Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

आम लोगों की जिंदगी से खेल रहा परिवहन निगम, कंडम बसों से ढोई जा रही हैं सवारियां

आरबी लाल, बरेलीउत्तर प्रदेश परिवहन निगम से संचालित बसों में सफर करने का मतलब सीधे तौर पर जोखिम उठाना है। बारिश में छत से बारिश का पानी टपकता है। खिड़कियों में शीशे टूटे होने से बारिश का पानी अंदर आता है। तमाम बसों में फर्श भी टूटी हुई है। इससे सड़कों का कीचड़ भी अंदर आ जाता है। रास्ते में बस खराब हो गई तो घंटों इंतजार करो। कई बसें तो लहराती हुई चलाई जाती हैं। पूरे सफर भर यात्रियों को डर बना रहता है कि अब टकराई या अब पलटी। इस तरह डर के बीच पूरे सफर में यात्री किसी तरह से अपने गंतव्‍य तक पहुंचकर भगवान का आभार जताते हैं।दरअसल, बरेली परिक्षेत्र की ही बात करें तो यहां परिवहन निगम की ओर से लगभग आधी बसें ऐसी चलाई जा रही हैं, जो इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि वे सड़क पर चलने लायक नहीं रह गई हैं। लगभग डेढ़ सौ बसों में से तकरीबन 70 बसों को परिवहन निगम का ही तकनीकी अनुभाग सड़क पर चलाने के मानकों के विपरीत घोषित कर चुका है, लेकिन आय बढ़ाने के लिए निगम के अफसर इन बसों को लगातार चलाते हुए यात्रियों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं।

खराब बसों को धक्के लगाते हैं यात्रीबैटरी, गियर बॉक्‍स, इंजन समेत विभिन्‍न तकनीकी कारणों से ये बसें सफर में खराब हो जाती हैं। बैटरी चार्ज नहीं होने से कई बसें रास्‍ते में र्स्‍टाट नहीं हो पाती हैं, तब यात्रियों को खुद ही धक्‍का लगाना पड़ता है। ऐसी बसों में सफर करना जोखिम लेने जैसा है। यात्रियों का कहना है कि रोडवेज किराया तो मनमाना वसूलता है, लेकिन बसों को सही नहीं करा पाता।क्‍या कहते हैं अफसरपरिवहन निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक आरके त्रिपाठी कहते हैं कि बसों को ठीक कराने की कोशिश की जा रही है। बारिश और सर्दियों में बसों की खिड़की और शीशे ठीक कराए जाते हैं। इन दिनों कोरोना आपदा के चलते 60 प्रतिशत लोड फैक्‍टर पर बस संचालन हो पा रहा है। यात्रियों का आवागमन कम है, इसलिए घाटा लगातार बढ़ रहा है

फिर भी यात्रियों को बेहतर सुविधाएं देने का प्रयास चल रहा है।669 बसें संचालित हैंबरेली परिक्षेत्र में रुहेलखंड, बदायूं और पीलीभीत डिपो है, यानी कि तीन जिले बरेली क्षेत्र में आते हैं। परिक्षेत्र से करीब 560 रोडवेज निगम की बसें हैं। बाकी 100 से ज्‍यादा अनुबंधित बसें हैं। परिक्षेत्र में दोनों तरह की कुल 669 बसें संचालित हैं। अनुबंधित बस मालिकों ने लॉकडाउन के चलते मार्गों से अपनी बसें हटा लीं और परिवहन विभाग यानी आरटीओ कार्यालय में सरेंडर भी कर दीं, जिससे उन पर सरकारी टैक्‍स की देनदारी न हो पाए, लेकिन परिवहन निगम अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया। निगम परिवहन प्रबंधन ने लगभग एक तिहाई बसें तकनीकी वजहों का हवाला देकर वर्कशॉप में खड़ी करा दीं, लेकिन आरटीओ कार्यालय ने यह बसें कागजों पर चलती हुई दिखाईं। इससे परिवहन निगम को लाखों रुपये का चूना लग रहा है।