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Kalyan Singh: लखनऊ से चले रामलला के पास, 3 नहीं लग गए 13 घंटे…6 दिसंबर और कल्याण सिंह का वो किस्सा

लखनऊ
‘कोई दोष नहीं, कोई कसूर नहीं, कोई कमी नहीं। सारी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूं सीधा। कहीं कोई दंड देना हो तो किसी को ना देकर मुझे दिया जाए।’ 6 दिसंबर 1992 पर कल्याण सिंह का बेबाक बयान भला कौन भूल सकता है। एक ऐसी घटना जिसने देश की सियासत की धारा बदल दी। राम जन्मभूमि, बाबरी मस्जिद और 6 दिसंबर। इस कहानी के वैसे तो बहुत से किरदार हैं लेकिन इनमें से एक खास किरदार हैं कल्याण सिंह। उनके साथ कई बड़ी घटनाओं के साक्षी रहे वरिष्ठ पत्रकार राकेश पांडेय ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन से खास बात की।

‘पूरी यात्रा में लोग कल्याण की आरती उतार रहे थे’
6 दिसंबर की घटना और कल्याण सिंह से जुड़े एक किस्से के बारे में वरिष्ठ पत्रकार राकेश पांडेय कहते हैं, ‘उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि विवादित ढांचे की मैं रक्षा करूंगा। उस समय उनके सामने कठिन चुनौती थी। 5 से 6 दिसंबर का जो समय बीता उस पर तो एक किताब लिखी जा सकती है। कल्याण सिंह ने यूपी के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। पीवी नरसिम्हाराव प्रधानमंत्री थे। उन्होंने कहा कि इनको बर्खास्त कर दिया गया है। शुरुआत में इनको भी कहीं लगा कि ऐसा होना नहीं चाहिए। लेकिन इन्होंने जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। उन्होंने कहा कि जो भी हुआ है उसके लिए मैं जिम्मेदार हूं और इस्तीफा देता हूं। 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के एक महीने बाद कल्याण सिंह जब अयोध्या गए तो जगह-जगह पर लोग इकट्ठा होकर उनकी आरती उतार रहे थे। इतना जबरदस्त स्वागत हो रहा था कि लखनऊ से अयोध्या की तकरीबन सवा सौ किलोमीटर दूरी तय करने में उनको 12-13 घंटे लगे थे।’

‘ब्रह्मदत्त जी ये रास्ता अयोध्या नहीं दिल्ली को जाता है’
उस समय ब्रह्मदत्त द्विवेदी जिंदा थे। हमारी गाड़ी उनकी गाड़ी के बगल रुक-रुककर चल रही थी। हम लोग बात करते हुए आगे बढ़ रहे थे। मैंने कहा ब्रह्मदत्तजी ये रास्ता दिल्ली को जाता है। वो समझ नहीं पाए। मैंने कहा कि मैं राजनीतिक रास्ते की बात कर रहा हूं। उतना भव्य स्वागत मैंने अपने पत्रकारिता जीवन में किसी का नहीं देखा है। लोगों ने पूरा भाव उड़ेल दिया और तभी कल्याण सिंह के मुंह से निकला कि 6 दिसंबर शर्म का नहीं गर्व का दिन है। विपक्ष के लोग कहते थे कि भारतीय इतिहास में कलंक का दिन है। लोगों के रेस्पॉन्स से वह गदगद थे। उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई थी। उनका एक स्टाइल था, जब पब्लिक मीटिंग करते थे कि रामजी से अभी मेरी हॉटलाइन पर बात हुई है।

‘उस वक्त बीजेपी में तीन नेता एक ही कद के थे’
वरिष्ठ पत्रकार राकेश पांडेय ने कल्याण सिंह की लोकप्रियता का जिक्र करते हुए बताया, ‘मैं तो कई बार यह कहता था कि एक समय ऐसा था कि बीजेपी में तीन नेता एक ही कद के थे। तीनों की तासीर अलग-अलग थी। अटलजी की अपनी भूमिका थी, अपनी गरिमा थी। आडवाणी जी का प्रबंधन के क्षेत्र में कोई सानी नहीं था। राजनीति की समझ, लोगों से कैसे जुड़ना है और कैसै संगठन का विस्तार करना है। कल्याण सिंह को 1992 के पहले भी कई बार मैंने विधानसभा में उनको बोलते सुना है। राजनीति के उद्देश्यों और प्रशासन को लेकर वह एकदम क्लियर थे। यही वजह है कि उनके ऊपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा पाता। राजनीति उनके लिए सेवा ही थी लेकिन अपनी शर्तों पर। राजनीति उनके लिए व्यवसाय नहीं थी।’

‘अधिकारी के लिए पद नहीं, पद के लिए अधिकारी चाहिए’
कल्याण सिंह की एक अनछुई बात से रूबरू कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार राकेश पांडेय ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया, ‘कल्याण सिंह के बारे में कहने-बताने को बहुत सारी चीजें हैं। बहुत सारा अखबारों में लिखा गया कहा गया। लेकिन कल्याण सिंह के बारे में एक बात की चर्चा होनी चाहिए पर हुई नहीं। वो यह है कि कल्याण सिंह को एडमिनिस्ट्रेशन की बहुत गहरी समझ थी। उनका एक वाक्य मुझे बार-बार याद आता है जो प्रबंधन के विद्यार्थियों और राजनीति सीखने वालों का बताया जाना चाहिए। वह कहा करते थे कि मुझे अधिकारी के लिए पद नहीं चाहिए मुझे पद के लिए अधिकारी चाहिए। मतलब योग्यता प्रधान है अधिकारी प्रधान नहीं है। अधिकारी किस जाति का है किसके करीब है ये महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि उसकी योग्यता क्या है। एक वाक्य में अगर प्रशासन को बताना हो तो यह वाक्य काफी है। यह वो अकसर कहा करते थे।’

