आगामी वर्षाकाल में 30 करोड़ पौधरोपण कार्यक्रम को कुपोषण निवारण एवं प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि केन्द्रित बनाया जा रहा है। प्रदेशवासियों विशेषकर महिलाओं, बच्चों एवं निर्बल व निर्धन वर्ग में कुपोषण व भोजन की समस्या के दृष्टिगत सहजन एवं गरीबों के जीवन में उपयोगिता के कारण ‘‘गरीब का भोजन‘‘ की उपमा से विभूषित महुआ पौध का रोपण वृहद् स्तर पर किया जा रहा है।
यह जानकारी मुख्य वन संरक्षक, प्रचार-प्रसार श्री मुकेश कुमार ने दी है। उन्होंने बताया कि सहजन तीव्र गति से बढ़ने वाला मध्यम आकार व लम्बी फलियों वाला पर्णपाती वृक्ष है। सहजन सूखा सहन करने वाला वृक्ष है। सहजन का उत्पत्ति स्थान भारत है। नई पत्तियों व फलियों का उपयोग सब्जी व पराम्परागत औषधि के रूप में होने के कारण वन विभाग द्वारा विभागीय वृक्षारोपण कार्यक्रमों में सहजन का रोपण वृहद् स्तर पर किया जा रहा है, वन विभाग की नर्सरी में 78 लाख से अधिक पौधे हैं।
मुकेश कुमार ने बताया कि सहजन की पत्तियों एवं फलों में कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन प्रचुर मात्रा पाया जाता है। सहजन की पत्तियों, बीज व फल से गठिया, मधुमेह, चर्मरोग सहित विभिन्न रोगों की औषधियां तैयार होती हैं। सहजन के पौधे बीज बुवान, पौधशाला में पौध विकसित कर एवं कटिंग द्वारा रोपण क्षेत्रों में लगाए जा रहे हैं।
श्री मुकेश कुमार ने बताया कि महुआ मोटे तने, फैली शाखाओं, गोल छत्र वाला विशाल व बहु उपयोगी वृक्ष है। इसके मीठे फूल आदिवासियों और गॉवों के निर्धन परिवारों का मुख्य भोजन है। इसे कच्चा या पका कर खाने, सुखाकर आटे में मिलाकर रोटी बनाने के काम में लाया जाता है। यह अति निर्धन वर्ग के ग्रामवासियों का मुख्य भोजन होने के कारण वृक्षारोपण क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोपित किया जा रहा है। प्रदेश की पौधशालाओं में महुआ के 8.30 लाख से अधिक पौधे रोपण हेतु उपलब्ध हैं।
श्री मुकेश कुमार ने बताया कि कुपोषण निवारण एवं प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने वाले कुल फलदार 61264367 तथा औषधीय एवं सुगन्धित 43602062 पौधे वन विभाग की पौधशालाओं में आगामी वर्षाकाल में रोपण हेतु उपलब्ध हैं जिनसे जनता के कुपोषण निवारण एवं प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होगी।
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