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भाजपा उत्तर प्रदेश में ‘योगी’ को बचाना चाहती है तो करेगी किसानों से बात, बंगाल को रखें याद

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किसान आंदोलन के सात महीने पूरे हो गए हैं। इस बीच कई बैठकें हुईं, बवाल मचा और पांच राज्यों में चुनाव भी हुए, लेकिन किसान आंदोलन चलता रहा। किसान संगठन, खुद के अराजनीतिक होने का दावा करते रहे, मगर राजनीति उनके मंच तक पहुंच चुकी थी। केंद्र सरकार ने सदैव एक ही बात दोहराई कि वह बातचीत के लिए तैयार है। किसानों का कहना था कि पहले हुई बातचीत का नतीजा क्या निकला। जब सरकार के मंत्री खुले तौर पर तीनों कृषि कानूनों के पक्ष में बोल रहे हैं तो आगामी बैठक का नतीजा क्या निकलेगा, इसका अहसास किसानों को हो चुका है। शनिवार को राहुल गांधी ने कहा, वे आंदोलनकारी किसानों के साथ खड़े हैं। उन्होंने ट्वीट में लिखा, ‘सीधी-सीधी बात है- हम सत्याग्रही अन्नदाता के साथ हैं’।            किसान संगठनों के नेताओं को पहले यह उम्मीद थी कि पांच राज्यों में चुनाव के बाद भाजपा, किसानों से बात करेगी। उस वक्त कहा गया कि असल बाजी तो पश्चिम बंगाल चुनाव में लगी है।

अगर भाजपा, बंगाल में सरकार बना लेती है तो किसानों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। यहां पर भाजपा हारती है तो केंद्र सरकार दबाव में आ जाएगी। उसे किसानों के साथ बातचीत करनी पड़ेगी। हालांकि चुनाव में भाजपा की हार हो गई, लेकिन अभी बैठक नहीं हो सकी। किसान नेता अविक साहा कहते हैं, सरकार को अभी गलतफहमी है। पश्चिम बंगाल के नतीजे सरकार को ध्यान में रखने चाहिए। किसान संगठन अगले साल होने वाले कई राज्यों के चुनावों में लोगों के बीच जाएंगे। लोगों को केंद्र सरकार की सच्चाई से अवगत कराया जाएगा। खासतौर पर उत्तर प्रदेश और पंजाब में भाजपा को अपने वजूद की सच्चाई पता चल जाएगी। सीधी सी बात है कि उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों का बड़े स्तर पर प्रभाव है। केवल पश्चिमी यूपी ही नहीं, बल्कि दूसरे हिस्सों में भी किसान संगठन पहुंच रहे हैं।
किसान नेताओं का प्रयास है कि चुनाव वाले राज्यों में हर विधानसभा क्षेत्र में बैठकें आयोजित की जाएं। इसके लिए रणनीति बन रही है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में विपक्षी दल भी किसान संगठनों का समर्थन चाहते हैं। हालांकि इस बाबत अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है कि किसान किस पार्टी का समर्थन करें या नहीं। पश्चिम बंगाल में भी किसानों ने जब चुनाव प्रचार किया तो उसमें केवल भाजपा का विरोध किया था। लिहाजा किसान आंदोलन में उत्तर प्रदेश, पंजाब व हरियाणा के किसानों की बड़ी सहभागिता है, इसलिए इन राज्यों में आगामी चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। अगर भाजपा यह सोचती है कि इन राज्यों की लोकसभा सीटों की भरपाई कहीं ओर से कर लेंगे तो यह केवल ख्याली पुलाव है। यूपी में किसान संगठनों ने जो रणनीति बनाई है, उसके तहत भाजपा नेताओं का अपने लोगों के बीच आना मुश्किल हो जाएगा। बतौर साहा, अभी देखिये, भाजपा मंत्रियों और दूसरे नेताओं को भारी पुलिस बंदोबस्त के साथ विधानसभा क्षेत्रों में आना पड़ रहा है।
किसान नेताओं का कहना है कि उत्तर प्रदेश में केवल मंदिर से काम नहीं चलेगा। अनुच्छेद 370 खत्म करने का चुनावी फायदा, भाजपा को कितना मिला है, यह सब देख चुके हैं। ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के नेता सत्यवान का कहना है, इमरजेंसी में कांग्रेस का नारा था, ‘इंदिरा इज इंडिया-इंडिया इज इंदिरा’। आज भाजपा-आरएसएस की बिल्कुल वही सोच है कि ‘मोदी ही देश है’। सरकार अभी किसानों की मांगें नहीं मान रही है। मोदी सरकार ने अंबानी-अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों पर तीन काले कृषि कानून थोप दिए हैं। ये कानून संसद को दरकिनार कर राजाओं की तरह फरमान जारी कर बनाए गए हैं। इससे साफ जाहिर है कि भाजपा सरकार उन पूंजीपतियों की सेवादास बनी हुई है, जिन्होंने धन-बल की ताकत से इसे शासन में बिठाया था। उत्तर प्रदेश और पंजाब चुनाव में भाजपा को अपनी जिद का नतीजा मालूम हो जाएगा।  कांग्रेस पार्टी के महासचिव, रणदीप सिंह सुरजेवाला के अनुसार, मोदी सरकार सात माह से नहीं, सात साल से किसानों को प्रताड़ित कर रही है। मोदी सरकार ने महापाप और पाखंड का विश्व कीर्तिमान बना डाला है। किसानों का दमन किया जा रहा है। मोदी सरकार ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं। सड़कों पर सोने के लिए मजबूर किसानों को मोदी सरकार कभी आतंकी, कभी खालिस्तानी बताती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पूरी प्रतिबद्धता और दृढ़ता से देश के किसान भाइयों के साथ खड़ी है।
किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का पार्टी पुरजोर समर्थन करती है। मोदी ने 2014 में सरकार बनाते ही पहले अध्यादेश के माध्यम से किसानों की भूमि के ‘उचित मुआवजा कानून 2013’ को बदलकर किसानों की ज़मीन हड़पने की कोशिश की। 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर प्राइवेट कंपनियों को लूट की खुली छूट दे दी गई। 2018 में किसान सम्मान निधि के नाम से एक और छलावा किसानों के साथ किया गया। देश में कुल 14 करोड़ 65 लाख किसान हैं, मगर मोदी सरकार किसान सम्मान निधि से लगभग छह करोड़ किसानों को वंचित किए हुए है। यह सरकार कृषि विरोधी तीन क्रूर काले कानून पूंजीपतियों के फायदे के लिए लेकर आई है।

