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चौधरी अजित सिंह के जाने से टिकैत और चरण सिंह की किसान राजनीति वाली विरासत खामोश हो गई

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चौधरी अजित सिंह नहीं रहे। चौधरी अजित सिंह का निधन केवल एक राजनेता का जाना नहीं है, यह उस युग की राजनीति का पटाक्षेप भी है जहां समाज और राजनीति के सर्वोच्च शिखर पर रहने के बाद भी लोग जमीन से जुड़े रहते थे और सामान्य जन उनसे खुद को बेहद करीब महसूस कर पाते थे। उनके जाने से देश की राजनीति में चौधरी चरण सिंह चौधरी देवीलाल और चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत जैसे किसान नेताओं की उस किसान राजनीति को भी धक्का लगा है जो किसानों की हक की आवाज बनकर सत्ता के गलियारों में गूंजती रही है।चौधरी अजित सिंह ने पिता चौधरी चरण सिंह से केवल राजनीति की विरासत ही नहीं संभाली थी, बल्कि उनकी सादगी भी उनके व्यवहार में हमेशा झलकती रही। पश्चिम उत्तर प्रदेश का हर किसान उन्हें अपने आसपास खड़ा पाता था। जब वे केंद्र सरकार में मंत्री हुआ करते थे, तब भी हर एक किसान की चौधरी अजित सिंह के पास सीधी पहुंच हुआ करती थी। भारतीय राजनीति में इस समय शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो खुद को किसानों का नेता कह सके। चौधरी अजित सिंह इस श्रेणी के अंतिम नेता थे।
शीर्ष नेताओं ने जताया शोक
चौधरी अजित सिंह के निधन पर देश की शीर्ष राजनीतिक हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वे किसानों के हक के लिए हमेशा लड़ाई लड़ते रहे और अपनी सभी जिम्मेदारियों का सही से निर्वहन किया। राजनाथ सिंह ने कहा है कि उन्होंने हमेशा किसानों-मजदूरों की आवाज उठाई और उनके लिए हमेशा समर्पित रहे। राहुल गांधी ने कहा है कि चौधरी अजित सिंह का असमय निधन का समाचार सुनकर वे बेहद दुखी हुए हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका गांधी ने भी अजित सिंह के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा है कि वह किसानों की आवाज थे और उनके जाने से किसान राजनीति को बहुत नुकसान हुआ है। चरण सिंह के शिष्य रहे मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अजित सिंह को अपना दोस्त बताते हुए कहा कि उनके निधन से जहां किसानों की एक आवाज शांत हो गई वहीं उन्हें निजी तौर पर भी खासी क्षति हुई है क्योंकि वह खुद को भी चरण सिंह परिवार का ही एक सदस्य मानते हैं।
किसानों की परेशानी को जीते थे अजित सिंह
चौधरी अजित सिंह की राजनीतिक यात्रा के सहभागी रहे जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि चौधरी अजित सिंह के जाने के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनके कद का कोई नेता नहीं बचा। वे किसानों की राजनीति नहीं करते थे, बल्कि वे किसानों की जिन्दगी और उनकी परेशानियों को जीते थे। यही कारण था कि जब वे किसानों के पक्ष में कुछ बोलते थे तो यह नहीं लगता था कि कोई राजनेता किसानों के मुद्दे पर राजनीति कर रहा है। बल्कि ऐसा लगता था कि जैसे कोई किसान खुद खड़ा होकर अपनी बात कह रहा है। इसी का परिणाम होता था कि उनकी बातें सीधे लोगों के दिल में उतर जाती थीं। आज ऐसे किसी भी अन्य नेता का सर्वथा अभाव है।
नीतीश के साथ मिलकर नई पार्टी बनाना चाहते थे चौधरी
केसी त्यागी के मुताबिक यह बात बहुत कम लोग ही जानते हैं कि चौधरी अजित सिंह और बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी एक साथ जनता दल में काम किया करते थे। दोनों नेता साथ मिलकर एक नई पार्टी के गठन पर भी गंभीरता के साथ विचार कर रहे थे। उनकी इसी सोच के कारण छपरौली में एक बड़ी जनसभा हुई थी। हालांकि, यह विचार तो कई कारणों से सफल नहीं हो पाया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच हमेशा बहुत मधुर संबंध बने रहे।चरण सिंह के अनुयायी और राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव त्रिलोक त्यागी के मुताबिक अजित सिंह के जाने से राजनीति से भले और शरीफ नेताओं की पूरी पीढ़ी का चले जाना है।त्रिलोक त्यागी ने कहा कि अजित सिंह के दिल में हमेशा किसानों के लिए खास जगह रही है और वह मौजूदा किसान आंदोलन के समर्थन में भी खुलकर खड़े थे।
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