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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के मजबूत होने से किसे सियासी नुकसान की आशंका? भाजपा, सपा और बसपा के अपने-अपने आकलन

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कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अपनी वापसी के लिए पूरी ताकत लगा दी है। प्रियंका गांधी लखनऊ में लगातार कैंप कर रही हैं और पार्टी की चुनावी रणनीति पर बेहद बारीकी से काम कर रही हैं, साथ ही तो किसानों के मुद्दे पर बढ़ चढ़कर उनका साथ दे रही हैं। माना जा रहा है कि इससे कांग्रेस मजबूत हुई है और उसे इसका चुनावी लाभ मिल सकता है। लेकिन इसी के साथ इस बात की भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि यदि उत्तर प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर कांग्रेस अपनी मजबूत वापसी में सफल रहती है तो इससे यूपी का सियासी समीकरण चतुष्कोणीय हो जाएगा और विपक्षी वोटों में बिखराव का लाभ भाजपा को मिल सकता है।

पूर्वांचल के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता के अनुसार, अभी तक उत्तर प्रदेश चुनाव में किसी अन्य राजनीतिक दल से चुनावी गठबंधन होने की कोई संभावना नहीं बनी है। ऐसे में ज्यादा संभावना इसी बात की है कि पार्टी अकेले दम पर ही उत्तर प्रदेश के चुनाव में उतरेगी और बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी के ज्यादातर नेता-कार्यकर्ता अब दूसरे दलों की बैसाखी से हटकर अपने बूते पर लड़ाई लड़ने के पक्ष में हैं। इसका परिणाम चाहे जो भी हो। उन्होंने कहा कि यदि समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़कर भी केवल सात सीटें लानी हैं, तो इससे ज्यादा अच्छा है कि चुनाव लड़कर इसी बहाने अपने कार्यकर्ताओं को मजबूत किया जाए।

लेकिन क्या कांग्रेस के अकेले लड़ने से चुनाव के चतुष्कोणीय होने और इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिलने की उम्मीद नहीं है? इस सवाल पर कांग्रेस नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश पश्चिम बंगाल नहीं है। विपक्षी दलों के वोट का बंटवारा रोकने के लिए कांग्रेस यह मैदान विपक्षी दलों की राजनीति के लिए खुला नहीं छोड़ सकती। यह राजनीतिक आत्महत्या जैसा होगा।

उन्होंने कहा कि यदि पार्टी भविष्य में अपनी राष्ट्रीय स्तर की भूमिका में मजबूत वापसी चाहती है तो उसे इस लड़ाई के जरिये अपनी मजबूती की राह तलाश करनी ही होगी, उसके पास इसका कोई विकल्प नहीं है। चाहे इसका परिणाम कुछ भी हो। पार्टी इसी रणनीति पर आगे बढ़ भी रही है। पार्टी 2022 के विधानसभा चुनावों के जरिये 2024 के आम चुनावों की मजबूत बुनियाद भी रख रही है, जो उसकी राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में मदद करेंगे।

क्या कांग्रेस की मजबूती से अन्य दलों को होगा नुकसान
लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद यूपी सरकार ने केवल प्रियंका गांधी को ही घटनास्थल तक जाने की अनुमति दी थी। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को प्रशासन ने उनके घर पर ही नजरबंद कर दिया था तो बसपा का कोई बड़ा नेता भी घटनास्थल तक नहीं पहुंच पाया। अखिलेश यादव ने इस पर आरोप लगाया था कि यूपी सरकार जानबूझकर कांग्रेस के मजबूत होने का रास्ता दे रही है, ताकि कांग्रेस मजबूत हो और विपक्षी वोटरों का बंटवारा हो और इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिले।

अखिलेश यादव की यह आशंका बिलकुल गलत भी नहीं है। माना जाता है कि भाजपा के पास ब्राह्मण, ओबीसी और दलित जातियों का एक ऐसा समूह है जो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नाम पर उसके साथ जुड़ा हुआ है। फ्लोटिंग वोटरों को छोड़ दें तो विपरीत हालात के बाद भी भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक इस चुनाव में भी उसके पास बना रह सकता है।