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कुरुक्षेत्र: हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के ध्वजवाहक योगी को संघ का पूर्ण संरक्षण, इस बार नेतृत्व शून्यता नहीं चाहता आरएसएस

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सार
संघ दूरगामी योजना के तहत हर फैसला लेता है जबकि भाजपा या कोई भी राजनीतिक दल तत्कालिक आवश्यकताओं के मुताबिक अपने निर्णय लेते हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ को उसके बाद लोकसभा और विधानसभा के जितने भी चुनाव हुए पूरे देश में अलग-अलग राज्यों में स्टार प्रचारक बनाकर प्रचार के लिए भेजा गया। जैसे कभी मोदी को भेजा जाता था…

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अभयदान दे दिया है। लेकिन साथ ही संघ का यह भी मानना है कि योगी को भी अपने रुख में थोड़ा नरमी लाते हुए विधान परिषद सदस्य अरविंद कुमार शर्मा को अपने मंत्रिमंडल में उचित स्थान देना चाहिए। जबकि सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी अरविंद कुमार शर्मा को अधिक से अधिक अपने मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री बनाने को राजी हैं, वहीं केंद्रीय नेतृत्व शर्मा को कैबिनेट मंत्री बनाने के साथ साथ उन्हें गृह एवं गोपन नियुक्ति जैसा अहम विभाग देने के पक्ष में है जिससे उत्तर प्रदेश की नौकरशाही पर अंकुश लग सके और तालमेल व समन्वय बेहतर हो सके।लेकिन योगी और उनके समर्थक इसमें राज्य में समानांतर सत्ता का नया शक्ति केंद्र बनने का खतरा देखते हैं। माना जा रहा है कि संघ नेतृत्व पिछले चार-पांच महीने से चल रही इस खींचतान में बीच का रास्ता निकालना चाहता है। राजधानी में चल रही भारतीय जनता पार्टी के मातृ संगठन और वैचारिक गंगोत्री माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेतृत्व की तीन दिवसीय बैठक के दूसरे दिन उत्तर प्रदेश को लेकर हुई चर्चा का यही निष्कर्ष निकलकर आया है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नजदीक से समझने और देखने वाले एक हिंदुत्ववादी विचारक के मुताबिक दरअसल योगी आदित्यनाथ को संघ ने अपने वीटो का इस्तेमाल करके अपनी एक वृहद योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश की कमान तब सौंपी थी, जब 2017 में न तो योगी के नाम पर उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ा गया था और न ही उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था। बल्कि सबसे ज्यादा नाम तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के लिए जा रहे थे।लेकिन संघ नेतृत्व ने आखिरी वक्त में अपने वीटो का इस्तेमाल करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की सलाह दी, जिससे मौर्य और सिन्हा दोनों पीछे छूट गए थे और योगी आदित्यनाथ की लखनऊ में आपात लैंडिग हो गई थी। क्योंकि संघ योगी को उसी तरह मोदी युग के बाद की भाजपा के शीर्ष नेता के रूप में तैयार कर रहा है जैसे कि वाजपेयी आडवाणी युग की भाजपा के बाद नरेंद्र मोदी को संघ ने आगे किया।संघ दूरगामी योजना के तहत हर फैसला लेता है जबकि भाजपा या कोई भी राजनीतिक दल तत्कालिक आवश्यकताओं के मुताबिक अपने निर्णय लेते हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ को उसके बाद लोकसभा और विधानसभा के जितने भी चुनाव हुए पूरे देश में अलग-अलग राज्यों में स्टार प्रचारक बनाकर प्रचार के लिए भेजा गया। जैसे कभी मोदी को भेजा जाता था।
