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उत्तर प्रदेश चुनाव: बहन जी के ‘मंदिर और ब्राह्मण’ दांव के बाद भी सत्ता तक पहुंचने की डगर है मुश्किल!

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बहुजन समाज पार्टी के ‘मंदिर और ब्राह्मण’ दांव के बावजूद सत्ता तक पहुंचने की राह बड़ी टेढ़ी है। राजनैतिक विशेषज्ञों के मुताबिक क्योंकि अब फिलहाल न तो वे परिस्थितियां हैं जो 2007 में थीं और न ही 2014 के बाद पार्टी और संघ के तौर पर भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व की धार कम हुई है। ऐसे में बसपा का यह दांव बड़ा कठिन है। हालांकि बसपा ने ब्राह्मणों को साधने के लिए जिला प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की शुरुआत कर दी है। इस सम्मेलन को पहले ब्राह्मण सम्मेलन का नाम दिया गया था।

2007 में बसपा की बंपर जीत को एक बार फिर से दोहराने के लिए पार्टी उसी राह पर चल निकली है, जिस राह से उसने 2007 में सत्ता पाई थी। पार्टी के थिंकटैंक माने जाने वाले बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और पार्टी में प्रमुख ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा पूरे प्रदेश में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन शुरू कर रहे हैं। पहले ब्राह्मण सम्मेलन और बाद में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन का नाम दिए जाने के पीछे पार्टी का तर्क है कि सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं बल्कि सभी जाति धर्म के लोगों को इस सम्मेलन के माध्यम से जोड़ा जाएगा। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सतीश चंद्र मिश्रा इस अभियान के जरिए बसपा सुप्रीमो मायावती को सत्ता की कुर्सी तक ले जाने के लिए पूरा खाका तैयार कर चुके हैं।

अब बदल चुके हैं हालात
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले राजनैतिक विश्लेषक एसएन कोहली कहते हैं कि बसपा को अपनी रणनीति एक बार फिर से बदलनी पड़ सकती है। उनका कहना है 2007 से 2022 तक 15 साल में राजनीति का पूरा परिदृश्य बदल चुका है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है 2007 में जब बहुजन समाज पार्टी सोशल इंजीनियरिंग का दंभ भर के सत्ता पाने की बात कह रही थी, दरअसल उसके पीछे कई सियासी मायने थे। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है 2007 में ब्राह्मणों के पास और कोई विकल्प नहीं था। भारतीय जनता पार्टी उतनी मजबूत नहीं थी। कांग्रेस में कोई दम नहीं था और प्रदेश का ब्राह्मण समाजवादी पार्टी से छुटकारा चाहता था। उस दौरान सतीश चंद्र मिश्रा की रणनीति काम आई और बसपा का सोशल इंजीनियरिंग दांव चल गया।

लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि ब्राह्मणों की फिलहाल अभी भी पहली पसंद भारतीय जनता पार्टी बनी हुई है। इसके अलावा विशेषज्ञों का कहना है कि 2014 के बाद जब से नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में आई है उसके बाद न संघ का एजेंडा कमजोर पड़ा है न ही भारतीय जनता पार्टी। आज उत्तर प्रदेश में जिन ब्राह्मणों को साथ लेकर बसपा सरकार बनाना चाहती है उनके पास विकल्प के तौर पर भारतीय जनता पार्टी अभी भी पहली पसंद की पार्टी बनी हुई है। इसलिए बसपा को ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी।

बसपा का दावा, भाजपा से ऊब चुका है ब्राह्मण

बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा कहते हैं कि उत्तर प्रदेश का 13 फ़ीसदी ब्राह्मण और 23 फीसदी दलित जब मिलकर एक साथ हुंकार भरेगा तो सत्ता उस पार्टी के पास चली आएगी, जिसके पास इसकी सबसे बड़ी ताकत होगी। बसपा नेताओं का कहना है कि यह ताकत अब सिर्फ बसपा के पास ही आने वाली है। यही वजह है प्रबुद्ध सम्मेलनों में सतीश चंद्र मिश्रा खुलकर कहते हैं कि सत्ता की चाबी तो सिर्फ दलित और ब्राह्मणों के पास है। सम्मेलन में सतीश चंद्र मिश्रा कहते हैं कि बसपा ब्राह्मणों की इतनी हिमायती है कि 40 ब्राह्मणों को सदन में लेकर गई। वहीं भाजपा को ब्राह्मणों का दुश्मन करार देते हुए कहते वे हैं कि उनकी सरकार में 400 ब्राह्मणों की हत्या कर दी गई। फिलहाल बहुजन समाज पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि मायावती ने खूब ठोक बजाकर दलित और ब्राह्मणों को एक साथ जोड़ने की कवायद शुरू की है। वक्त तय करेगा दलित और ब्राह्मण मिलकर 2022 में किस का बेड़ा पार लगाते हैं।