बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती को इस बात की भनक लग चुकी है कि आखिर उनके पैरों के नीचे राजनैतिक जमीन खिसक कैसे रही है। पैरों के नीचे की जमीन ब्राह्मणों की वजह से नहीं बल्कि दलितों के उस बड़े वर्ग के शिफ्ट होने से खिसक रही है, जिस पर मोदी ने धीरे-धीरे ही सही, लेकिन अपना जाल बिछाकर गैर जाटव दलितों को अपने खेमे में शामिल करना शुरू कर दिया है। ऐसे में अब मायावती के पास तुरुप की चाल के तौर पर सोशल इंजीनियरिंग का ही दांव बचता है। इसीलिए बसपा ने ब्राह्मणों से अपनी पार्टी में जुड़ने की पेशकश की है। यही वजह है कि हिंदुओं के बड़े तीर्थ स्थल अयोध्या से ब्राह्मण सम्मेलनों की शुरुआत करने की बात कही है।
भाजपा जिस तरह से दलितों को अपने खेमे में शामिल कर रही थी, उससे मायावती को न सिर्फ पहले नुकसान हो रहा था बल्कि आने वाले चुनावों में भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता था। इसीलिए उन्होंने ब्राह्मणों पर एक बार फिर से अपने साथ जुड़ने की अपील की। हमेशा की तरह इस बार भी बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता सतीश चंद्र मिश्र के ऊपर ब्राह्मणों को जोड़ने की पूरी कमान सौंप दी गई है। अयोध्या से शुरू होने वाले ब्राह्मण सम्मेलनों की पूरी जिम्मेदारी सतीश मिश्रा की है। बसपा के पास इस वक्त ब्राह्मणों के बड़े चेहरे के तौर पर न सिर्फ सतीश चंद्र मिश्रा है बल्कि उनका सोशल इंजीनियरिंग का अपना पुराना अनुभव भी साथ में है। अब देखने वाली बात यह होगी कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में सोशल इंजीनियरिंग क्या 2007 की तरह अपना असर दिखा पाएगी या नहीं।
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