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इस बार प्रियंका ने जितिन प्रसाद को नहीं मनाया, पता भी था लेकिन चुप्पी साध ली

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जितिन प्रसाद कांग्रेस के उन 23 नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को संगठनात्मक सुधार को लेकर पत्र लिखा था। 2019 से जितिन के भाजपा में आने की खबरें आ रही थीं, लेकिन आज उन्होंने इन खबरों पर विराम लगा दिया। पिछले साल भी जितिन प्रसाद को प्रियंका गांधी ने मनाया था। पार्टी ने उनका कद बढ़ाने का संकेत देते हुए उन्हें संगठन की सर्वोच्च संस्था कार्यसमिति में लाकर पश्चिम बंगाल का प्रभारी भी बनाया था। लेकिन इस बार न तो कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने उन्हें मनाया और न ही राहुल गांधी ने कोशिश की। पार्टी के शीर्ष नेता कहते हैं कि जितिन पार्टी में एक चेहरा जरूर थे, लेकिन उनका उत्तर प्रदेश में कोई जनाधार नहीं है। वह तो हर बार जिम्मेदारी लेने से भी भागते रहे हैं।

कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में जितिन प्रसाद को लखनऊ से राजनाथ सिंह के खिलाफ उतारना चाहती थी, लेकिन जितिन ने काफी नखरे दिखाए। हारकर पार्टी ने उनके स्थान पर आनन-फानन में आचार्य प्रमोद कृष्णम को टिकट दिया। कांग्रेस की मंशा जितिन प्रसाद को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा तक घोषित करने की थी, लेकिन इस प्रस्ताव पर भी उन्होंने रूचि नई दिखाई। राज्य में संगठन में कोई भी बड़ी जिम्मेदारी लेने से वह बचते रहे। प्रियंका गांधी के कार्यालय के सूत्र की मानें तो इसके उलट वह लगातार पार्टी के नेतृत्व पर दबाव बनाने में पीछे नहीं रहे।उत्तर प्रदेश कांग्रेस के एक बड़े पदाधिकारी का कहना है कि जितिन प्रसाद ने ब्राह्मणों को पार्टी से जोड़ने का बीड़ा उठाया था, लेकिन वह पिछले सात वर्षों में किसी भी अभियान में सफल नहीं हो पाए थे। 2014 का लोकसभा, 2017 का विधानसभा चुनाव जीतने में भी जितिन प्रसाद सफल नहीं रहे।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने जितिन प्रसाद को क्या कुछ नहीं दिया, लेकिन जब पार्टी को नेताओं कार्यकर्ताओं की आवश्यकता थी तो उन्होंने विश्वासघात किया। जितिन प्रसाद के दोस्त, उनके साथ केन्द्रीय मंत्री रहे नेता का  कहना है कि उनके पिता जितेंद्र प्रसाद भी हार्ड बार्गेनर थे। जितिन प्रसाद ने भी उसी इतिहास को दोहराया। वह भाजपा में गए हैं। हो सकता है कि वहां एमएलसी बना दिए जाएं या राज्यसभा की सदस्यता मिल जाए। उनकी कांग्रेस पार्टी में यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी। लेकिन मेरे हिसाब से जितिन प्रसाद ने कुछ नया नहीं किया। उनसे काफी पहले से ऐसा करने की उम्मीद की जा रही थी। यह पूछे जाने पर कि क्या सचिन पायलट भी ऐसा कर सकते हैं? सूत्र का कहना है कि कौन क्या करेगा, यह नहीं बताया जा सकता, लेकिन जितिन प्रसाद और सचिन पायलट में काफी फर्क है।
जितिन प्रसाद के भाजपा में जाने से क्या फर्क पड़ेगा?
कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि हमें यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि वह एक राजनीतिक परिवार से थे। उनके पिता जितेन्द्र प्रसाद पार्टी के कद्दावर नेताओं में थे। इसी वजह से उन्हें लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया था और केन्द्र सरकार में मंत्री बनाए गए थे। उत्तर प्रदेश कांग्रेस में धाक रखने वाले एक नेता का कहना है कि वह पार्टी के तमाम चेहरों में एक चेहरा थे, लेकिन अपना कोई जनाधार नहीं बना सके थे। इसलिए मैं उन्हें जनाधार वाला नेता नहीं कहूंगा। इसलिए उनके जाने से शाहजहांपुर में भी कांग्रेस को कोई बड़ा नुकसान नहीं होने वाला है। हां, भाजपा को इससे अपने लिए सकारात्मक माहौल बनाने में कुछ मदद मिल सकती है।

विस्तार

जितिन प्रसाद कांग्रेस के उन 23 नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को संगठनात्मक सुधार को लेकर पत्र लिखा था। 2019 से जितिन के भाजपा में आने की खबरें आ रही थीं, लेकिन आज उन्होंने इन खबरों पर विराम लगा दिया। पिछले साल भी जितिन प्रसाद को प्रियंका गांधी ने मनाया था। पार्टी ने उनका कद बढ़ाने का संकेत देते हुए उन्हें संगठन की सर्वोच्च संस्था कार्यसमिति में लाकर पश्चिम बंगाल का प्रभारी भी बनाया था। लेकिन इस बार न तो कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने उन्हें मनाया और न ही राहुल गांधी ने कोशिश की। पार्टी के शीर्ष नेता कहते हैं कि जितिन पार्टी में एक चेहरा जरूर थे, लेकिन उनका उत्तर प्रदेश में कोई जनाधार नहीं है। वह तो हर बार जिम्मेदारी लेने से भी भागते रहे हैं।

कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में जितिन प्रसाद को लखनऊ से राजनाथ सिंह के खिलाफ उतारना चाहती थी, लेकिन जितिन ने काफी नखरे दिखाए। हारकर पार्टी ने उनके स्थान पर आनन-फानन में आचार्य प्रमोद कृष्णम को टिकट दिया। कांग्रेस की मंशा जितिन प्रसाद को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा तक घोषित करने की थी, लेकिन इस प्रस्ताव पर भी उन्होंने रूचि नई दिखाई। राज्य में संगठन में कोई भी बड़ी जिम्मेदारी लेने से वह बचते रहे। प्रियंका गांधी के कार्यालय के सूत्र की मानें तो इसके उलट वह लगातार पार्टी के नेतृत्व पर दबाव बनाने में पीछे नहीं रहे।