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जब जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी को दी थी चुनौती,

कांग्रेस के युवा नेता जितिन प्रसाद कांग्रेस से लगभग 20 साल तक जुड़े रहने के बाद बीजेपी में शामिल हो रहे हैंअगले साल यूपी में होने वाले चुनावों के मद्देनजर जितिन का बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका हैपिछले साल गैर गांधी कांग्रेस अध्‍यक्ष की मांग करने पर पार्टी में उनका भारी विरोध हुआ थालखनऊकांग्रेस के युवा नेता जितिन प्रसाद कांग्रेस से लगभग 20 साल तक जुड़े रहने के बाद बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। अगले साल यूपी में होने वाले चुनावों के मद्देनजर राहुल गांधी के करीबी रहे जितिन का बीजेपी में शामिल होना कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है। पिछले साल गैर गांधी कांग्रेस अध्‍यक्ष की मांग करने पर पार्टी में उनका भारी विरोध हुआ था। लेकिन बगावत जितिन को परंपरा में मिली है। उनके पिता कुंअर जितेंद्र प्रसाद ने भी साल 2000 में कांग्रेस के अध्‍यक्ष पद के लिए सोनिया गांधी को चुनौती दी थी। जितिन प्रसाद का परिवार पारंपर‍िक तौर पर कांग्रेसी परिवार रहा है। उनके दादा ज्‍योति प्रसाद कांग्रेस सदस्‍य होने के साथ कई अहम पदों पर रहे। जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ने सन 1970 में यूपी विधान परिषद के सदस्‍य के तौर पर राजनीति में कदम रखा। इसके बाद पांचवीं लोकसभा के लिए 1971 में शाहजहांपुर से चुने गए। वह कांग्रेस के उपाध्‍यक्ष भी रह चुके थे। एक साल की सदस्‍यता… सोनिया बनीं अध्‍यक्षसाल 1998 में जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अध्‍यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो उन्‍हें कांग्रेस का सदस्‍य बने महज एक साल ही हुआ था। उन्‍होंने 1997 में ही कांग्रेस की प्राथमिक सदस्‍यता ली थी।

1998 में उन्‍होंने कांग्रेस का अध्‍यक्ष पद का चुनाव लड़ने का ऐलान किया। उस समय रहे कांग्रेस अध्‍यक्ष सीताराम केसरी के उस समय तक पांच साल पूरे नहीं हुए थे लेकिन वह इसका खुलकर विरोध नहीं कर सके। बगावत की सुगबुगाहट जारी थी कांग्रेस नेता जितेंद्र प्रसाद भी इससे सहमत नहीं थे लेकिन उन्‍होंने उस समय इसका विरोध नहीं किया। साल 1999 में शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने सोनिया के खिलाफ बगावत की। उनका कहना था कि इटली मूल की सोनिया गांधी भारत का प्रधानमंत्री नहीं बन सकतीं। विवाद बढ़ा और अंत में तीनों को पार्टी से निकाल दिया गया। बाद में इन्‍होंने नैशलिस्‍ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाई। पायलट और जितेंद्र प्रसाद के हाथ बगावत का झंडाइन तीनों के न रहने पर बगावत का झंडा राजेश पायलट और जितेंद्र प्रसाद के हाथ रहा।

दोनों ही वंशवाद के खिलाफ अपनी नाखुशी जाहिर कर चुके थे। जानकार बताते हैं कि 1998 में तो राजेश पायलट ही सोनिया के खिलाफ अध्‍यक्ष पद के लिए खड़ा होना चाहते थे। इनका तर्क था कि सोनिया से और काबिल और अनुभवी नेता कांग्रेस में हैं तो बागडोर उनके हाथ में होनी चाहिए। राजेश पायलट की दुर्घटना में मृत्‍युसाल 2000 में राजेश पायलट ने योजना बनाई कि वह सोनिया के खिलाफ अध्‍यक्ष पद के लिए खड़े होंगे। उन्‍होंने जितेंद्र प्रसाद के साथ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जन्‍मदिन 21 मई को जबर्दस्‍त रैली भी की। लेकिन किस्‍मत को कुछ और ही मंजूर था। इसके 20 दिन के भीतर 11 जून को उनकी एक कार दुर्घटना में मौत हो गई। साल 2000 में जितेंद्र प्रसाद ने दी चुनौती अब बगावत का झंडा थामने को सिर्फ जितेंद्र प्रसाद का हाथ रह गया। अब उन्‍होंने 2000 के अध्‍यक्ष पद के चुनाव में सोनिया का विरोध करने की ठानी। वह सोनिया के मुकाबले अध्‍यक्ष पद के लिए खड़े हुए। नवंबर 2000 में चुनाव हुए, लेकिन उन्‍हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। चुनाव में पड़े 7,542 वोटों में से उन्‍हें महज 94 वोट मिले।