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चंदौली का काला चावल: डायबिटीज और कैंसर जैसे असाध्य रोगों को करता है कंट्रोल, विश्व पटल पर चमक रहा जिले का नाम

सार
 चंदौली के काले चावल की मांग आस्ट्रेलिया सहित विश्व के कई देशों में हुई है। इससे लगातार किसान इसकी खेती के लिए लालायित हो रहे हैं। चंदौली प्रशासन की पहल पर काले चावल को कलेक्टिव मार्क यानी विशेष उत्पाद की मान्यता मिली है।

 चंदौली के काले चावल
– फोटो : social media

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उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां की भूमि और सिंचाई व्यवस्था के चलते यहां हमेशा से धान की अच्छी और बेहतर पैदावार होती है। जिले में धान की खेती करने वाले किसानों की उत्सुकता को देखते हुए 2018 में तत्कालीन जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल ने मणिपुर से ब्लैक राइस का सैंपल मंगाया और पहली बार 30 किसानों ने इसकी खेती की।2019 में हजार से ज्यादा किसानों ने इसकी खेती की। परिणाम बेहतर मिला और किसानों की आय बढ़ाने के लिए शुरू किए गए इस प्रयोग का फायदा जिले के किसानों को मिला। अच्छी ब्रांडिंग की वजह से किसानों को काला चावल का न सिर्फ अच्छा दाम मिला, बल्कि पूरे देश में पहचान भी हुई। जिससे किसानों को अधिकतम आय होने लगी। तबसे लगातार हर वर्ष इसकी पैदावार हो रही है। अब विश्व पटल पर भी ब्लैक राइस की वजह से चंदौली का नाम लिया जा रहा है।   जिले के काले चावल की मांग आस्ट्रेलिया सहित विश्व के कई देशों में हुई है। इससे लगातार किसान इसकी खेती के लिए लालायित हो रहे हैं। बताया जाता है कि चंदौली प्रशासन की पहल पर काले चावल को कलेक्टिव मार्क यानी विशेष उत्पाद की मान्यता मिली है। चंदौली कृषि उत्पाद में यह मार्क दिलाने वाला प्रदेश का इकलौता जिला है। 
काले चावल का मूल प्राचीन चीन से जुड़ा है। जहां इसे ‘वर्जित चावल’ कहा जाता है और माना जाता है कि ये सिर्फ शाही उपभोग के लिए ही होता है। भारत में काला चावल या चक-हाओ (स्वादिष्ट चावल) सदियों से मणिपुर के मूल व्यंजनों में इस्तेमाल होता रहा है। कुछ साल पूर्व तक फसल की खपत ज्यादातर स्थानीय स्तर पर ही होती थी और इसका बहुत कम निर्यात किया जाता था। लेकिन बेहतर कमाई होने और कई स्वास्थ्य संबंधी लाभों के कारण बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग ने देशभर के किसानों को काले चावल की खेती की ओर आकृष्ट किया है। काले चावल में कथित तौर पर ‘एंथोसायनिन/ नामक एक यौगिक होता है, जिसकी वजह से इसका रंग काला होता है और यही इसे एंटी-इफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सिडेंट और कैंसर रोधी गुण प्रदान करता है। इसमें महत्वपूर्ण कैरोटिनॉयड भी होते हैं जिन्हें आंखों की सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।इसके अलावा यह प्राकृतिक तौर पर ग्लूटेन-फ्री और प्रोटीन, आयरन, विटामिन ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, नेचुरल फाइबर आदि से भरपूर है, इसलिए वजन घटाने में मददगार होता है। इसे एक नेचुरल डिटॉक्सिफायर माना जाता है। इसका सेवन एथेरोस्क्लेरोसिस, डायबिटीज, अल्जाइमर, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों को भी दूर रखता है।  
काले चावल उगाने में कुछ कठिनाइयां भी हैं क्योंकि ये पूरी तरह से ऑर्गेनिक है जिसके लिए बहुत अधिक श्रम की जरूरत पड़ती है। यहां तक कि कुछ किसानों को शुरू में नुकसान का सामना करना पड़ा। उन्होंने आदतन रासायनिक सामग्री इस्तेमाल कर ली। हालांकि, अब इसकी खेती पर मिलने वाला रिटर्न असाधारण है क्योंकि काले चावल की उत्पादकता 25 क्विंटल/हेक्टेयर होती है।यह करीब पांच फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है। अच्छे रिटर्न के बावजूद चंदौली के किसानों को काले चावल की मार्केटिंग में समस्याएं आ रही हैं क्योंकि इसके लिए इस क्षेत्र को जीआई (जियोग्राफिकल इंटीकेशन) टैग नहीं मिला है। काले चावल के लिए जीआई टैग पिछले साल मणिपुर को दिया गया था। इसके मिलिंग में भी दिक्कत हो रही है। फिर भी फायदा ज्यादा है।  चंदौली से शुरू हुई ब्लैक राइस की खेती अब गाजीपुर, सोनभद्र, मीरजापुर, बलिया, मऊ व आजमगढ़ तक पहुंची है। 

