देशभर के न्यायालयों में देवनागरी लिपि के प्रयोग के लिए पहला सत्याग्रह काशी से आरंभ हुआ। पं. मदनमोहन मालवीय और बाबू श्यामसुंदर दास के नेतृत्व में हिंदी प्रदेशों के 60 हजार विशिष्ट नागरिकों ने देवनागरी लिपि प्रयोग की अनुमति सरकार से और न्यायालयों में मांगी। इसमें हिंदी प्रदेश के राजाओं-महाराजाओं और विद्वानों का सहयोग था। यह आंदोलन खूब चला। इसमें सभा के कई कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए और माना जाता है कि हिंदी के लिए यह पहला सत्याग्रह था, जिसमें सभा सफल रही।
साहित्यकार डॉ. जितेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि हिंदी को स्थापित करने के लिए किए गए इस आंदोलन को हिंदी के लिए पहला सत्याग्रह कहा जाता है। पंडित मदनमोहन मालवीय और बाबू श्यामसुंदर दास के नेतृत्व में सरकार को नागरी लिपि की वैज्ञानिकता के संबंध में ज्ञापन प्रस्तुत किया गया। यह देवनागरी लिपि को संसार की सबसे अधिक वैज्ञानिक लिपि साबित करने वाला पहला विस्तृत, प्रामाणिक और सर्वमान्य दस्तावेज था। इस आंदोलन को नागरी प्रचारिणी सभा के नेतृत्व में आगे बढ़ाया गया था। हिंदी आंदोलन के बाद बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी को अंग्रेजी सरकार ने यह अधिकार दिया था कि वह संस्कृत के हस्तलिखित ग्रंथों की देश भर में खोज करे और उसकी विवरणात्मक सूची बनाए।
साहित्यकार डॉ. रामसुधार सिंह ने बताया कि आंदोलन का नेतृत्व कर रहे लोगों ने सरकार से यह अनुरोध किया कि हस्तलिखित ग्रंथों की खोज में जो हिंदी की पुस्तकें मिलें, उनकी सूची एशियाटिक सोसाइटी प्रकाशित करे। सरकार की सहमति के बाद हिंदी हस्तलेखों की खोज का काम शुरू हो गया। इसके तहत बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश में लाखों हस्तलेखों का विवरण प्रकाशित किया गया। इस दौर में नागरी प्रचारिणी सभा ने हिंदी के हस्तलेखों का इतना विशाल संग्रह पुस्तकालय में जमा कर लिया, जितना एक स्थान पर संसार में कहीं अन्यत्र नहीं है। इसमें 25 हजार हस्त लेख संस्कृत के भी हैं, जिसके अध्ययन अध्यापन के लिए विश्व भर से शोध छात्र व विद्वान वाराणसी आते हैं।
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