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विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे गिद्घों की संख्या में होने लगा इजाफा

लखीमपुर खीरी। खीरी जिले में विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे गिद्धों की संख्या में अब इजाफा देखने को मिल रहा है। प्रकृति के सफाई कर्मी और खाद्य शृंखला में अहम भूमिका निभाने वाले गिद्घ अब तराई में आसानी से दिखाई पड़ने लगे हैं। पशुओं के इलाज में उपयोग होने वाली कीटनाशक दवा डायक्लोफिनेक गिद्घों के विनाश का कारण बनी थी। पिछले कुछ वर्षों से इस दवा पर प्रतिबंध लगने से सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।
तराई क्षेत्र में कभी बहुतायत से पाए जाने वाले गिद्घों की संख्या में लगातार गिरावट आना शुरू हुई। वर्ष 2000 के अंत तक करीब 98 फीसदी गिद्घ गायब हो गए। केवल दो फीसदी गिद्घ बचे थे। इसका मुख्य कारण पशुओं को दी जाने वाली डाइक्लोफिनेक नामक दवा बताई जा रही है।
दरअसल, डाइक्लोफिनेक दवा का इस्तेमाल कर चुके पशुओं की किसी कारण से मौत हो जाने पर उसका मांस खाने से गिद्घों की मौत हो रही थी। डाइक्लोफिनेक दवा के दुष्प्रभाव से गिद्घों की संख्या में आ रही कमी से चिंतित सरकार ने इस दवा को प्रतिबंधित कर दिया और पूरे तराई क्षेत्र को डाइक्लोफिनेक फ्री जोन घोषित कर दिया, जिसके सकारात्मक परिणाम दिखाई दे रहे हैं।
जनवरी में हुई गणना में दुधवा में पाए गए थे 299 गिद्घ
जनवरी 2021 में लखनऊ विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ वाइल्ड लाइफ साइंसेज और राज्य विविधता बोर्ड के संयुक्त सौजन्य से कराई गई गिद्घों की गणना में दुधवा टाइगर रिजर्व के दुधवा नेशनल पार्क, किशनपुर सेंक्चुरी और बफर जोन में 299 गिद्घों की गिनती की गई थी। इसमें दुधवा नेशनल पार्क में 104 और बफर जोन में 195 गिद्घ मिले थे। सबसे ज्यादा 102 गिद्घ दुधवा टाइगर रिजर्व के धौरहरा रेंज में मिले थे, जबकि दक्षिण खीरी वन प्रभाग में भी 200 से अधिक गिद्घों की मौजूदगी बताई जा रही है।
कम हो रहा गिद्घों का प्राकृतवास
गिद्घ ऊंचे पेड़ों पर अपना आशियाना बनाते हैं। इनका सबसे पसंदीदा आवास सेमल के पेड़ होते हैं। तराई में पिछले कुछ वर्षों में सेमल के पेड़ों का बड़े पैमाने पर कटान हुआ है। सेमल प्रजाति पर प्रतिबंध हटा लेने से इन पेड़ों को काटना और आसान हो गया है, जिससे गिद्घों का प्राकृतिक आवास छिन रहा है। पर्यावरण विदों और पक्षी प्रेमियों का यह मानना है कि गिद्घों और दूसरे परिंदों को बचाने के लिए पेड़ों को बचाया जाना बेहद जरूरी है।

डाइक्लोफिनेक दवा पर प्रतिबंध के आ रहे सकारात्मक परिणाम

लखीमपुर खीरी। खीरी जिले में विलुप्त होने की कगार पर पहुंचे गिद्धों की संख्या में अब इजाफा देखने को मिल रहा है। प्रकृति के सफाई कर्मी और खाद्य शृंखला में अहम भूमिका निभाने वाले गिद्घ अब तराई में आसानी से दिखाई पड़ने लगे हैं। पशुओं के इलाज में उपयोग होने वाली कीटनाशक दवा डायक्लोफिनेक गिद्घों के विनाश का कारण बनी थी। पिछले कुछ वर्षों से इस दवा पर प्रतिबंध लगने से सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।