नाम न छापने के अनुरोध के साथ संघ के एक पदाधिकारी का कहना है कि संघ योगी को मोदी का विकल्प नहीं बल्कि उनके बाद की भाजपा के लिए तैयार कर रहा है। जब तक नरेंद्र मोदी राजनीति में सक्रिय हैं, वही भाजपा और सरकार के शीर्ष नेता हैं और रहेंगे। लेकिन उनके सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद नेतृत्व शून्यता नहीं पैदा होनी चाहिए जैसी कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद पैदा हो गई थी इसलिए संघ की कोशिश है कि भाजपा में दूसरी पंक्ति के कुछ मजबूत नेता समय रहते तैयार हो जाएं।अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के उदारवादी युग के नेता थे जो सबको स्वीकार थे और नरेंद्र मोदी राजनीति के विकासवादी युग के नेता हैं जिन्होंने देश विदेश में विकास और सुशासन में अपनी छाप छोड़ी और राजनीति का अगला युग प्रखर राष्ट्रवाद का है जिसमें योगी जैसा प्रखर राष्ट्रवादी और द़ृढ़ हिंदुत्ववादी नेता ही भाजपा को आगे ले जा सकता है। इसलिए संघ किसी भी सूरत में योगी आदित्यनाथ को कमजोर नहीं होने देगा।बताया जाता है कि पिछले दो दिनों से राजधानी में चल रही संघ के शीर्ष नेतृत्व की बैठक में यह सहमति बनी है जिसे संघ द्वारा भाजपा को अवगत करा दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक संघ में यह राय भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष की लखनऊ यात्रा के बाद तैयार रिपोर्ट पर चर्चा करने के बाद बनी है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेतृत्व की बैठक गुरुवार से दिल्ली में हो रही है जो शनिवार तक चलेगी।बैठक में सर संघचालक मोहन भागवत, सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले समेत संघ के सभी प्रमुख पदाधिकारी शामिल हैं। बैठक में पहले दिन पश्चिम बंगाल की मौजूदा स्थिति और कोरोना को लेकर उत्पन्न स्थिति पर चर्चा हुई। दूसरे दिन शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति पर गंभीर चिंतन मनन हुआ। संघ नेतृत्व ने सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष की हाल ही में की गई लखनऊ यात्राओं के बाद दी गई रिपोर्ट पर विचार विमर्श हुआ।
सूत्रों के मुताबिक दोनों ही रिपोर्ट के आधार पर संघ नेतृत्व उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के कामकाज से संतुष्ट है। संघ का मानना है कि कोविड संक्रमण की पहली लहर में जहां योगी सरकार ने सफलता पूर्वक कोरोना को नियंत्रित किया वहीं दूसरी लहर में भी स्थिति को संभालने के पूरे प्रयास किए गए और उसमें सफलता भी मिली।संघ में एक स्वर से यह राय बनी है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल फरवरी मार्च में होने वाले विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़े जाने चाहिए। इसके साथ ही राज्य में सभी जातियों और समुदायों के सामाजिक संतुलन को साधने पर भी विचार हुआ और इसे लेकर संघ की राय है कि इस पर भाजपा नेतृत्व को अपने हिसाब से फैसला लेना चाहिए किसे क्या जिम्मेदारी दी जाए जिससे पार्टी मजबूती से चुनाव में विपक्ष की चुनौती का सामना कर सके।संघ की बैठक में उत्तर प्रदेश में योगी मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार और विधायकों की भावना पर भी चर्चा हुई। संघ नेतृत्व की राय है कि चुनाव में अब सिर्फ आठ महीने का समय है और दिसंबर तक ही सरकार कुछ कामकाज कर सकती है उसके बाद चुनावों की घोषणा और आचार संहिता का समय आ जाएगा। इसलिए सरकार के कामकाज गति देने, नौकरशाही के बीच समन्वय और संतुलन बनाने के लिए पूर्व आईएएस अरविंद कुमार जैसे अनुभवी प्रशासक को मंत्री बनाकर प्रदेश के विकास कार्यों से जुड़ी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से सरकार और पार्टी को लाभ हो सकता है।संघ नेतृत्व का मानना है कि किसी मंत्री को क्या विभाग दिया जाए यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है और यह उन्हें ही तय करना चाहिए। इसके साथ ही संघ ने कोरोना संकट के कारण सरकार की छवि को हुए नकुसान की भरपाई के लिए क्या किया जाना चाहिए इस पर भी चर्चा की और जल्दी ही संघ के सभी संगठन इस दिशा में सक्रिय होंगे।