‘केवल एक कमी थी, कई बार अड़ जाते थे’
वरिष्ठ पत्रकार राकेश पांडेय आगे कहते हैं, ‘उनको अर्थव्यवस्था की अच्छी समझ थी। जब वह मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने एक बार कहा कि मुझे शिलान्यास के लिए मत बुलाइए, उद्घाटन कब करना है बताइए। अभी तो बहुत सारे लोग ऐसा कहते हैं लेकिन शुरू में उन्होंने यह बात कही थी। अर्थव्यवस्था और प्रशासन को लेकर उनकी बहुत गहरी समझ थी। केवल एक कमी थी कि कई बार वह अड़ जाते थे। इससे उनका काफी नुकसान हुआ।’

6 दिसंबर पर कल्याण सिंह ने क्या कहा था
6 दिसंबर 1992 की घटना का जिक्र करते हुए कल्याण सिंह ने अपने बयान में कहा था, ‘अधिकारियों का किसी रूप में कोई दोष नहीं, कोई कसूर नहीं, कोई कमी नहीं। सारी जिम्मेदारी मैं अपने ऊपर लेता हूं सीधा। किसी कोर्ट में केस चलना है तो मेरे खिलाफ चलाओ। किसी कमीशन ऑफ इंक्वायरी में इंक्वायरी होनी है तो मेरे खिलाफ कराओ। और इसके लिए कहीं कोई दंड देना हो तो किसी को ना देकर मुझे दो। अधिकारियों ने तो आदेशों का परिपालन किया है। मैं इस बात का एक-एक बिंदु का स्पष्टीकरण देने को तैयार हूं कि मैंने अथवा मेरे साथियों ने या मेरे सहयोगियों ने या मेरी सरकार ने किसी प्रकार से कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट नहीं किया है। क्या मैं गोली चला देता। एनआईसी (राष्ट्रीय एकता परिषद) की मीटिंग में मैंने स्पष्ट किया था कि गोली नहीं चलाऊंगा गोली नहीं चलाऊंगा गोली नहीं चलाऊंगा।’

कल्याण सिंह ने आगे कहा था, ‘6 दिसंबर 1992 को लगभग एक बजे जब केंद्र सरकार के गृह मंत्री एसबी चव्हाण साहब का मेरे पास फोन गया और कहा कि हमारे पास ऐसी सूचना है कि कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए हैं। आपके पास क्या सूचना है। तो मैंने कहा कि मेरे पास थोड़ा एक कदम आगे की है कि कारसेवक गुंबद पर चढ़ गए हैं और कारसेवकों ने गुंबद को तोड़ना भी शुरू कर दिया है। लेकिन चव्हाण साहब इस बात को रेकॉर्ड कर लेना कि मैं गोली नहीं चलाऊंगा, गोली नहीं चलाऊंगा गोली नहीं चलाऊंगा। गोली चलाने के अलावा जितनी भी उपाय योजना हो सकती हैं, कारगर उपाय हो सकते हैं वह सब स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए सारे किए जा रहे हैं।’

‘यस सर वाला कॉन्सेप्ट कल्याण ने किया खत्म’
कल्याण सिंह के सियासी जीवन पर वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय ने बताया, ‘उनका कहना था कि सरकार धमक से चलती है। उन्होंने ब्यूरोक्रेसी में यस सर-यस सर वाला कॉन्सेप्ट खत्म कर दिया था। एक बात और थी कि वह अपनी धुन के पक्के व्यक्ति थे। उनके खुद के बनाए मापदंड थे। दूसरे कार्यकाल के दौरान जब उनको हटाया गया और रामप्रकाश गुप्ता को सीएम बनाया गया तो देखने को मिला कि जरा भी वह समझौते को तैयार नहीं थे। आखिरकार उनको हटना पड़ा। वह कभी अपने मन की बात कहने से डरते नहीं थे। अकसर बहुत से राजनेता कहते कुछ और हैं मन में कुछ और होता है। लेकिन कल्याण सिंह इसके विपरीत थे, उनके मन में जो आता था वह साफगोई से कह देते थे।

‘एक जमाने में पीएम कैंडिडेट माने जा रहे थे’
वरिष्ठ पत्रकार संजय पांडेय आगे कहते हैं, ‘उस दौर में उनका कद वाजपेयी और आडवाणी के बराबर हो गया था। एक जमाने में वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार माने जा रहे थे। उत्तर प्रदेश में बीजेपी को स्वर्णिम दौर में लाने का श्रेय उन्हीं को है। जनसंघ के जमाने से वह राजनीति कर रहे थे। हमेशा चुनाव जीतते रहे। गोरखपुर और बस्ती में एक बार बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई सर्वे करने गए थे। मैं उनके साथ था। ऊपर से कठोर व्यक्तित्व के दिखते थे लेकिन अंदर से वैसे नहीं थे। साथ बैठे तो बड़े प्रेम से बातचीत की। पत्रकारिता का मेरा शुरुआती दौर था और इतने बड़े जननायक और लोकप्रिय नेता का मुझसे पूछना कि आपने खाना खाया या नहीं, एक अलग अनुभव था। उनका स्वभाव मुझे बड़ा मृदुल लगा।’