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Editorial : तालिबानी राज में रोटी-रोटी को मोहताज हुए अफगानी पत्रकार

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04-10-2021

कभी पत्रकारिता शौक था। बाद में उसे पेशा बनाया, लेकिन अफसोस पेट की भूख ने इस शौक को ताक पर रखकर मजदूरी करने को मजबूर कर दिया है। कभी जिन हाथों में कलम हुआ करती थी। कभी जो हाथ दूसरों के दुख, दर्द को हर्फों में बयां कर दुनिया तक पहुंचाया करते थे, आज वही हाथ मजदूरी करने को मजबूर हो चुके हैं। बेबसी और लाचारी के आगे नतमस्तक हो चुके इस पत्रकार के इस हाल का अगर कोई जिम्मेदार है, तो वो हैं ये क्रूर तालिबनी, जो अब पूरे अफगानिस्तान को अपने कब्जे में कर चुके हैं। कभी अफगानिस्तान की खामा न्यूज एजेंसी में अपनी धारदार लेखनी के लिए विख्यात पत्रकार जबीउल्लाह वफा अब अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए पत्रकारिता छोड़ मजदूरी को मजबूर हो चुके हैं।

जबीउल्लाह वफा बताते हैं कि वे कोई इकलौते ऐसे पत्रकार नहीं हैं, जिन्हें तालिबानी राज में बेरोजगारी का शिकार होना पड़ा है, बल्कि अनेकों ऐसे पत्रकार हैं, जिन्हें वहां के मीडिया संगठन अपनी खस्ताहाल हो चुकी आर्थिक स्थिति का हवाला देकर बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। इन्हीं में से एक हैं जबीउल्लाह, जिन्हें बीते दिनों उनके मीडिया संगठन ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। तीन महीने तक कड़ी मशक्कत के बाद भी जब उन्हें नौकरी नहीं मिली, तो उन्होंने अपने पिता के साथ ईंटे बनाने का काम शुरू कर दिया। कभी अपने कलम के जरिए दुनिया के दर्द को बयां करने वाले जबीउल्लाह के दर्द को समझने वाला कोई नहीं है। वे बताते हैं कि 10 लोगों का पेट भरने के लिए उन्हें ये कदम उठाना पड़ा है। वे बताते हैं कि तालिबानी हुकूमत के दौरान बेशुमार पत्रकारों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। अब सभी पत्रकार अपनी आजीविका चलाने के लिए पत्रकारिता से रूखसत होकर दूसरे पेशों का दामन थाम चुके हैं। हालांकि, अफगानिस्तान के कुछ पत्रकारिय संगठन विश्व से अपने यहां के पत्रकारों को मदद पहुंचाने की अपील कर चुके हैं।

talibani journalist
गौरतलब है कि विगत 15 अगस्त अमेरिकी सेना के जाने के बाद तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर जबरिया कब्जा कर चुका है। अब वह वहां से लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त कर देश को अपनी शैली से संचालित करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, इस बीच वो विश्व सुमुदाय को विश्वास दिला रहा है कि वो पहले क्रूरता के रास्ते को त्याग कर सौहार्द व प्रेम के साथ देश पर शासन करेगा, लेकिन अफगानिस्तान की हालिया स्थिति ये बताने के लिए पर्याप्त है कि अफगानिस्तान अपनी क्रूरता को त्यागने को तैयार नहीं हैं।