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योगी सरकार के लिए चुनौती बनी पुलिस, 5 मामले जो यूपी विधानसभा चुनाव में बन सकते हैं मुद्दा

विधानसभा चुनाव विपक्ष यूपी की कानून-व्यवस्था पर खड़े करता रहा है सवालयोगी सरकार ने पिछली सरकारों की तुलना में अपराध कम होने का किया है दावायूपी के पांच-छह बड़े मामले बन सकते हैं चुनाव में विपक्ष का मुद्दालखनऊ
यूपी सरकार के लिए विकास का माहौल बनाने वाली पुलिस ने कई अहम मौकों पर सरकार की जमकर किरकिरी कराई है। खासतौर से महिला अपराध से जुड़े मामलों में पुलिस की यह कारगुजारियां सरकार पर भारी पड़ रही हैं। विधानसभा चुनावों के नजदीक होने के चलते विपक्षियों को भी सरकार को घेरने का मौका मिल रहा है।

ताजा मामला गोरखपुर में कानपुर के युवक मनीष गुप्ता की पुलिस क्रूरता के चलते हुई मौत से जुड़ा है। इस मामले में भी गोरखपुर के पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों ने दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए उन्हें बचाने की कोशिश की। जिसके चलते आज सरकार की खासी किरकिरी हो रही है।

पीड़िता के पिता की मौत, फिर जागी सरकार
उन्नाव रेप कांड बीजेपी सरकार के सत्ता संभालने के बाद यह पहला मामला था। बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के दबाव में पुलिस ने रेप पीड़िता की शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं की। रेप पीड़िता के पिता को गांव में बांधकर पीटा गया। फिर फर्जी मुकदमे में फंसाकर जेल भेज दिया गया। पीड़ित परिवार लखनऊ तक आला अफसरों से गुहार लगाने आया। पीड़िता के चाचा ने डीजीपी से लेकर हर बड़े अफसर को मदद के लिए फोन किए लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। आखिर में जब पीड़िता के पिता की पिटाई के चलते जेल में मौत हो गई, तब अफसर और सरकार जागे और विधायक व उनके भाई समेत अन्य आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई हुई।

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इसी तरह विधायक के खिलाफ लड़ाई लड़ रही पीड़िता और उसके चाचा लगातार आरोपितों पर केस वापस लेने का दबाव बनाने और धमकाने के आरोप लगा रहे थे। इस संबंध में उन्होंने डीजीपी ऑफिस समेत अन्य पुलिस अफसरों व जिम्मेदारों को 20 से ज्यादा चिट्ठियां लिखीं लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। आखिर में तारीख पर जाने के दौरान एक सड़क हादसे में पीड़िता गंभीर रूप से जख्मी हो गई और उसके दो करीबियों की मौत हो गई। इस मामले में भी सीबीआई जांच चल रही है।

मैनपुरी में नवोदय विद्यालय छात्रा की मौत का मामला
मैनपुरी पुलिस की लापरवाही के चलते डीजीपी मुकुल गोयल को इलाहाबाद हाई कोर्ट में की खरीखोटी सुननी पड़ी थी। इस मामले में भी मैनपुरी पुलिस से लेकर डीजीपी मुख्यालय तक ने पीड़ित परिवार की शिकायत की अनदेखी की। छात्रा की संदिग्ध हालात में मौत के बाद से उसका परिवार स्कूल प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाते रहे, लेकिन पुलिस अफसर मामले को दबाने में जुटे रहे। आखिर में जब विपक्षी दलों और खास तौर से कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप की बात कही तब जाकर सरकार और पुलिस महकमा हरकत में आया। आनन-फानन में एसपी व डीएम हटाए गए।
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सोनभद्र उम्भा कांड
सोनभद्र के उम्भा में जमीन विवाद को लेकर हुई आदिवासियों के नरसंहार के मामले में भी स्थानीय थाने व सोनभद्र पुलिस के स्तर से जमकर मनमानी हुई। दबंगों के दबाव में पुलिस ने आदिवासियों के नेताओं के खिलाफ फर्जी मुकदमे लिखे। आदिवासियों की तरफ से बार-बार शिकायतें आने के बाद भी पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। जिसकी परिणाम दबंगों की फायरिंग और आदिवासियों के नरसंहार के रूप में सामने आया।

हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी हत्याकांड
इस मामले में भी लखनऊ पुलिस और आला अफसरों की ढिलाई ने सरकार की खूब किरकिरी कराई। दरअसल कमलेश तिवारी की हत्या से पहले ही मार्च 2019 में खुफिया विभाग के पास अलर्ट था कि कमलेश तिवारी कट्टरपंथियों के निशाने पर है, उनकी हत्या की जा सकती है। इस जानकारी को लखनऊ पुलिस व अन्य जिम्मेदारों से साझा कर दिया गया। खुद कमलेश तिवारी ने हत्या से पांच दिन पहले ट्वीट कर अपनी जान को खतरा बताया, लेकिन लखनऊ पुलिस और डीजीपी मुख्यालय की तरफ से उन्हें बचाने के कोई प्रयास नहीं हुए और हत्यारे अपने मंसूबों में सफल हो गए।

विवेक तिवारी हत्याकांड
लखनऊ में एपल के एरिया सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी की हत्या के मामले में भी लखनऊ पुलिस और यहां तैनात आला अफसरों द्वारा मिस हैंडलिंग की गई। पहले मामले को दबाने की कोशिश की गई। पुलिस अधिकारियों द्वारा अलग-अलग बयान दिए गए। एक पुलिस अफसर ने गिरफ्तार सिपाही और उसकी पत्नी को मीडिया के सामने बोलने का मौका दे दिया। इस मामले के चलते पुलिस महकमे में विद्रोह के हालात पैदा हो गए। उसे नियंत्रित करने में आला अफसरों को खासी मशक्कत करनी पड़ी और कई पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई भी की गई।

बस्ती में युवती के खिलाफ मुकदमों की बौछार
बस्ती के पोखरभिटवा में एसआई दीपक सिंह की करतूतों के चलते पुलिस महकमे और सरकार का नाम खराब हुआ। एक युवती के इनकार के बाद एसआई ने उसके और उसके परिवारवालों के खिलाफ कई फर्जी मुकदमे दर्ज करवा दिए। जब मामला सीएम के संज्ञान में आया तो एसआई को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया और बाद में बर्खास्त कर दिया गया। जिले के एसपी व एएसपी को हटाया गया और एक सीओ भी निलंबित किए गए। इसके अलावा 12 पुलिसकर्मियों समेत 14 के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई।

बिकरू कांड
कानपुर के बिकरू गांव में माफिया विकास दुबे के यहां दबिश के दौरान पुलिसकर्मियों द्वारा मुखबिरी किए जाने के चलते सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। इसमें विकास दुबे के गैंग से पुलिस व अन्य महकमे के अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई थी। हालांकि इस मामले में पुलिस ने विकास दुबे समेत उसके गैंग के अन्य लोगों को मुठभेड़ में मार गिराया था। लेकिन इस कांड ने सरकार की खासी किरकिरी कराई थी।

योगी आदित्यनाथ