एक ओर पैरालंपिक में तमाम दिव्यांग खिलाड़ियों ने अपने हुनर और हौसले से अपनी झोली में तमाम पदक अर्जित करके देश का नाम रोशन किया, वहीं दूसरी ओर प्रयागराज में पली-बढ़ी ऊर्जा तथा उम्मीदों से भरी दिव्यांग सरिता ने भी अपने हुनर और हौसले से ‘पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है’ को साबित करते हुए अपनी झोली में तमाम उपलब्धियां अर्जित कीं। चार वर्ष की उम्र में ही दोनों हाथ तथा एक पैर गंवा चुकी सरिता ने जिंदगी की जंग में हार नहीं मानी। मुंह में ब्रश को दबाकर दाहिने पैर की अंगुलियों के सहारे कैनवास पर रंग भरना शुरू किया तो उनके हुनर को देख लोगों ने दांतों तले अंगुलियां दबा ली।
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