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प्रयागराजः महंत नरेंद्र गिरि की वसीयत पर फिर उठे सवाल, बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाए जाने को बताया नियम विरुद्ध

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उप महंत बलवीर गिरि की ताजपोशी के पहले अखाड़े में फिर विरोध के स्वर उठने लगे हैं। कई संतों ने बलवीर को उत्तराधिकारी बनाए जाने को सरासर गलत बताते हुए मठ चलाने के लिए नियम के अनुसार किसी संत का चयन करने की सलाह दी है। संतों ने महंत नरेंद्र गिरि के द्वारा ब्रह्मलीन होने से पहले लिखे गए कथित पत्र को मात्र सुसाइड नोट माना है, इसे वसीयत मानने से साफ इनकार कर दिया है।

कहा कि वसीयत पर बकायदा अखाड़े के दो सदस्यों का दस्तखत बतौर गवाह दर्ज होता है, लेकिन नरेंद्र गिरि के पत्र में इस तरह का कोई गवाह नहीं है। जिसको बतौर गवाह पेश करने का प्रयास किया गया है उनका अखाड़ा और संन्यास जीवन से कुछ लेना देना नही है।

जब मामले की सीबीआई जांच चल रही है और कथित सुसाइड नोट पर सवाल उठ रहे हैं तो सुसाइड नोट में लिखे गए बातों का पालन क्यों किया जा रहा है। अधिकतर संतों ने सुसाइड नोट को फर्जी करार दिया है। यहां तक की जिसको उत्तराधिकारी बनाने की बात कही गई है बलवीर गिरि ने भी यह कह दिया है कि सुसाइड नोट महाराजजी ने लिखा है या किसने लिखा है यह जांच का विषय है।

पूर्व में दो वसीयत को निरस्त किया जा चुका है। एक वसीयत मे योग गुरु आनंद गिरि को महंत बनाए जाने की बात कही गई थी लेकिन विवाद के बाद इसे निरस्त कर दिया गया था।

बलवीर की वसीयत में अखाड़े की परंपरा का पालन नहीं
विल्केश्वर मंदिर की जिम्मेदारी संभाल रहे उप महंत बलवीर गिरि के नाम बाघंबरी गद्दी की वसीयत निरंजनी अखाड़े की नियमावली के विपरीत बताई जा रही है। निरंजनी अखाड़े की परंपरा के अनुसार बाघंबरी मठ में वसीयत के जरिए ही महंत अपने उत्तराधिकारी का चयन करते रहे हैं। लेकिन, इस तरह की वसीयत तभी मान्य होती है, जब अखाड़े के साधु या पदाधिकारी उसके गवाह बनाए गए हों। चार जून 2020 को बलवीर गिरि के नाम महंत नरेंद्र गिरि ने जो वसीयत की है, उसमें अखाड़े के किसी गवाह को नहीं शामिल किया गया है। बल्कि इस वसीयत में मान सिंह और रवींद्र कुमार उपाध्याय को गवाल बनाया गया है। ऐसे में इस वसीयत पर सवाल उठने लगे हैं।

वसीयत में दो बार लिखा था बलवीर का नाम
महंत नरेंद्र गिरि ने अपनी वसीयत में  बलवीर गिरि का दो बार जिक्र किया था। अपने उत्तराधिकारी को लेकर उन्होंने तीन बार वसीयतें बनवाईं। पहली बार 2010 में उत्तराधिकार को लेकर की गई वसीयत में शिष्य बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। लेकिन बलवीर गिरि के हरिद्वार में ही व्यस्त रहने के कारण उन्होंने 29 अगस्त वर्ष 2011 में दूसरी बार जब वसीयत तैयार कराई तो अपने शिष्य स्वामी आनंद गिरि को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

लेकिन, आनंद गिरि से दूरियां बढ़ने लगीं तो महंत नरेंद्र गिरि ने चार जून 2020 को अपनी पूर्व में तैयार कराई गई दोनों वसीयतों को निरस्त करते हुए तीसरी वसीयत तैयार कराई। इस तीसरी रजिस्टर्ड वसीयत में उन्होंने एक बार फिर यानी दोबारा बलवीर गिरि को ही मठ बाघंबरी का उत्तराधिकारी घोषित किया था। इस विवाद के बाद पंच परमेश्वर की बैठक भी स्थगित कर दी गई।
वर्ष 2005 में ली थी संन्यास की दीक्षा
निरंजनी के उपमहंत बलबीर पुरी ने वर्ष 2005 में संन्यास की दीक्षा ली थी। इससे पहले उन्हें हरिद्वार में विल्केश्वर मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी। इस बीच कुंभ-2019 में महंत नरेंद्र गिरि ने बलवीर गिरि को हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर मंदिर से प्रयागराज के मठ बाघंबरी बुला लिया गया था। वह बीते तीन वर्षों से महंत नरेंद्र गिरि के साथ मठ बाघंबरी गद्दी में ही रह रहे थे।

