जब बारिश की बूंदे धरती/पृथ्वी पर पड़ती हैं तो हमारा रोम-रोम पुलकित हो जाता है, पृथ्वी खुशी से मुस्कराने लगती है और ईश्वर का धन्यवाद करती है, लेकिन वर्तमान हालात ने पृथ्वी को मुस्कराने पर नहीं बल्कि सिसकने पर मजबूर कर दिया है। वजह साफ है सजीवों को जीवन प्रदान व पोषित करने वाली अनोखी और सुन्दर पृथ्वी को चारों ओर से क्षति पहुंचाने का कार्य चरम पर है, जो प्राकृतिक आपदा का प्रमुख कारक है।
मानव यह भूलता जा रहा है कि पृथ्वी हमसे नहीं, बल्कि पृथ्वी से हम हैं। यानि कि यदि पृथ्वी का अस्तित्व है तो हमारा अस्तित्व है, अन्यथा हमारा कोई मूल्य नहीं। यह बात मानव अपने मन-मस्तिष्क से निकाल व नजर अंदाज कर भारी गलती कर रहा है और इसका नतीजा मानव भुगत भी रहा है। दुनिया भर में प्रदूषण से लगभग 21 लाख लोग हर साल मौत की गोद में समा जाते हैं, यह जानते हुए भी हम पृथ्वी के अस्तित्व से खिलवाड़ करने पर लगातार उतारू हैं।
कुल मिलाकर पृथ्वी को मुख्यतः चार चीजों से खतरा है। पहला है, ग्लोबल वार्मिंग: विषेशज्ञ यह आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग ने मौसम को और भी मारक बना दिया है और आने वाले वर्षों में मौसम में अहम बदलाव होने की पूरी संभावना है। चक्रवात, लू, अतिवृष्टि और सूखे जैसी आपदाएं आम हो जायेंगी। धरती पर विद्यमान ग्लेशियर से पृथ्वी का तापमान संतुलित रहता है, लेकिन बदलते परिवेश ने इसे असंतुलित कर दिया है।
तापमान से बढ़ोतरी का अंदाजा वर्ष दर वर्ष सहज ही महसूस कर सकते हैं। कुछ दशक पहले अत्यधिक गर्मी पड़ने पर भी 38 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान हुआ करता था, लेकिन अब यह 50 सेे 55 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा है। लगातार बढ़ते तापमान से ग्लेश्यिर पिघलने लगा है और वह दिन दूर नहीं जब पूरी पृथ्वी को जलप्रलय अपने आगोश में ले लेगा। संयुक्त राष्ट्र की इंटर-गवर्मेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि धरती के बढ़ते तापमान और बदलती जलवायु के लिए कोई प्राकृतिक कारण नहीं, बल्कि इंसान की गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं। इसलिए अभी भी वक्त है कि हम समय रहते संभल जाएं।
बढ़ते तापमान से न केवल जलवायु परिवर्तन होने लगा है, बल्कि पृथ्वी पर ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होने लगी है। इससे कई बीमारियों का बोल-बाला बढ़ता जा रहा है और इसका मुख्य कारण है ग्रीनहाउस गैस, बढ़ती मानवीय गतिविधियां और लगातार कर रहे जंगल। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई एवं सिमटते जंगलों की वजह से भूमि बंजर और रेगिस्तान में तब्दील होती जा रही है। यदि भारत की ही बात करें तो यहां पिछले नौ सालों में 2.79 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र विकास की भेंट चढ़ गये, जबकि यहां पर कुल वन क्षेत्रफल 6,90,899 वर्ग किलोमीटर है।
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