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चीन खुलेआम तालिबान को फंडिंग कर रहा है दुनिया करे बहिस्कार

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25 aug 2021

तालिबान द्वारा काबुल में कब्जे के बाद वैश्विक स्तर पर सम्बन्धों के आयाम बदल रहे हैं। कई राष्ट्र अपने हित तालिबान के साथ देख रहे हैं तथा वो उनके साथ है। चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के द्वारा तालिबान को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया जा रहा है। अधिकतर देशों द्वारा तालिबान की हैसियत अभी भी आतंकवादी संगठन की ही है। यूरोपीय संघ, कनाडा, अमरीका, भारत, दक्षिण अमेरिका जैसे देशों ने अभी भी आधिकारिक तौर पर तालिबान को मान्यता नहीं दी है। बड़े देशों में सिर्फ चीन ही ऐसा देश है जो तालिबान को समर्थन दे रहा है। अब खबर तो ऐसी भी आ रही है कि वित्तीय संकट से जूझ रहे तालिबान को चीन का सहारा मिल सकता है।

चीन की तालिबान को फंडिंग

रिपोर्ट के अनुसार, चीन अफ़ग़ानिस्तान में विकास कार्य के लिए भारी रकम देने को तैयार है। ये खबर तब आ रही है जब विश्व के अन्य राष्ट्र तालिबानी आतंकवादियों को संसाधनों से वंचित रखना चाह रहे है। चीन ने सोमवार को यह संकेत दिया है कि युद्ध संकट के बाद वह “सकारात्मक” सोच के साथ, अफ़ग़ानिस्तान के विकास कार्य में मदद करना चाहता है।

अमेरिका ने अभी भी अफ़ग़ान सेंट्रल बैंक में पड़े बिलियन्स डॉलर को अपने नियंत्रण में रखा हुआ है। इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने भी 460 मिलियन डॉलर के फॉरेन रिजर्व पर रोक लगा दिया है। नवंबर में 60 देशों द्वारा सहमति बन जाने पर अफ़ग़ानिस्तान को चार सालों में 12 बिलियन डॉलर देने का वादा किया गया था। अब उन पैसों पर भी संकट मंडरा रहा है। जर्मनी ने भी कहा है कि जब तक वहां शरिया कानून है वह तालिबान को एक रुपया आवंटित नहीं करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी कहा कि तालिबान के खिलाफ लगे प्रतिबंधों पर निर्णय उनके आचरण पर निर्भर करेगा। ब्रिटेन भी मंगलवार को होने वाली G7 बैठक में तालिबान के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के लिए बात करने वाला है। यानी जब सभी देश तालिबान को रोकने के लिए संसाधन पर रोक लगाना चाहते हैं तो चीन द्वारा फंडिंग किया जाना एक बुरा संकेत है।

चीन का स्वार्थ

चीन की मजबूरी बहुत बड़ी है। चीन की कई महत्वकांक्षी परियोजनाएं अब तालिबान के अधीन हैं। सबसे बड़ा स्वार्थ यह है कि चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी भाग के काफी नजदीक है। दूसरा यह कि चीन के पास अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते ही सही, एक बड़ा क्षेत्रफल उनके नियंत्रण में हो जाएगा जो ईरान तक सीधे तौर पर कॉरीडोर प्रदान करेगा। इसके साथ ही चीन को अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद खनिज संपदा का भंडार भी दिख रहा है। एक बड़ा कारण यह है कि चीन की महत्वाकांक्षी योजनाएँ जैसे कि रोड एंड बेल्ट योजना और चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर के लिए अफ़ग़ानिस्तान के ताकतों का साथ होना जरूरी है।

चीन और पूर्वी तुर्किस्तान आंदोलन

हालांकि इससे भी बड़ा कारण पूर्वी तुर्किस्तान आंदोलन को माना जा रहा है। हालांकि चीन और तालिबान का सम्बंध स्थापित होते दिख रहा है लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन बतौर धर्म इस्लाम को कैसे देखता है। चीन हमेशा से धार्मिक स्वतंत्रता को संदेह की नजर से देखता है। उइगर मुसलमानों को शिनजियांग प्रांत के कैंप में रखकर चीन पहले ही अपना रवैया स्पष्ट कर चुका है। उनके लिए धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर अलग विचारधारा का जन्म लेना स्वीकार्य नहीं है।

शिनजियांग वही प्रान्त है जहां मुसलमान आबादी अधिक है। यहां पर रहने वाले ज्यादा लोग मूल रूप से हान ना होकर तुर्की जातियता के है। 1750 में शिनजियांग पर QING साम्राज्य द्वारा इसपर कब्जा किया गया था। QING साम्राज्य के बाद 1912 में यह रिपब्लिक ऑफ चीन का हिस्सा बना। इन दोनों के समय शिनजियांग के लोगों को स्वतंत्रता प्राप्त थी। अब वहाँ CCP का शासन है।

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भले ही चीन वहां पर शासन करता है लेकिन उसे मालूम है कि वहां पर कभी भी स्थिति बिगड़ सकती है। इसी से बचने के लिए चीन द्वारा कैम्प चलाया जा रहा है ताकि लोग धार्मिक रूप से टूट जाये। माना जाता है कि चीन ने अलगाववादी पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन यानी ETIM के हिंसक हमलों को नियंत्रित करने के प्रयास में ऐसा किया था। आपको बता दें कि उइगर मुसलमानों का यह संगठन शिनजियांग को पूर्वी तुर्किस्तान बताता रहा है। चीन चाहता है कि पूर्वी तुर्किस्तान आंदोलन खत्म हो जाये। चीन, पूर्वी तुर्किस्तान को आतंकी, अलगाववादी और गैर सामाजिक संगठन मानता है। तुर्किस्तान के आंदोलन को कई जगह से समर्थन भी मिलता है और यहां तक की वाशिंगटन डीसी में पूर्वी तुर्किस्तान की निर्वासित सरकार भी है।