विस्तार

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अभयदान दे दिया है। लेकिन साथ ही संघ का यह भी मानना है कि योगी को भी अपने रुख में थोड़ा नरमी लाते हुए विधान परिषद सदस्य अरविंद कुमार शर्मा को अपने मंत्रिमंडल में उचित स्थान देना चाहिए। जबकि सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी अरविंद कुमार शर्मा को अधिक से अधिक अपने मंत्रिमंडल में राज्य मंत्री बनाने को राजी हैं, वहीं केंद्रीय नेतृत्व शर्मा को कैबिनेट मंत्री बनाने के साथ साथ उन्हें गृह एवं गोपन नियुक्ति जैसा अहम विभाग देने के पक्ष में है जिससे उत्तर प्रदेश की नौकरशाही पर अंकुश लग सके और तालमेल व समन्वय बेहतर हो सके।

लेकिन योगी और उनके समर्थक इसमें राज्य में समानांतर सत्ता का नया शक्ति केंद्र बनने का खतरा देखते हैं। माना जा रहा है कि संघ नेतृत्व पिछले चार-पांच महीने से चल रही इस खींचतान में बीच का रास्ता निकालना चाहता है। राजधानी में चल रही भारतीय जनता पार्टी के मातृ संगठन और वैचारिक गंगोत्री माने जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेतृत्व की तीन दिवसीय बैठक के दूसरे दिन उत्तर प्रदेश को लेकर हुई चर्चा का यही निष्कर्ष निकलकर आया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को नजदीक से समझने और देखने वाले एक हिंदुत्ववादी विचारक के मुताबिक दरअसल योगी आदित्यनाथ को संघ ने अपने वीटो का इस्तेमाल करके अपनी एक वृहद योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश की कमान तब सौंपी थी, जब 2017 में न तो योगी के नाम पर उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ा गया था और न ही उन्हें मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा था। बल्कि सबसे ज्यादा नाम तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के लिए जा रहे थे।
लेकिन संघ नेतृत्व ने आखिरी वक्त में अपने वीटो का इस्तेमाल करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने की सलाह दी, जिससे मौर्य और सिन्हा दोनों पीछे छूट गए थे और योगी आदित्यनाथ की लखनऊ में आपात लैंडिग हो गई थी। क्योंकि संघ योगी को उसी तरह मोदी युग के बाद की भाजपा के शीर्ष नेता के रूप में तैयार कर रहा है जैसे कि वाजपेयी आडवाणी युग की भाजपा के बाद नरेंद्र मोदी को संघ ने आगे किया।
संघ दूरगामी योजना के तहत हर फैसला लेता है जबकि भाजपा या कोई भी राजनीतिक दल तत्कालिक आवश्यकताओं के मुताबिक अपने निर्णय लेते हैं। इसीलिए मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ को उसके बाद लोकसभा और विधानसभा के जितने भी चुनाव हुए पूरे देश में अलग-अलग राज्यों में स्टार प्रचारक बनाकर प्रचार के लिए भेजा गया। जैसे कभी मोदी को भेजा जाता था।

