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भारत ने मालदीव में परियोजना लांच कर चीन के ऋण जाल की दीवार में किया छेद

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31 aug 2021

चीन की साम्राज्यवादी इच्छा बहुत बड़ी है। वह पूरे दुनिया पर ना सही तो पूरे दक्षिण एशिया में अपना प्रभुत्व चाहता है। यह बात अलग है कि अब वह उपनिवेशवाद नही कर सकता है क्योंकि ऊपर रूस और पश्चिम में भारत है लेकिन छोटे-छोटे देशों पर वह अभी भी नियंत्रण रखना चाहता है। वह जिस तरीके से यह काम कर रहा है, वह तरीका है ‘डेब्ट ट्रैप डिप्लोमेसीÓ यानी कर्ज में फंसाकर ग़ुलामी करवाना। हालांकि, श्रीलंका जैसे देशों में यह काम कर चुका है लेकिन अभी भी भारत उसके इस योजना में भी अड़ंगा डाल रहा है। अब खबर यह है कि भारत ने चीनी आकांक्षाओं पर लात मारते हुए मालदीव का विकास कार्य शुरू कर दिया है।
ष्ठञ्जष्ठ, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (क्चक्रढ्ढ) का एक हिस्सा है, जिसके तहत कम्युनिस्ट चीन रणनीतिक रूप से लाभदायक स्थिति में मौजूद देशों को वह हितों के साथ भारी ऋण देता है। अंतत: जब प्राप्तकर्ता देश, चीनी ऋणों का निर्वहन करने में विफल रहता है, तब बीजिंग रणनीतिक स्थानों पर नियंत्रण कर लेता है। हिंद महासागर क्षेत्र (ढ्ढह्रक्र) में, बीजिंग अपनी “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल” रणनीति के तहत विभिन्न देशों को इस तरह के कर्ज के जाल में फंसाकर भारत को घेरने की कोशिश कर रहा हैद्य
हालाँकि, अब भारत ढ्ढह्रक्र में स्थित एक द्वीपसमूह, मालदीव में एक विशाल परियोजना के साथ चीन के ऋण जाल को तोडऩे में सफल रहा है। भारत और मालदीव “ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट” अनुबंध पर हस्ताक्षर कर चुके है। यह मालदीव राष्ट्र में सबसे बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना होने जा रही है और इससे मालदीव में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के मामले में चीन को मात देकर भारत आगे जा रहा है।
त्ररूष्टक्क एक महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसमें 6.74 किमी लंबा पुल और सेतु लिंक शामिल होगा जो मालदीव की राजधानी माले को विलिंगली, गुल्हिफाल्हू और थिलाफुशी द्वीपों से जोड़ेगा। चीनी परियोजनायें व्यावसायिक रूप से शोषक ऋणों द्वारा वित्त पोषित होती है लेकिन जीसीएमपी को भारत से $100 मिलियन के अनुदान और $400 मिलियन लोन द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा। लोन पर 2 प्रतिशत से भी कम का ब्याज दर लगाया जाएगा।
त्ररूष्टक्क को मालदीव की अर्थव्यवस्था का लाइफलाइन बनाया जाएगा। खैर, यातायात तो वैसे भी अर्थव्यवस्था का जीवनरेखा कहा जाता है। यह देश के चार मुख्य द्वीपों के लिए एक प्रमुख कनेक्टिविटी लिंक बनाएगा जहां मालदीव की लगभग आधी आबादी रहती है।

त्ररूष्टक्क मालदीव में चीन की मौजूदगी को नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि त्ररूष्टक्क माले को हुल्हुले और हुलहुमले से जोडऩे वाले 1.4 किमी लंबे सिनामाले पुल को पूरी तरह से कमजोर कर देगा। सिनामाले ब्रिज 2018 में चीनी समर्थन से बनाया गया था।

इसके अलावा भारत मालदीव में कई अन्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में सक्रिय है, जिसमें हवाई अड्डे का विस्तार, मत्स्य पालन संयंत्रों का विस्तार और एक क्रिकेट स्टेडियम और सड़क परियोजनाओं का निर्माण शामिल है। मालदीव में नई दिल्ली की भागीदारी परोपकारी है और भारत की ऋण सहायता का कैंसर अस्पताल सहित दस अन्य परियोजनाओं में उपयोग किया जा रहा है। भारत के साथ मालदीव की नजदीकियां तब सामने आ रही है जब मालदीव, चीन के 3.4 बिलियन डॉलर के कर्ज से दबा हुआ है। मालदीव ने समझदारी दिखाते हुए यह निर्णय लिया है जो काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि मालदीव जानता है लंबे समय के लिए भारत के साथ सम्बंध रखना उसके लिए लाभकारी है।

दूसरी ओर मालदीव में उपस्थिति और प्रभाव बढ़ाना, चीन को द्वीपसमूह राष्ट्र से दूर रखना, नई दिल्ली की विदेश रणनीति का एक बड़ा हिस्सा है। क्योंकि भारत ढ्ढह्रक्र को अपना प्राकृतिक प्रभाव क्षेत्र मानता है और दूसरी बात, चीन भारत के आसपास किसी भी ताकत की स्थिति को भारत के खिलाफ ही हथियार बना सकता है। इन दो कारणों से, भारत चीन को मालदीव से दूर रखने के लिए अपने नियंत्रण में सब कुछ कर रहा है।

भारत ने मालदीव में जो किया है वह बाकी दुनिया के लिए एक सबक है। चीन के कर्ज के जाल के बिना दुनिया का विकास हो सकता है। वास्तव में, गरीब, अविकसित और कम विकसित देशों को बीजिंग के बुरे मंसूबों से बचाना चाहिए और उन्हें एक दोस्ताना माहौल में फलने-फूलने का मौका दिया जाना चाहिए।

भारत की नीति कभी यह नही रही है कि वहां निवेश करके प्रभुत्व बनाये या लाभ कमाए, जैसा कि चीन करता है। भारत पैसों से देशों को मजबूत करता है, वहां के मजदूरों को सक्षम बनाता है। नई दिल्ली, चीन से ढ्ढह्रक्र हासिल कर रही है, हालांकि जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ जैसी अन्य शक्तियों को एकजुट होकर चीन को दुनिया के अन्य हिस्सों, विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक खाड़ी में संयमित रखने के लिए हाथ मिलाना चाहिए।