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देवबंद मदरसा प्रिंसिपल मौलाना अरशद मदनी ने लड़का-लड़की के साथ में न पढ़ने के तालिबानी फरमान का किया समर्थन

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हाइलाइट्सतालिबानी फरमान का अरशद मदनी ने किया समर्थन‘अल्लाह ने महिलाओं के शरीर को पुरुषों से अलग बनाया है’तालिबान के देवबंद आंदोलन से कुछ ऐतिहासिक संबंध- मदनीसहारनपुर
दारुल उलूम देवबंद के प्रिंसिपल मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा कि वह शैक्षणिक संस्थानों में पुरुषों और महिलाओं को पूरी तरह से अलग करने की तालिबान की विचारधारा का समर्थन करते हैं। आरएफई/आरएल की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मदनी का कहना है कि उन्हें लगता है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता पर कब्जा एक सकारात्मक विकास है, क्योंकि इस्लामी आंदोलन ने देश को विदेशी कब्जे से मुक्त कर दिया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि मदनी का कहना है कि वह पुरुषों और महिलाओं को अलग करने के तालिबान के प्रयासों का समर्थन करते हैं। मदनी ने कहा, ‘उन्हें लोगों को हिजाब की इस्लामी आवश्यकता का पालन करने की आवश्यकता है।’

‘अल्लाह ने महिलाओं के शरीर को पुरुषों से अलग बनाया है’
मदनी ने घूंघट के लिए अरबी शब्द का जिक्र करते हुए यह बात कही, जो इस्लामी अवधारणा को दर्शाता है कि विपरीत लिंग के सदस्यों को एक साथ नहीं लाना चाहिए, यदि वे संबंधित (एक-दूसरे से) नहीं हैं।’ मदनी ने कहा, ‘अल्लाह ने महिलाओं के शरीर को पुरुषों से अलग बनाया है।’

महिलाओं के कपड़े पहनने पर दिया गजब ‘ज्ञान’
रिपोर्ट के अनुसार, वह आगे कहते हैं, ‘उन्हें इस तरह से कपड़े पहनने चाहिए, जिससे ‘फितना’ (लुभाने का तरीका) पैदा न हो।’ मदनी इस बात पर अड़े हुए हैं कि उनके स्कूल का तालिबान से कोई वर्तमान संबंध नहीं है, क्योंकि उसका कोई भी नेता उनके भारत स्थित मदरसा में शिक्षित नहीं है।

तालिबान के देवबंद आंदोलन से कुछ ऐतिहासिक संबंध- मदनी
रिपोर्ट के अनुसार, लेकिन उनका कहना है कि तालिबान के देवबंद आंदोलन से कुछ ऐतिहासिक संबंध हैं, जिसके नेता कट्टर ब्रिटिश विरोधी थे और उन्होंने 20वीं सदी के दूसरे दशक में एक निर्वासित भारत सरकार की स्थापना की। आधुनिक पाकिस्तान और अफगानिस्तान में इस्लामवादियों के बीच देवबंदी एक प्रमुख तनाव है।

पुरुष और महिलाओं के लिए शैक्षणिक केंद्रों की वकालत
पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग शैक्षणिक केंद्रों की वकालत करते हुए मदनी भारत का उदाहरण भी देते हैं, जहां सैकड़ों विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में केवल महिलाओं को ही शिक्षा प्रदानी की जाती है।

‘अगर यह हमारे देश में हो सकता है, तो इसमें क्या गलत है’
मदनी ने सवाल पूछते हुए कहा, ‘अगर यह हमारे देश में हो सकता है, तो इसमें क्या गलत है कि अफगान सरकार भी ऐसा ही करना चाहती है?’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर अफगान सरकार (अलग-अलग शिक्षा) लागू कर सकती है, तो इसका मतलब होगा कि लड़कियों के लिए शिक्षा का द्वार खुल गया है।’

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