नाम न छापने के अनुरोध के साथ संघ के एक पदाधिकारी का कहना है कि संघ योगी को मोदी का विकल्प नहीं बल्कि उनके बाद की भाजपा के लिए तैयार कर रहा है। जब तक नरेंद्र मोदी राजनीति में सक्रिय हैं, वही भाजपा और सरकार के शीर्ष नेता हैं और रहेंगे। लेकिन उनके सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद नेतृत्व शून्यता नहीं पैदा होनी चाहिए जैसी कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद पैदा हो गई थी इसलिए संघ की कोशिश है कि भाजपा में दूसरी पंक्ति के कुछ मजबूत नेता समय रहते तैयार हो जाएं।अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति के उदारवादी युग के नेता थे जो सबको स्वीकार थे और नरेंद्र मोदी राजनीति के विकासवादी युग के नेता हैं जिन्होंने देश विदेश में विकास और सुशासन में अपनी छाप छोड़ी और राजनीति का अगला युग प्रखर राष्ट्रवाद का है जिसमें योगी जैसा प्रखर राष्ट्रवादी और द़ृढ़ हिंदुत्ववादी नेता ही भाजपा को आगे ले जा सकता है। इसलिए संघ किसी भी सूरत में योगी आदित्यनाथ को कमजोर नहीं होने देगा।बताया जाता है कि पिछले दो दिनों से राजधानी में चल रही संघ के शीर्ष नेतृत्व की बैठक में यह सहमति बनी है जिसे संघ द्वारा भाजपा को अवगत करा दिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक संघ में यह राय भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष की लखनऊ यात्रा के बाद तैयार रिपोर्ट पर चर्चा करने के बाद बनी है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष नेतृत्व की बैठक गुरुवार से दिल्ली में हो रही है जो शनिवार तक चलेगी।बैठक में सर संघचालक मोहन भागवत, सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले समेत संघ के सभी प्रमुख पदाधिकारी शामिल हैं। बैठक में पहले दिन पश्चिम बंगाल की मौजूदा स्थिति और कोरोना को लेकर उत्पन्न स्थिति पर चर्चा हुई। दूसरे दिन शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की राजनीतिक स्थिति पर गंभीर चिंतन मनन हुआ। संघ नेतृत्व ने सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और भाजपा के संगठन महासचिव बीएल संतोष की हाल ही में की गई लखनऊ यात्राओं के बाद दी गई रिपोर्ट पर विचार विमर्श हुआ।

सूत्रों के मुताबिक दोनों ही रिपोर्ट के आधार पर संघ नेतृत्व उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार के कामकाज से संतुष्ट है। संघ का मानना है कि कोविड संक्रमण की पहली लहर में जहां योगी सरकार ने सफलता पूर्वक कोरोना को नियंत्रित किया वहीं दूसरी लहर में भी स्थिति को संभालने के पूरे प्रयास किए गए और उसमें सफलता भी मिली।संघ में एक स्वर से यह राय बनी है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल फरवरी मार्च में होने वाले विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही लड़े जाने चाहिए। इसके साथ ही राज्य में सभी जातियों और समुदायों के सामाजिक संतुलन को साधने पर भी विचार हुआ और इसे लेकर संघ की राय है कि इस पर भाजपा नेतृत्व को अपने हिसाब से फैसला लेना चाहिए किसे क्या जिम्मेदारी दी जाए जिससे पार्टी मजबूती से चुनाव में विपक्ष की चुनौती का सामना कर सके।संघ की बैठक में उत्तर प्रदेश में योगी मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार और विधायकों की भावना पर भी चर्चा हुई। संघ नेतृत्व की राय है कि चुनाव में अब सिर्फ आठ महीने का समय है और दिसंबर तक ही सरकार कुछ कामकाज कर सकती है उसके बाद चुनावों की घोषणा और आचार संहिता का समय आ जाएगा। इसलिए सरकार के कामकाज गति देने, नौकरशाही के बीच समन्वय और संतुलन बनाने के लिए पूर्व आईएएस अरविंद कुमार जैसे अनुभवी प्रशासक को मंत्री बनाकर प्रदेश के विकास कार्यों से जुड़ी कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने से सरकार और पार्टी को लाभ हो सकता है।संघ नेतृत्व का मानना है कि किसी मंत्री को क्या विभाग दिया जाए यह मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है और यह उन्हें ही तय करना चाहिए। इसके साथ ही संघ ने कोरोना संकट के कारण सरकार की छवि को हुए नकुसान की भरपाई के लिए क्या किया जाना चाहिए इस पर भी चर्चा की और जल्दी ही संघ के सभी संगठन इस दिशा में सक्रिय होंगे।