किसान आंदोलन के सात महीने पूरे हो गए हैं। इस बीच कई बैठकें हुईं, बवाल मचा और पांच राज्यों में चुनाव भी हुए, लेकिन किसान आंदोलन चलता रहा। किसान संगठन, खुद के अराजनीतिक होने का दावा करते रहे, मगर राजनीति उनके मंच तक पहुंच चुकी थी। केंद्र सरकार ने सदैव एक ही बात दोहराई कि वह बातचीत के लिए तैयार है। किसानों का कहना था कि पहले हुई बातचीत का नतीजा क्या निकला। जब सरकार के मंत्री खुले तौर पर तीनों कृषि कानूनों के पक्ष में बोल रहे हैं तो आगामी बैठक का नतीजा क्या निकलेगा, इसका अहसास किसानों को हो चुका है। शनिवार को राहुल गांधी ने कहा, वे आंदोलनकारी किसानों के साथ खड़े हैं। उन्होंने ट्वीट में लिखा, ‘सीधी-सीधी बात है- हम सत्याग्रही अन्नदाता के साथ हैं’।

किसान संगठनों के नेताओं को पहले यह उम्मीद थी कि पांच राज्यों में चुनाव के बाद भाजपा, किसानों से बात करेगी। उस वक्त कहा गया कि असल बाजी तो पश्चिम बंगाल चुनाव में लगी है। अगर भाजपा, बंगाल में सरकार बना लेती है तो किसानों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। यहां पर भाजपा हारती है तो केंद्र सरकार दबाव में आ जाएगी। उसे किसानों के साथ बातचीत करनी पड़ेगी। हालांकि चुनाव में भाजपा की हार हो गई, लेकिन अभी बैठक नहीं हो सकी। किसान नेता अविक साहा कहते हैं, सरकार को अभी गलतफहमी है। पश्चिम बंगाल के नतीजे सरकार को ध्यान में रखने चाहिए। किसान संगठन अगले साल होने वाले कई राज्यों के चुनावों में लोगों के बीच जाएंगे। लोगों को केंद्र सरकार की सच्चाई से अवगत कराया जाएगा। खासतौर पर उत्तर प्रदेश और पंजाब में भाजपा को अपने वजूद की सच्चाई पता चल जाएगी। सीधी सी बात है कि उत्तर प्रदेश में किसान संगठनों का बड़े स्तर पर प्रभाव है। केवल पश्चिमी यूपी ही नहीं, बल्कि दूसरे हिस्सों में भी किसान संगठन पहुंच रहे हैं।

