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आयुर्वेद से लोगों की बीमारी कर रहे ठीक, 150 साल पहले आयुर्वेदिक औषधालय की रखी गई थी नींव

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हमीरपुरउत्तर प्रदेश के महोबा में डेढ़ सौ साल पहले जनसेवा के लिए शुरू किया गया आयुर्वेदिक औषधालय में असाध्य बीमारी छूमंतर होती है। औषधालय में सातवीं पीढ़ी के डॉक्टरों ने कोरोना संक्रमण काल में सैकड़ों गरीबों को बीमारी से निजात दिलाई है। ये डॉक्टर हमीरपुर के रहने वाले हैं, जो अपने पूर्वजों के जरिये शुरू की गई समाजसेवा की इस परम्परा को आज भी आगे बढ़ा रहे हैं। डॉ. आत्मप्रकाश वर्मा ने बताया कि समाजसेवा की परम्परा पिता डॉ. ओमप्रकाश ने शुरू की थी। आयुर्वेदिक कॉलेज झांसी से डॉक्टरी की परीक्षा पास करने के बाद कुलपहाड़ में आयुर्वेदिक एवं होम्योपैथिक से चिकित्सा से जुड़े थे। डेढ़ सालों से शिव औषधालय के जरिये गरीबों और लाचार लोगों को सस्ता एवं उत्कृष्ट इलाज देने की दौर शिवदयाल (दद्दू वैद्य) ने शुरू किया था। शुरू में हमीरपुर के बरदहा गांव में आयुर्वेदिक पद्धति से लोगों का इलाज किया गया, फिर यहां से इनकी एक-एक कर कई पीढ़ी पड़ोसी जिले महोबा और झांसी में शिफ्ट होकर समाजसेवा में जुट गई है।दक्षिण भारत की प्रख्यात आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज होता हैडॉ. ओमप्रकाश अपनी पीढ़ी में सबसे बड़े पुत्र थे। जिन्होंने औषधालय का संचालन कर पूरे परिवार को एकता के सूत्र में बांधकर पूर्वजों के आदर्शों को नया आयाम दिया। सातवीं पीढ़ी में उनके पुत्र डॉ. आत्मप्रकाश वर्मा एवं पुत्र वधू डॉ. दीपिका प्रकाश दक्षिण भारत की प्रख्यात आयुर्वेदिक पद्धति से इलाज करती हैं। पुरुषों व महिलाओं की तमाम असाध्य बीमारियों का पंचकर्मा विधि से बिना कोई स्वार्थ के इलाज भी ये करती है। डा.आत्मप्रकाश वर्मा ने बताया कि पिछले डेढ़ सालों में अभी तक लाखों मरीजों को असाध्य बीमारी से निजात दिलाकर नया जीवन दिया जा चुका है।यूरोपियन देशों में भी आयुर्वेद की जगाई अलखडॉ. आत्मप्रकाश वर्मा ने यूरोपियन देशों में भी आयुर्वेद की अलख जगाई है। इसके बाद वर्ष 2009 में महोबा के कुलपहाड़ में शिव औषधालय में पारिवारिक परम्परा का निर्वहन करते हुए पूर्वजों का नाम रोशन ये कर रहे हैं। वहीं, इनकी पत्नी डॉ. दीपिका भी आयुर्वेदिक असाध्य रोगों का इलाज कर रही हैं। इनके यहां हमीरपुर, बांदा, झांसी, समथर, दतिया, ग्वालियर, सागर, दमोह, जबलपुर, बिलासपुर और रीवा आदि से कठिन रोगों से पीड़ित मरीज इलाज कराकर अब निरोगी जीवन जी रहे हैं।जब रामदेव ने कहा- ‘किसी के बाप में दम नहीं जो बाबा को अरेस्‍ट कर सके’विश्व में फैले इनफ्लूएंजा महामारी में भी सेवाओं के लिए मिला था सम्मानडॉ. आत्मप्रकाश वर्मा ने बताया कि शिवदयाल के तीनों पुत्र वैद्य थे। ज्येष्ठ पुत्र के निधन के बाद दूसरे पुत्र बद्रीप्रसाद ने शिव औषधालय संचालित किया। वर्ष 1918 में विश्व में फैले इनफ्लूएंजा महामारी में उन्होंने अपने इलाज से सैकड़ों लोगों को बीमारी से निजात दिलाई थी। उन्हें उत्तर प्रदेश के वैद्य सम्मेलन कानपुर व झांसी में सम्मानित किया गया था। गवर्नर हाईकोर्ट बटलर ने भी सोने के मेडल से उन्हें सम्मानित किया था।