उप महंत बलवीर गिरि की ताजपोशी के पहले अखाड़े में फिर विरोध के स्वर उठने लगे हैं। कई संतों ने बलवीर को उत्तराधिकारी बनाए जाने को सरासर गलत बताते हुए मठ चलाने के लिए नियम के अनुसार किसी संत का चयन करने की सलाह दी है। संतों ने महंत नरेंद्र गिरि के द्वारा ब्रह्मलीन होने से पहले लिखे गए कथित पत्र को मात्र सुसाइड नोट माना है, इसे वसीयत मानने से साफ इनकार कर दिया है।

कहा कि वसीयत पर बकायदा अखाड़े के दो सदस्यों का दस्तखत बतौर गवाह दर्ज होता है, लेकिन नरेंद्र गिरि के पत्र में इस तरह का कोई गवाह नहीं है। जिसको बतौर गवाह पेश करने का प्रयास किया गया है उनका अखाड़ा और संन्यास जीवन से कुछ लेना देना नही है।

prayagraj : आनंद गिरि को हरिद्वार से लेकर प्रयागराज एयरपोर्ट पहुंची सीबीआई टीम।
– फोटो : prayagraj

जब मामले की सीबीआई जांच चल रही है और कथित सुसाइड नोट पर सवाल उठ रहे हैं तो सुसाइड नोट में लिखे गए बातों का पालन क्यों किया जा रहा है। अधिकतर संतों ने सुसाइड नोट को फर्जी करार दिया है। यहां तक की जिसको उत्तराधिकारी बनाने की बात कही गई है बलवीर गिरि ने भी यह कह दिया है कि सुसाइड नोट महाराजजी ने लिखा है या किसने लिखा है यह जांच का विषय है।

पूर्व में दो वसीयत को निरस्त किया जा चुका है। एक वसीयत मे योग गुरु आनंद गिरि को महंत बनाए जाने की बात कही गई थी लेकिन विवाद के बाद इसे निरस्त कर दिया गया था।

Prayagraj News : महंत नरेंद्र गिरि मौत मामले की जांच करने मठ बाघंबरी गद्दी पहुंची सीबीआई की टीम।
– फोटो : प्रयागराज

बलवीर की वसीयत में अखाड़े की परंपरा का पालन नहीं
विल्केश्वर मंदिर की जिम्मेदारी संभाल रहे उप महंत बलवीर गिरि के नाम बाघंबरी गद्दी की वसीयत निरंजनी अखाड़े की नियमावली के विपरीत बताई जा रही है। निरंजनी अखाड़े की परंपरा के अनुसार बाघंबरी मठ में वसीयत के जरिए ही महंत अपने उत्तराधिकारी का चयन करते रहे हैं। लेकिन, इस तरह की वसीयत तभी मान्य होती है, जब अखाड़े के साधु या पदाधिकारी उसके गवाह बनाए गए हों। चार जून 2020 को बलवीर गिरि के नाम महंत नरेंद्र गिरि ने जो वसीयत की है, उसमें अखाड़े के किसी गवाह को नहीं शामिल किया गया है। बल्कि इस वसीयत में मान सिंह और रवींद्र कुमार उपाध्याय को गवाल बनाया गया है। ऐसे में इस वसीयत पर सवाल उठने लगे हैं।

Prayagraj News : योग गुरु आनंद गिरि और महंत नरेंद्र गिरि। फाइल फोटो
– फोटो : प्रयागराज

वसीयत में दो बार लिखा था बलवीर का नाम
महंत नरेंद्र गिरि ने अपनी वसीयत में  बलवीर गिरि का दो बार जिक्र किया था। अपने उत्तराधिकारी को लेकर उन्होंने तीन बार वसीयतें बनवाईं। पहली बार 2010 में उत्तराधिकार को लेकर की गई वसीयत में शिष्य बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। लेकिन बलवीर गिरि के हरिद्वार में ही व्यस्त रहने के कारण उन्होंने 29 अगस्त वर्ष 2011 में दूसरी बार जब वसीयत तैयार कराई तो अपने शिष्य स्वामी आनंद गिरि को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

लेकिन, आनंद गिरि से दूरियां बढ़ने लगीं तो महंत नरेंद्र गिरि ने चार जून 2020 को अपनी पूर्व में तैयार कराई गई दोनों वसीयतों को निरस्त करते हुए तीसरी वसीयत तैयार कराई। इस तीसरी रजिस्टर्ड वसीयत में उन्होंने एक बार फिर यानी दोबारा बलवीर गिरि को ही मठ बाघंबरी का उत्तराधिकारी घोषित किया था। इस विवाद के बाद पंच परमेश्वर की बैठक भी स्थगित कर दी गई।

prayagraj : महंत बलवीर गिरि।
– फोटो : prayagraj

वर्ष 2005 में ली थी संन्यास की दीक्षा
निरंजनी के उपमहंत बलबीर पुरी ने वर्ष 2005 में संन्यास की दीक्षा ली थी। इससे पहले उन्हें हरिद्वार में विल्केश्वर मंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी। इस बीच कुंभ-2019 में महंत नरेंद्र गिरि ने बलवीर गिरि को हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर मंदिर से प्रयागराज के मठ बाघंबरी बुला लिया गया था। वह बीते तीन वर्षों से महंत नरेंद्र गिरि के साथ मठ बाघंबरी गद्दी में ही रह रहे थे।