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यूपी के फतेहपुर में कहर बनकर टूटा ‘रहस्यमयी बुखार’, 100 लोगों की मौत ने सबको चौंकाया

देश व यूपी के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार फतेहपुर पर ‘रहस्यमयी बुखार’ कहर बनकर टूटा गांव ललौली में बीते एक महीने में 100 से ज्यादा लोगों की मौत, 10 कब्रिस्तान में दफनाया गया23 अप्रैल को सबसे ज्यादा 7 लोगों की मौत से यह गांव दहल उठा था, किसी को इलाज नहीं मिलाचंद्रभान सिंह, फतेहपुरदेश के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार फतेहपुर पर ‘रहस्यमयी बुखार’ कहर बनकर टूटा है। यमुना तटवर्ती गांव ललौली में बीते एक महीने में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। गांव के 10 कब्रिस्तानों में इन्हें दफनाया गया है। ग्रामीणों का कहना है कि मौतों की वजह तेज बुखार और सांस फूलना था। किसी को कहीं इलाज नहीं मिला। 23 अप्रैल को सबसे ज्यादा 7 लोगों की मौत से कस्बेनुमा यह गांव दहल उठा था।हर दिन 1-2 मौतेंफतेहपुर जिले में 26 अप्रैल को पंचायत चुनावों के लिए मतदान होना था। जिले के बाकी क्षेत्रों की तरह यहां भी प्रचार के साथ संक्रमण का ग्राफ बढ़ रहा था। जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर बांदा हाइवे के किनारे बसी ललौली ग्राम सभा में जुकाम, बुखार और सांस फूलने की समस्या के रोगी बढ़े। गांव के नव निर्वाचित प्रधान शमीम अहमद के अनुसार, 10 अप्रैल को पहले मरीज की मौत हुई। लोगों ने इसे जुकाम बिगड़ने और तेज बुखार का केस मान नजरअंदाज कर दिया, लेकिन केस बढ़ते रहे। इसके बाद हर दिन 1-2 लोगों की इन लक्षणों के साथ मौत होने लगी।एक कब्रिस्तान में दफन हुए 30 लोगबीमारों को लेकर लोग सबसे पहले फतेहपुर जिला अस्पताल पहुंचते थे, लेकिन वहां इन्हें भर्ती नहीं किया जाता था। कानपुर और बांदा के अस्पतालों में भी इलाज नहीं मिला। कुछ पैरा-मेडिकल स्टाफ की मदद से ऑक्सिजन सिलिंडर जैसी चीजों का इंतजाम किया गया, लेकिन यह नाकाफी था। बकौल शमीम, 23 अप्रैल का दिन गांव के लिए डरावना था। 7 लोगों के जनाजे उठे। 50 हजार की आबादी वाला कस्बेनुमा गांव कांप उठा। मुस्लिम बहुल आबादी में करीब 10 कब्रिस्तान हैं। यहां मृतकों की कब्रों की मिट्टी मामला ज्यादा पुराना नहीं होने की गवाही दे रही है। एक कब्रिस्तान में तो 30 शव दफनाए गए हैं।परिवार के 4 लोगों की मौतगांव के सूफियान कहते हैं कि 10 दिनों में उनके परिवार के 4 लोगों ने दम तोड़ दिया। किसी को कोई इलाज नहीं मिल सका। वह खुद भी बीमार हुए। काढ़ा पीकर लंबे संघर्ष के बाद उनकी तबीयत ठीक हुई। फैजान कहते हैं कि उनके चाचा को गले में दर्द और सांस लेने में तकलीफ के बाद मौत हो गई थी। लेकिन टेस्ट न होने से बीमारी के बारे में पता नहीं। गांव में ‘रहस्यमयी बुखार’ से आखिरी मौत 13 मई को हुई। बुखार और सांस फूलने से गुलाम हुसैन की पत्नी बिस्मिल्लाह ने दम तोड़ दिया। शकील का कहना है कि लोगों में जागरूकता की जबरदस्त कमी है। कई लोगों ने कोरोना के खतरे को हवा में उड़ा देने से ऐसे हालात हुए।स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर नहींगांव के लोगों के इलाज का जिम्मा नजदीकी अतिरिक्त पीएचसी पर है। जहां सिर्फ मोबाइल के जरिए इलाज की सुविधा कभी-कभार उपलब्ध है। केंद्र सुबह 8 से शाम 4 बजे तक खुलता है।फतेहपुर की डीएम अपूर्वा दुबे ने बताया, ‘ललौली में कुछ दिनों में बीमारी से कई मौतों की सूचना मिली है। एसडीएम को जांच के लिए भेजा है। रिपोर्ट के बाद मौत की वजह पता चलेगी।’ वहीं ललौली के नवनिर्वाचित प्रधान शमीम का कहना है कि गांव में बुखार और सांस फूलने से एक महीने में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। ग्रामीणों का कहना है कि मौत की वजह कोविड है। सांकेतिक तस्वीर