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जांच के दौरान संदिग्धों की ज्वाइनिंग पर उठे सवाल

एक तरफ एपीएस भर्ती-2010 की जांच के लिए सीबीआई ने शासन से विशेष अनुमति मांग रखी थी और दूसरी ओर चयनित अभ्यर्थियों को हड़बड़ी में ज्वाइन कराया जा रहा था। प्रतियोगी छात्र सवाल उठा रहे हैं कि अगर सीबीआई को प्राथमिक जांच में ही एपीएस भर्ती में गड़बड़ी मिल गई थी तो चयनितों को ज्वाइन कराने में इतनी जल्दबाजी क्यों की गई।

आयोग ने एपीएस-2010 का अंतिम चयन परिणाम वर्ष 2017 में जारी किया था। इसके कुछ माह बाद आयोग ने चयनितों की नियुक्ति की संस्तुति शासन को भेजी थी। तब तक आयोग की परीक्षाओं की सीबीआई जांच शुरू हो चुकी थी और सीबीआई ने एपीएस भर्ती की जांच के लिए शासन से विशेष अनुमति मांग ली थी। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय का कहना है कि जांच के दौरान चयनितों की नियुक्ति शासन को भेजे जाने और शासन स्तर से चयनितों की ज्वाइनिंग करा दिए जाने से आयोग और शासन दोनों की मंशा पर सवाल उठते हैं।

अवनीश ने इस मामले में दोनों की भूमिका की जांच कराए जाने की मांग की है। अवनीश का कहना है कि सभी 250 चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति की संस्तुति भेजे जाने का प्रतियोगी छात्रों ने विरोध किया था। आयोग और शासन को ज्ञापन देकर मांग की गई थी कि जांच पूरी होने तक नियुक्ति न कराई जाए, लेकिन अफसरों ने हड़बड़ी में ज्वाइनिंग कराई। प्रतियोगी छात्रों ने जब सीधे मुख्यमंत्री से गुहार लगाई तो 28 चयनितों की नियुक्ति रोक दी गई, लेकिन जब तक 222 चयनितों की ज्वाइनिंग कराई जा चुकी थी।

पूर्व अध्यक्ष, वर्तमान अफसर पर दोषियों को बचाने का आरोप

प्रतियोगी छात्रों ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष और एक वर्तमा अधिकारी पर दोषियों को बचाने का आरोप लगाया है। सीबीआई ने दिसंबर 2020 में लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए शासन से अभियोजन स्वीकृति मांगी थी। इनमें पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रभुनाथ समेत आयोग के कुछ अफसर/कर्मचारी भी शामिल थे।

प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय और मीडिया प्रभारी प्रशांत पांडेय का आरोप है कि आयोग के पूर्व अध्यक्ष और एक वर्तमान अधिकार ने सीबीआई द्वारा आरोपित आयोग कर्मियों को बचाते हुए अभियोजन स्वीकृति देने से इंकार कर दिया था। आयोग का तर्क था कि इस भर्ती के संबंध में उच्चतम न्यायालय में एक एसएलपी विचाराधीन जिसकी वजह से अभियोजन स्वीकृति देना संभव नहीं है।

आयोग ने यही उत्तर तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक के मामले में भी शासन को भेजा था, लेकिन शासन ने आयोग के इस आधार को निराधार पाते हुए परीक्षा नियंत्रक के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति सीबीआई को भेज दी, जिसके बाद सीबीआई ने मामले में मुकदमा दर्ज किया है। प्रतियोगियों का आरोप है कि आयोग की ओर से अभियोजन स्वीकृति देने से इंनकार करने का परिणाम है कि घोटाला करने वाले आयोग कर्मी चिह्नित होने के बावजूद सीबीआई को अज्ञात में एफ आई आर दर्ज करनी पड़ी है।