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Editorial: विजयन के केरल में ISRO को भी देना पड़ता है रंगदारी टैक्स

7-9-2021

केरल राज्य से रोज कोई न कोई ऐसी घटना सामने आती है जिससे कम्युनिस्ट शासन की पोल-पट्टी खुलती है। अब एक नई खबर सामने आ रही है कि केरल में ISRO से रंगदारी टैक्स की मांग की गयी है। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) में बनाई जा रही ट्राइसोनिक पवन सुरंग के लिए भारी मशीनरी ले जाने वाली एक लॉरी को केरल के कोचुवेली में स्थानीय लोगों ने रोक लिया। इसरो की पवन सुरंग परियोजना के लिए भारी वाहनों में लदे विशाल सिंटैक्स कक्ष थे। कई लोगों ने 5 सितंबर को तिरुवनंतपुरम के थुंबा में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए लोड ले जा रहे एक ट्रक को अवरुद्ध कर दिया था, और मांग की थी कि उन्हें उतारने का प्रभार दिया जाए और ‘नोक्कुकुली’ या ‘gawking charge’ का भुगतान किया जाए। यह केरल में एक प्रकार का ‘प्रतिबंधित कर’ है जिसे मजदूर संगठन अवैध तरीके से वसूलतें हैं। दो दिन पहले ही केरल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को इस प्रथा को पूरी तरह खत्म करने का निर्देश दिया था।
दरअसल, ट्राइसोनिक विंड टनल वायुमंडल से गुजरते समय अंतरिक्ष यान और रॉकेट द्वारा किए गए प्रतिबिंबों का अध्ययन करने का एक उपकरण है। इसरो के अनुसार, ट्राइसोनिक विंड टनल लॉन्च वाहनों, अंतरिक्ष यान आदि के स्केल किए गए मॉडल के परीक्षण के लिए परीक्षण खंड में नियंत्रित, समान, स्थिर mach number के प्रवाह की स्थिति उत्पन्न करता है। पुणे में बने मशीन के पुर्जों को सड़क मार्ग से मुंबई और फिर समुद्र के द्वारा कोल्लम बंदरगाह तक पहुँचाया गया।

केरल के स्थानीय लोगों के अनुसार सड़क के माध्यम से लाए गए माल से उस छोटी सड़क को गंभीर नुकसान होने की आशंका थी। यह उपकरण इतना वृहद और भारी था कि इसे अपने गंतव्य तक पहुंचाने के लिए बिजली विभाग, पुलिस विभाग से लेकर अन्य सरकारी तंत्रों की सहायता लेनी पड़ी। कुछ जगह पेड़ और बिजली के तार काटे गए तो कुछ जगह मार्गो में वाहनानुसार परिवर्तन भी किए गए। इस कारण उत्पन्न हुई असुविधा से लोगों का गुस्सा भड़का। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि इसरो ने यहाँ संयंत्र स्थापित करने के लिए स्थानीय लोगों की ज़मीन और मदद के बदले नौकरी का वादा किया था जो की आज तक पूरा नहीं हो सका।

जब वाहन उस क्षेत्र में पहुंचा, तो स्थानीय लोग लॉरी को रोकने के लिए मौके पर पहुंचे और लॉरी को आगे यात्रा करने की अनुमति देने के लिए कम से कम 2,000 रुपये प्रति टन का भुगतान करने की मांग की। हालांकि, वीएसएससी अधिकारियों ने कहा कि स्थानीय लोग इस संबंध में माल उतारने के लिए कम से कम 10 लाख रुपये चाहते हैं, जबकि वाहन में लदे हुए उपकरण इतने भारी और वैज्ञानिक दृष्टि से संवेदनशील है कि उसे सिर्फ मशीन से उतारा जा सकता है। अतः माल उतराई के लिए मांगे गए कर पूर्ण रूप से गलत हैं।

स्थानीय लोगों का तर्क है कि कंटेनर लॉरी में दो बड़े कक्ष थे, जो 10 मीटर लंबे और 5.5 मीटर व्यास के हैं तथा जिस वाहन के एक्सल पर वो कंटेनर लदे हुए थे उसमें 44 पहिए हैं। इसी कारण अन्य वाहन उस सड़क से नहीं गुजर पाएंगे। लोगों का कहना था कि इस वाहन के तंग सड़कों से निकालने में बिजली लाइनों और केबलों को भी हानि हुई है और ऊपर से सरकारी तंत्र उनके माल उतराई के अधिकार और मजदूरी से भी वंचित रख रही है। इतने भारी उपकरण को उतारने में होने वाला मुनाफा उनके असल प्रतिरोध की जड़ है।

असमंजस की स्थिति में इसरो नें इस बारे में सीएम कार्यालय को सूचित किया। श्रम मंत्री वी शिवनकुट्टी ने हस्तक्षेप किया और कई दौर की बातचीत और विरोध के बाद ट्रक को उच्च सुरक्षा परिसर के अंदर जाने दिया गया। उग्र भीड़ द्वारा किसी अनहोनी की आशंका को देखते हुए पुलिस बल को भी बुलाना पड़ा। दोनों पक्षों, (इसरो और स्थानीय लोगों) के अपने अपने तर्क हैं। लेकिन, एक उग्र और उन्मादी भीड़ द्वारा अपनी अनुचित मांग हेतु राष्ट्र हित के कार्य को रोकना उस राज्य के शासन तंत्र की विफलता की दिखाता है। राष्ट्र संचालन की धुरी न्यायपालिका और विधायिका दोनों के आदेश की अवज्ञा कर राष्ट्र निर्माण के कार्य को बाधित करती भीड़ नागरिक के तौर आपकी विफलता को दर्शाता है। हम सभी केरल की मजदूर संगठन और राज्य सरकार के समन्वय और सम्बन्धों से भली-भांति परिचित हैं। लेफ्ट की सरकार में ये संबंध और भी प्रगाढ़ होता है। इसके बावजूद मजदूर संगठनों का ऐसा बर्ताव इस प्रकरण में पिनराई सरकार की सहभागिता के प्रति आश्वस्त करता है। राजनीतिक हित अगर राष्ट्र हित से ऊपर हो जाए तो पतन अवश्यंभावी है। केरल सरकार की कृतघ्नता का इससे विभत्स उदाहरण क्या हो सकता है कि इसी इसरो ने महामारी के द्वितय चरण के चरम पर निर्बाध रूप से ऑक्सिजन आपूर्ति कर प्राणरक्षक बना था। यह प्रकरण केरल सरकार के वैचारिक पतन का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब है।