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जरा याद करो कुर्बानी: शहीद के परिजनों की नहीं सुन रही उत्तर प्रदेश सरकार, मणिपुर बोला नही हैं संसाधन

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सोमवार को देश ‘कारगिल विजय दिवस’ पर अपने उन शहीदों को याद कर रहा है, जिन्होंने अपने बहादुरी के कारनामों से पाकिस्तानी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। कुछ इसी तरह की बहादुरी बीएसएफ के असिस्टेंट कमांडेंट विवेक सक्सेना ने भी दिखाई थी। आठ जनवरी 2003 में चंदेल ‘मणिपुर’ में ऑपरेशन ‘ज्वाला’ शुरू किया गया था। उस अभियान के दौरान विवेक सक्सेना 250 विद्रोहियों से टक्कर लेते शहीद हो गए थे। अदम्य साहस व बहादुरी के लिए भारत सरकार ने उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित करने की घोषणा की। शहीद का परिवार उस वक्त लखनऊ में रहता था, इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार ने एक्सग्रेसिया राशि देने की बात कही थी, लेकिन आज तक वह राशि नहीं दी गई। नतीजा, कारगिल विजय दिवस पर शहीद के परिवार को धरने पर बैठना पड़ा। दूसरी तरफ, मणिपुर सरकार को जब एक्सग्रेसिया राशि के लिए पत्र लिखा गया तो जवाब मिला, हमारे पास संसाधन नहीं हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि इस तरह के मामलों में राज्यों द्वारा जारी की गई राशि का रिम्बर्समेंट नहीं होगा।

कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन का कहना है कि इस बाबत दिसंबर 2020 में राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखी गई थी। इसका भी कोई फायदा नहीं हुआ। वहां से मिले जवाब में लिखा था कि बीएसएफ द्वारा जो राशि या लाभ दिए जाने थे, वे दिए जा चुके हैं। शौर्य चक्र विजेता शहीद विवेक सक्सेना की विधवा मां सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट कर थक गई हैं। अनेकों बार सरकार को ज्ञापन दिया गया है। एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह बताते हैं, पिछले दिनों आगरा के पुलवामा शहीद कौशल किशोर रावत के परिवार द्वारा भी ऐसे ही मामले में धरना दिया गया था। अब शौर्य चक्र विजेता शहीद विवेक सक्सेना का परिवार भी सड़क पर आ गया है। तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने शहीद के पिता रामस्वरूप सक्सेना ‘फ्लाइट लेफ्टिनेंट’ को शौर्य चक्र प्रदान किया था। शहीद का परिवार 1967 से लखनऊ में स्थाई तौर पर रह रहा है। विवेक सक्सेना का जन्म और शिक्षा-दीक्षा, लखनऊ में हुई थी। यहां तक कि शहीद का अंतिम संस्कार भी लखनऊ में हुआ।

बतौर रणबीर सिंह, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा घोषित एक्सग्रेसिया राशि जो कि शहीद परिवार को मिलनी थी, पिछले 17 साल से प्रशासन के टालमटोल और ढुलमुल रवैए के कारण आज तक नहीं मिल सकी। शहीद के परिवार को राज्य सरकार की ओर से कोई जमीन का टुकड़ा तक नहीं दिया गया। न ही किसी स्कूल या सड़क का नामकरण शहीद के नाम पर किया गया। ताज्जुब की बात तो ये है कि शहीद की प्रतिमा भी स्वयं परिवार द्वारा अपने खर्चे पर बनवाई गई है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिमा के लिए कोई मदद नहीं दी गई। शहीद परिवार फाइल लेकर मंत्रालयों और कार्यालयों के चक्कर लगा चुका है। शासन प्रशासन द्वारा एक ही टका सा जवाब दे दिया जाता है कि आप उत्तर प्रदेश के निवासी ही नहीं है। सम्मान राशि के न मिलने व सरकारी तंत्र की बेरुखी के चलते शहीद के पिता फ्लाइट लेफ्टिनेंट रामस्वरूप सक्सेना का भी स्वर्गवास हो गया। उन्होंने 1965 और 1971 की लड़ाइयों में भाग लिया था।

विवेक की मां कहती है कि सरकार ने उनके परिवार के साथ अच्छा नहीं किया। हम शौर्य चक्र का क्या करें। हमारे बेटे ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस बाबत मणिपुर सरकार के साथ भी पत्राचार हुआ। वहां से जवाब मिलता है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ऐसे मामलों में राज्य सरकारों को रिम्बर्समेंट नहीं करने की बात कही है। मणिपुर सरकार के पास इतने संसाधन नहीं है कि शहीद परिवार की जरूरत पूरी हो सके। रणबीर सिंह कहते हैं, उक्त पत्र की भाषा दर्शाती है कि हम अपने शहीद परिवारों का कितना सम्मान करते हैं। बता दें कि बीएसएफ के पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी रहे एन बीरेन सिंह मणिपुर के मुख्यमंत्री का पद संभाल रहे हैं। सोमवार को जब शहीद परिवार धरने पर बैठा तो उत्तर प्रदेश सरकार के एक अधिकारी वहां पर आए। उन्होंने भरोसा दिलाया है कि सरकार इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएगी। एसोसिएशन ने मांग की है कि शहीद असिस्टेंट कमांडेंट विवेक सक्सेना की बुजुर्ग मां को सरकार द्वारा घोषित एक्सग्रेसिया राशि दिलाने, शहीद के नाम पर स्कूल और सड़क का नामकरण करने, शहीद परिवार को जमीन व परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिए जाने की दिशा में उचित कार्यवाही की जाए।