किसान नेताओं का प्रयास है कि चुनाव वाले राज्यों में हर विधानसभा क्षेत्र में बैठकें आयोजित की जाएं। इसके लिए रणनीति बन रही है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में विपक्षी दल भी किसान संगठनों का समर्थन चाहते हैं। हालांकि इस बाबत अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है कि किसान किस पार्टी का समर्थन करें या नहीं। पश्चिम बंगाल में भी किसानों ने जब चुनाव प्रचार किया तो उसमें केवल भाजपा का विरोध किया था। लिहाजा किसान आंदोलन में उत्तर प्रदेश, पंजाब व हरियाणा के किसानों की बड़ी सहभागिता है, इसलिए इन राज्यों में आगामी चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। अगर भाजपा यह सोचती है कि इन राज्यों की लोकसभा सीटों की भरपाई कहीं ओर से कर लेंगे तो यह केवल ख्याली पुलाव है। यूपी में किसान संगठनों ने जो रणनीति बनाई है, उसके तहत भाजपा नेताओं का अपने लोगों के बीच आना मुश्किल हो जाएगा। बतौर साहा, अभी देखिये, भाजपा मंत्रियों और दूसरे नेताओं को भारी पुलिस बंदोबस्त के साथ विधानसभा क्षेत्रों में आना पड़ रहा है।

किसान नेताओं का कहना है कि उत्तर प्रदेश में केवल मंदिर से काम नहीं चलेगा। अनुच्छेद 370 खत्म करने का चुनावी फायदा, भाजपा को कितना मिला है, यह सब देख चुके हैं। ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के नेता सत्यवान का कहना है, इमरजेंसी में कांग्रेस का नारा था, ‘इंदिरा इज इंडिया-इंडिया इज इंदिरा’। आज भाजपा-आरएसएस की बिल्कुल वही सोच है कि ‘मोदी ही देश है’। सरकार अभी किसानों की मांगें नहीं मान रही है। मोदी सरकार ने अंबानी-अडानी को फायदा पहुंचाने के लिए किसानों पर तीन काले कृषि कानून थोप दिए हैं। ये कानून संसद को दरकिनार कर राजाओं की तरह फरमान जारी कर बनाए गए हैं। इससे साफ जाहिर है कि भाजपा सरकार उन पूंजीपतियों की सेवादास बनी हुई है, जिन्होंने धन-बल की ताकत से इसे शासन में बिठाया था।

उत्तर प्रदेश और पंजाब चुनाव में भाजपा को अपनी जिद का नतीजा मालूम हो जाएगा।  कांग्रेस पार्टी के महासचिव, रणदीप सिंह सुरजेवाला के अनुसार, मोदी सरकार सात माह से नहीं, सात साल से किसानों को प्रताड़ित कर रही है। मोदी सरकार ने महापाप और पाखंड का विश्व कीर्तिमान बना डाला है। किसानों का दमन किया जा रहा है। मोदी सरकार ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी हैं। सड़कों पर सोने के लिए मजबूर किसानों को मोदी सरकार कभी आतंकी, कभी खालिस्तानी बताती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पूरी प्रतिबद्धता और दृढ़ता से देश के किसान भाइयों के साथ खड़ी है।
किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का पार्टी पुरजोर समर्थन करती है। मोदी ने 2014 में सरकार बनाते ही पहले अध्यादेश के माध्यम से किसानों की भूमि के ‘उचित मुआवजा कानून 2013’ को बदलकर किसानों की ज़मीन हड़पने की कोशिश की। 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के नाम पर प्राइवेट कंपनियों को लूट की खुली छूट दे दी गई। 2018 में किसान सम्मान निधि के नाम से एक और छलावा किसानों के साथ किया गया। देश में कुल 14 करोड़ 65 लाख किसान हैं, मगर मोदी सरकार किसान सम्मान निधि से लगभग छह करोड़ किसानों को वंचित किए हुए है। यह सरकार कृषि विरोधी तीन क्रूर काले कानून पूंजीपतियों के फायदे के लिए लेकर आई है।