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गांधी जी के भाषण से प्रभावित होकर महिलाओं ने दान किए थे जेवर ..

बदायूं। आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी दो बार यहां आए थे। उन्होंने हिंदू मुस्लिम एकता की अलख जगाई थी। उनके भाषणों का इतना प्रभाव रहा कि महिलाओं ने अपने जेवर और बचत के पैसे निकालकर आजादी की लड़ाई की खातिर दान कर दिए थे।

वर्ष 1921 में मार्च को महात्मा गांधी बदायूं आए थे। जिले के सांसद रहे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू रघुवीर सहाय ने बदायूं के इतिहास पर जो पुस्तक लिखी, उसमें गांधी जी की बदायूं यात्रा और उसके प्रभाव का विस्तार से जिक्र है। गांधी जी जब बदायूं रेलवे स्टेशन पहुंचे तो जोशीले स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने उनका स्वागत करने के लिए ट्रेन के डिब्बे के पास मोटरकार लगा दी।

बता दें कि खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता मौलाना अब्दुल माजिद बदायूंनी के भाषणों से महात्मा गांधी काफी प्रभावित थे। उन्हीं के आग्रह पर महात्मा गांधी पहली बार बदायूं आए। मौलाना शौकत अली, डॉ. सैफुद्दीन किचलू, कस्तूरबा गांधी, खिलाफत कमेटी के प्रांतीय सचिव सैयद मोहम्मद हुसैन, मौलाना सलामुल्ला, फिरंगी महली, मोहम्मद निसार अहमद कानपुरी उनके साथ थे। गांधी जी कुछ समय तब की शानदार इमारत कादरी मंजिल के अलावा डॉ. रायजादा की क ोठी में भी ठहरे थे।

इस दौरान गांधीजी की सभा भी होनी थी। सभा से पहले आंधी आने से शामियाने उखड़ गए और लोग उनका भाषण ठीक से नहीं सुन सके। इसके बाद गांधी जी ने पार्वती कॉलेज में महिलाओं की सभा संबोधित की। जिले की महिलाएं उनके भाषण से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने मौके पर ही अपनी बचत के रुपयों थैलियां और पहने हुए जेवर उतारकर भेंट कर दिए और कहा कि इसे आजादी की लड़ाई में लगा दें।
रामलीला मैदान ऐसे बना गांधी ग्राउंड

एक मार्च 1921 को जब गांधी जी शहर आए तो उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा भी साथ थीं। यात्रा का प्रबंध बाबू रघुवीर सहाय, चौधरी तुलसाराम और मोहम्मद अब्दुल माजिद ने किया था। रेलवे स्टेशन से जुलूस निकाला गया था। उसमें कई हाथी भी शामिल रहे। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में हर मजहब के लोग एक साथ थे। गांधी जी ने कहा था कि हम हिंसा नहीं करेंगे, स्वदेशी वस्तुएं अपनाएंगे। दूसरी बार गांधी जी 1929 में आए थे। साथ में आचार्य कृपलानी, प्रभावी देवी, महादेव देसाई भी थे। उन्होंने रामलीला मैदान में सभा को संबोधित किया था। सभा का इतना प्रभाव रहा कि उस मैदान को गांधी मैदान के नाम से नई पहचान मिली जो आज तक कायम है। तब आयोजन की व्यवस्था में हरिचरन लाल, लक्ष्मन दत्त, जंग बहादुर, सैयद मोहम्मद उर्फ मैकू मियां, कुंवर रुकुम सिंह, अंबिका चरन व मंजूमदार एडवोकेट भी रहे थे।