इसलिए लोगों को उनसे उम्मीद भी है।’चौधरी अजित सिंह