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बिहार का दरभंगा और यूपी का कैराना…कभी संगीत थी पहचान, अब आतंक से जुड़ रहे तार

बिहार के दरभंगा में पार्सल बम विस्फोट के तार यूपी के कैराना से जुड़ रहे हैंलेकिन कभी दोनों शहरों की शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अलग पहचान थीगीत संगीत के लिए मशहूर किराना घराने की शुरुआत इसी कैराना से हुई थीप्रेमदेव शर्मा, मेरठबिहार के दरभंगा में पार्सल बम विस्फोट के तार यूपी के कैराना से जुड़ रहे हैं। लेकिन कभी दोनों शहरों की शास्त्रीय संगीत की दुनिया में अलग पहचान थी। गीत संगीत के लिए मशहूर किराना (कैराना) घराने की शुरुआत इसी कैराना से हुई थी। संगीत की कई बड़ी मशहूर हस्तियां इस घराने से जुड़ी हुई हैं। वहीं, ध्रुपद गायन की विशिष्ट शैली दरभंगा घराने की खासियत है।अपने समय के महान संगीतकार मन्ना डे का किसी कारण कैराना आना हुआ तो कैराना की सीमा शुरू होने से पहले ही जूते उतार कर हाथों में ले लिए। कारण जानने पर उन्होंने बताया था कि यह धरती महान संगीतकारों की है। इस धरती पर जूतों के साथ नहीं चल सकता। भीमसेन जोशी, मोहम्मद रफी और बेगम अख्तर जैसे संगीत के रत्न इसी कैराना घराने से जुड़े रहे हैं।कर्नाटक और बंगाल में बसा घरानाकिराना घराना पहले कैराना घराना के नाम से जाना जाता था।

बाद में यह घराना कर्नाटक और बंगाल में बस गया। इस घराना में ठुमरी गायन का विशेष महत्व है। दरबारी संगीतज्ञ ध्रुपद की ख्याल गायकी के जन्मदाता गोपाल नायक ने दुनिया की सबसे मशहूर संगीत परंपरा में से भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे अहम घराने, किराना घराने की नींव रखी।ऐसे किराना घराना पड़ा नामअगली पीढ़ी थी नायक भन्नू और नायक ढोंढू की और तीसरी पीढ़ी का किराना घराना पहचाना गया ग़ुलाम अली और गुलाम मौला के नाम से। इनके शिष्य और चौथी पीढ़ी के संगीत के वाहक थे उस्ताद बंदे अली खां फिर आने वाली पीढ़ी में आए इस घराने के संस्थापक उस्ताद अब्दुल करीम खान।यहीं से इस घराने का नाम पड़ा किराना घराना।

अब्दुल करीम खां, अब्दुल वाहिद खां, सवाई गंधर्व, हीराबाई बादोडकर, रोशनआरा बेगम, सरस्वती राणे, गंगूबाई हंगल, भीमसेन जोशी और प्रभा अत्रे ने भी इस घराने से शिक्षा पाई है।देश दुनिया में दरभंगा घराने का परचम दरभंगा घराने की 12वीं व 13वीं पीढ़ी के कलाकार आज देश-दुनिया में परचम लहरा रहे हैं। यह घराना राजस्थान से ताल्लुक रखता है। इसके संस्थापक पं. राधाकृष्ण और पं. कर्ताराम मल्लिक ने भूपत खां से ध्रुपद गायन सीखा। भूपत खां लखनऊ के नवाब सिराजुद्दौला के दरबारी गायक थे। उन्हें तानसेन के उत्तराधिकारियों में से माना जाता है।अठारहवीं शताब्दी के अंतिम दशक में एक बार भूपत के अनुरोध पर मल्लिक बंधुओं ने लखनऊ के दरबार में ध्रुपद गायन किया। संयोगवश उस समय दरबार में दरभंगा महाराजा माधव सिंह (1785-1805) भी उपस्थित थे। उन्होंने मल्लिक बंधुओं के गायन से प्रभावित होकर उन्हें दरभंगा बुला लिया। यहां आकर मल्लिक बंधुओं ने राग मेघ मल्हार गाकर वर्षा कराई और दरभंगा को अकाल से मुक्ति दिलाई।