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Muslim Vote Bank in UP: ओवैसी, अयूब या अखिलेश! उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों के कौन-कौन हैं दावेदार?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में करीब 19 प्रतिशत मुस्लिम वोटर का क्या रुख होगा? अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी क्या मुस्लिम मतदाता की पहली पसंद होगी? क्या बीजेपी को हराने के लिए सपा के बाद बसपा को मुस्लिम वोटर तवज्जो देगा? असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार के सीमांचल में जैसी कामयाबी पाई थी, क्या यूपी के पूर्वांचल में भी वो कुछ छाप छोड़ पाएंगे? डॉक्टर अयूब की पीस पार्टी मुस्लिमों में कितनी पैठ बना पाएगी? यूपी के मुस्लिम वोटर को लेकर ऐसे कई सवाल जेहन में आते हैं। एक नजर यूपी में मुस्लिम वोटों के दावेदारों पर।1- अखिलेश यादव (समाजवादी पार्टी)

समाजवादी पार्टी की यूपी के मुस्लिम मतदाताओं के बीच अच्छी पैठ मानी जाती है। 19 प्रतिशत मुस्लिम और 9 प्रतिशत यादव वोटरों के साथ सपा का एमवाई समीकरण कई चुनावों में काम कर चुका है। इसमें अन्य ओबीसी के वोटों के कुछ हिस्से को जोड़ने पर अखिलेश यादव की यूपी में दावेदारी मजबूत दिखती है। 30 अक्टूबर 1990 का अयोध्या गोलीकांड और उसके बाद बाबरी विध्वंस से जो माहौल बदला उसमें मुस्लिम वोटों का सबसे ज्यादा फायदा मुलायम सिंह यादव की बनाई पार्टी सपा को मिला। कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश की वजह से मुलायम सिंह को कई बार ‘मुल्ला मुलायम’ कहकर भी बीजेपी नेता घेरते रहे हैं। रामपुर से सांसद आजम खान की गिनती यूपी के सबसे बड़े मुस्लिम नेताओं में होती है। ऐसे में कहा जा सकता है कि मुस्लिम वोटरों के लिहाज से वर्तमान हालात में अखिलेश यादव की दावेदारी सबसे ऊपर है।

2- मायावती (बहुजन समाज पार्टी)

बहुजन समाज पार्टी में भले ही कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा अब नहीं बचा है लेकिन पार्टी मुस्लिम वोटों की दूसरी दावेदार कही जा सकती है। त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबले की सूरत में बीजेपी को मात देने के लिए कई बार मुस्लिम वोट बैंक हाथी की ओर घूम चुका है। 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा की जीत की एक बड़ी वजह ब्राह्मण-दलित केमिस्ट्री के साथ-साथ मुस्लिम वोट भी था। हालांकि 2012 और 2017 के चुनाव में बसपा से यह वोट बैंक अलग हुआ। सीएसडीएस के एक सर्वे के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा को 70 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे। गौर करने वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा से दोगुनी सीटें (10) जीतीं। 10 में से पार्टी के 3 सांसद (हाजी फजलुर्रहमान, कुंवर दानिश अली और अफजाल अंसारी) मुस्लिम हैं। ऐसे में बसपा की दावेदारी को कम करके आंका नहीं जा सकता।

3- जयंत चौधरी (राष्ट्रीय लोक दल)

राष्ट्रीय लोक दल पिछले दो साल से जाट-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करने की कवायद कर रहा है। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ये समीकरण वेस्ट यूपी में टूट गया था। लेकिन पहले चौधरी अजित सिंह और अब उनके बेटे जयंत चौधरी लगातार इस सामाजिक समीकरण को जिंदा करने की कोशिश में जुटे हैं। हाल के दिनों में मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत के आयोजन से भी आरएलडी की उम्मीदें बढ़ी हैं। इस महापंचायत में मुस्लिम समाज से भी हिस्सेदारी देखने को मिली। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ऐसा पहली बार है, जब दोनों समुदाय के बीच अविश्वास की खाई भरती नजर आ रही है। मुस्लिम-जाट और दलितों को साधने के लिए वेस्ट यूपी में जयंत ‘भाईचारा जिंदाबाद’ के तहत तकरीबन 300 छोटे-बड़े सम्मेलन करा चुके हैं। आरएलडी का समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन भी है। ऐसे में आरएलडी को जाटलैंड में मुस्लिम वोटों का एक बड़ा दावेदार माना जा रहा है।

4- असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम)

यूपी में इस बार के चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी भी मुस्लिम वोटों पर अपनी पुरजोर दावेदारी जता रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष ओवैसी लगातार यूपी के दौरे कर रहे हैं। उनकी पार्टी 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। इस साल जनवरी में वह जौनपुर के गुरैनी मदरसे और फिर आजमगढ़ के सरायमीर में बैतुल उलूम मदरसे पहुंचे थे। जुलाई में बहराइच आए तो बाले मियां (सैयद सालार मसूद गाजी) की मजार पर गए। वहीं हाल ही में जब रैली की तो अयोध्या को फैजाबाद लिखकर उसकी नवाबी पहचान से जोड़ने की कोशिश की। उन्होंने सीधे शब्दों में कहा कि कोई पार्टी नहीं चाहती कि मुस्लिम आगे बढ़े। 60 साल से सबको जिताया लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश का मुसलमान जीतेगा। मुस्लिम किसी के जरखरीद गुलाम नहीं हैं। इसके अलावा वह बार-बार दोहराते रहे हैं कि बाबरी मस्जिद थी, है और रहेगी। इन कवायदों से समझा जा सकता है कि ओवैसी यूपी में मुस्लिम वोटों के दावेदार हैं।

5- डॉक्टर अयूब (पीस पार्टी)

पूर्वांचल में एक पार्टी बनी थी पीस पार्टी। कभी इसका असर गोरखपुर, खलीलाबाद (संत कबीरनगर) से लेकर वाराणसी-आजमगढ़ तक पूर्वांचल के कई जिलों में था। पूर्वांचल की मुस्लिम बहुल सीटों के कुछ हिस्सों में जनाधार रखने वाली इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर अयूब हैं। मेडिकल पेशे से ताल्लुक रखने वाले डॉक्टर अयूब ने बीएचयू से मास्टर ऑफ सर्जरी की पढ़ाई की है। वह कई विवादों में भी रहे हैं। फरवरी 2017 में उनके खिलाफ रेप का एक केस भी दर्ज हुआ था। तीन महीने बाद मई 2017 में वह अरेस्ट भी हुए। अगस्त 2020 में उर्दू अखबारों में संविधान विरोधी विज्ञापन छपवाने के आरोप में डॉक्टर अयूब पर एनएसए लगा और गिरफ्तारी भी हुई थी। पार्टी के प्रवक्ता शादाब चौहान कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 18 लाख मुस्लिम वोट मिले थे। हालांकि चुनाव में पार्टी का खाता नहीं खुल पाया। इस बार पार्टी 250 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। 2012 में डॉक्टर अयूब खलीलाबाद सीट से विधायक बने थे। ऐसे में पीस पार्टी भी मुस्लिम वोटों की कहीं न कहीं दावेदार है।