विस्तार

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां की भूमि और सिंचाई व्यवस्था के चलते यहां हमेशा से धान की अच्छी और बेहतर पैदावार होती है। जिले में धान की खेती करने वाले किसानों की उत्सुकता को देखते हुए 2018 में तत्कालीन जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल ने मणिपुर से ब्लैक राइस का सैंपल मंगाया और पहली बार 30 किसानों ने इसकी खेती की।

2019 में हजार से ज्यादा किसानों ने इसकी खेती की। परिणाम बेहतर मिला और किसानों की आय बढ़ाने के लिए शुरू किए गए इस प्रयोग का फायदा जिले के किसानों को मिला। अच्छी ब्रांडिंग की वजह से किसानों को काला चावल का न सिर्फ अच्छा दाम मिला, बल्कि पूरे देश में पहचान भी हुई। जिससे किसानों को अधिकतम आय होने लगी। तबसे लगातार हर वर्ष इसकी पैदावार हो रही है। अब विश्व पटल पर भी ब्लैक राइस की वजह से चंदौली का नाम लिया जा रहा है।   

जिले के काले चावल की मांग आस्ट्रेलिया सहित विश्व के कई देशों में हुई है। इससे लगातार किसान इसकी खेती के लिए लालायित हो रहे हैं। बताया जाता है कि चंदौली प्रशासन की पहल पर काले चावल को कलेक्टिव मार्क यानी विशेष उत्पाद की मान्यता मिली है। चंदौली कृषि उत्पाद में यह मार्क दिलाने वाला प्रदेश का इकलौता जिला है।

 

काले चावल के फायदे जानकर हो जाएंगे हैरान

काले चावल का मूल प्राचीन चीन से जुड़ा है। जहां इसे ‘वर्जित चावल’ कहा जाता है और माना जाता है कि ये सिर्फ शाही उपभोग के लिए ही होता है। भारत में काला चावल या चक-हाओ (स्वादिष्ट चावल) सदियों से मणिपुर के मूल व्यंजनों में इस्तेमाल होता रहा है। कुछ साल पूर्व तक फसल की खपत ज्यादातर स्थानीय स्तर पर ही होती थी और इसका बहुत कम निर्यात किया जाता था। लेकिन बेहतर कमाई होने और कई स्वास्थ्य संबंधी लाभों के कारण बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग ने देशभर के किसानों को काले चावल की खेती की ओर आकृष्ट किया है। काले चावल में कथित तौर पर ‘एंथोसायनिन/ नामक एक यौगिक होता है, जिसकी वजह से इसका रंग काला होता है और यही इसे एंटी-इफ्लेमेटरी, एंटीऑक्सिडेंट और कैंसर रोधी गुण प्रदान करता है। इसमें महत्वपूर्ण कैरोटिनॉयड भी होते हैं जिन्हें आंखों की सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।इसके अलावा यह प्राकृतिक तौर पर ग्लूटेन-फ्री और प्रोटीन, आयरन, विटामिन ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, नेचुरल फाइबर आदि से भरपूर है, इसलिए वजन घटाने में मददगार होता है। इसे एक नेचुरल डिटॉक्सिफायर माना जाता है। इसका सेवन एथेरोस्क्लेरोसिस, डायबिटीज, अल्जाइमर, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों को भी दूर रखता है।  

काले चावल की खेती में मेहनत ज्यादा 

काले चावल उगाने में कुछ कठिनाइयां भी हैं क्योंकि ये पूरी तरह से ऑर्गेनिक है जिसके लिए बहुत अधिक श्रम की जरूरत पड़ती है। यहां तक कि कुछ किसानों को शुरू में नुकसान का सामना करना पड़ा। उन्होंने आदतन रासायनिक सामग्री इस्तेमाल कर ली। हालांकि, अब इसकी खेती पर मिलने वाला रिटर्न असाधारण है क्योंकि काले चावल की उत्पादकता 25 क्विंटल/हेक्टेयर होती है।यह करीब पांच फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है। अच्छे रिटर्न के बावजूद चंदौली के किसानों को काले चावल की मार्केटिंग में समस्याएं आ रही हैं क्योंकि इसके लिए इस क्षेत्र को जीआई (जियोग्राफिकल इंटीकेशन) टैग नहीं मिला है। काले चावल के लिए जीआई टैग पिछले साल मणिपुर को दिया गया था। इसके मिलिंग में भी दिक्कत हो रही है। फिर भी फायदा ज्यादा है।  चंदौली से शुरू हुई ब्लैक राइस की खेती अब गाजीपुर, सोनभद्र, मीरजापुर, बलिया, मऊ व आजमगढ़ तक पहुंची है। 

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काले चावल के फायदे जानकर हो जाएंगे हैरान

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