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नोएडा में 50 से अधिक प्राइवेट स्कूल बंद होने के कगार पर

महामारी का सबसे अधिक असर प्री प्राइमरी और प्राइमरी स्कूलों पर पड़ा है। जिले में 50 से अधिक निजी प्राइमरी स्कूल बंद होने की कगार पर पहुंच गए हैं। हाल यह है कि 40 फीसदी से भी कम बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। स्कूलों का कहना है कि अभिभावक फीस भी नहीं दे रहे। ऐसे में शिक्षकों को नौकरियों से हाथ धोना पड़ रहा है या फिर वेतन में जबरदस्त कटौती झेल रहे हैं। गौतमबुद्ध नगर स्कूल एसोसिएशन के सचिव और किड्स विले पब्लिक स्कूल के निदेशक हिमांशु राणा का कहना है कि प्री प्राइमरी (नर्सरी से अपर केजी तक) और प्राइमरी (कक्षा पांच तक) के स्कूलों की हालत पिछले डेढ़ वर्षों में खराब हो गई है।

उन्होंने बताया कि स्कूल में छात्रों की संख्या अब 40 फीसदी रह गई है। ऑनलाइन क्लॉस में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को दिक्कत तो है, लेकिन स्कूलों और शिक्षकों की परेशानी कोई नहीं समझता। फीस नहीं देने के लिए कई अभिभावक स्कूल पर अनर्गल आरोप लगाते हैं। इसके बाद फीस दिए बिना ही दूसरे स्कूल में बिना टीसी के दाखिला करा लेते हैं। ग्रेड पब्लिक स्कूल की प्रधानाचार्या अदिति बसु का कहना है कि प्राइमरी कक्षाओं में मात्र दस विद्यार्थी बचे हैं। बड़ी कक्षाओं में तो विद्यार्थी पढ़ रहे हैं, लेकिन प्राइमरी कक्षाओं में अभिभावक बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते। ऐसे में शिक्षकों का वेतन निकालना भी मुश्किल हो रहा है। उनका कहना है कि कई स्कूलों ने स्टाफ सीमित करना शुरू कर दिया है। इससे शिक्षकों की नौकरी जा रही है। इसके अलावा बचे हुए शिक्षकों को 50 से 70 फीसदी ही वेतन मिल पा रहा है।

डेल्टा-3 स्थित एक स्कूल की प्रधानाचार्या प्रज्ञा वर्मा ने बताया कि प्राइमरी स्कूलों के लिए सरकार को योजना लानी चाहिए। यहां शिक्षण के बिना ही बिजली बिल भरना पड़ रहा है। वहीं, ट्रांसपोर्ट और मेंटेनेंस का खर्च भी उठाना पड़ रहा है। ऐसे में सरकार नहीं सोचेगी तो रोजगार डूब जाएंगे। वहीं, गौतमबुद्ध नगर स्कूल एसोसिएशन के सचिव हिमांशु राणा ने बताया कि नियमों के साथ स्कूलों को खोलने का आदेश आए, तब जाकर ही प्राइमरी स्कूल और बच्चों का विकास हो पाएगा। सप्ताह में दो से तीन दिन कम संख्या में बच्चों को बुलाकर पढ़ाने की अनुमति मिलनी चाहिए। पढ़ाई के दौरान नियमों का पालन भी जरूरी है, ताकि बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव नहीं पड़े।

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