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योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नहीं चलेगा बंगाल वाला फॉर्मूला, गैर-भाजपाई वोटरों को एक झंडे के नीचे लाना मुश्किल

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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव ने विपक्षी दलों के खेमे में एक उम्मीद पैदा कर दी थी। वह उम्मीद थी कि अगर वह गैर-भाजपाई वोटरों को एक साथ सहेजने में सफल हो जाता है तो उसके लिए भाजपा को रोकना आसान हो जाएगा। लेकिन पश्चिम बंगाल के बाद पहले ही बड़े चुनाव में यह फॉर्मूला सफल होता नहीं दिख रहा है। अपने-अपने राजनीतिक कारणों से उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और कांग्रेस का एक साथ आना संभव होता नहीं दिख रहा है। इस कारण वोटरों का ध्रुवीकरण होना भी संभव नहीं होगा।माना जाता है कि बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं के लिए ममता बनर्जी पहली पसंद थीं, लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा चयन कर पाना उनके लिए भी आसान नहीं होगा। पूरे प्रदेश में लगभग 19.3 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम मतदाताओं के लिए किसी एक राजनीतिक दल को वोट देने की स्थिति में न होने से इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है।
क्या गैर-भाजपाई वोटरों को एक साथ लाने की होगी कोशिश
समाजवादी पार्टी की नेता जूही सिंह ने से कहा कि पश्चिम बंगाल की परिस्थितियां अलग थीं। वहां ममता बनर्जी के सामने विपक्ष का कोई भी दूसरा बड़ा दल मजबूत स्थिति में नहीं था, लिहाजा वोटरों के पास एक स्पष्ट विकल्प था कि उसे भाजपा को वोट करना है, या ममता बनर्जी को वोट देना है। लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसी परिस्थितियां नहीं हैं। इसके पूर्व के चुनावों में कुछ दलों के साथ लड़ने की कोशिशें हुई थीं, लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि स्वयं जनता को ही यह गठजोड़ पसंद नहीं आया। इसलिए इस बार समाजवादी पार्टी अपने ही बूते पर मैदान में उतरेगी और जीत हासिल करेगी।उन्होंने कहा कि जहां तक गैर-भाजपाई वोटरों को एक साथ लाने की बात है, हम समाज के सभी वर्गों को एक साथ लेकर चलते रहे हैं और इस बार भी हमारी कोशिश होगी कि हम समाज के सभी वर्गों को एक साथ लें। यह काम केवल बातों में नहीं होगा, बल्कि टिकट वितरण में भी यही बात दिखाई पड़ेगी। पूर्व में भी हमने समाज के सभी वर्गों को एक साथ लाने की कोशिश की है और हमें उम्मीद है कि जनता हमें अपना विश्वास देगी।
काम नहीं आएगा बंगाल फार्मूला- भाजपा
भारतीय जनता युवा मोर्चा अवध प्रांत के उपाध्यक्ष शैलेन्द्र शर्मा कहते हैं कि बंगाल फॉर्मूला उत्तर प्रदेश में सफल नहीं हो सकता। यहां सपा-बसपा और कांग्रेस अलग-अलग तरीके से साथ आकर चुनाव लड़कर देख चुके हैं। ये सभी प्रयोग यहां असफल साबित हुए हैं क्योंकि जनता ने इस तरह की किसी सोच को नकार दिया है। इस चुनाव में भी विपक्ष के साथ आने की कोई संभावना बनती नहीं दिखाई दे रही है।दूसरी बात, विपक्ष के तमाम दुष्प्रचार के बाद भी जनता ने यह देखा है कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने किस प्रकार से कोरोना काल में लोगों की मदद की है। केवल एक महीने में कोरोना के मामले 40 हजार से घटकर चार हजार पर आ गये हैं। इसी दौरान जनता की मदद के हर संभव उपाय किये गये हैं और लोगों को राशन-रोजगार की मदद की गई है। उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ सरकार को जनता का पूरा विश्वास मिलेगा और भाजपा फिर से प्रचंड ताकत से सरकार बनाएगी।
सभी को साथ लेकर जीतेंगे चुनाव
वहीं, राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव तारिक मुस्तफा का कहना है कि जनता ने बार-बार यह दिखा दिया है कि वह किसी एक दल को नहीं चुनती। मुस्लिम मतदाताओं के मामले में भी अलग-अलग समीकरणों में उसकी पसंद बदलती रही है। इस बार भी जो उसके लिए बेहतर उम्मीदें लेकर आएगा, उसका साथ उसी को मिलेगा। उन्होंने कहा कि मुस्लिम मतदाताओं के लिए वही पसंद बनेगा जो उनके लिए विकास की ज्यादा बेहतर संभावना पैदा कर सकेगा।उन्होंने कहा कि उम्मीदवारों के आधार पर ही मुस्लिम मतदाता यह तय कर सकते हैं कि उनकी पसंद में पहले नंबर पर कौन आ सकता है, लेकिन अभी से इसकी अटकलबाजी कर पाना मुश्किल है। उन्होंने दावा किया कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल अभी से इस वर्ग की पहली पसंद बने हुए हैं।