Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

उत्तर प्रदेश चुनाव: किसानों का दर्द, नहीं बिक रहा धान, गन्ने का भुगतान भी बकाया

वैसे तो तराई में उत्तर प्रदेश के बहुत सारे जिले आते हैं लेकिन लखीमपुर और पीलीभीत एक ऐसा जिला है जो हिमालय की तलहटी में बसा हुआ है। लखीमपुर जिले के दुधवा के जंगलों के बीच में घिरे एक छोटे से कस्बे का नाम है मैलानी। पूरे इलाके में धान और गन्ने की अच्छी पैदावार है। लेकिन किसानों को न धान की फसल की पूरी कीमत मिल पा रही है और ना गन्ने का भुगतान हो पा रहा है। इस इलाके के सत्तापक्ष के नेताओं को किसानों का यह दर्द पता है लेकिन इलाज कुछ नहीं है। हालांकि वरुण गांधी द्वारा किसानों की इस समस्या को उठाने के बाद इलाके के कुछ विधायक गाहे-बगाहे जिम्मेदार अधिकारियों को ना सिर्फ आड़े हाथों लेते हैं बल्कि हाल में एक सत्तापक्ष के विधायक ने शुगर फैक्ट्री के अधिकारियों को पुराना पेमेंट ना देने के चलते बंधक तक बना लिया था डॉट कॉम की टीम ने इस इलाके के किसानों से जब बात की तो उनका दर्द उभर कर सामने आ गया।

किसानों का कहना था धान क्रय केंद्र पर धान की खरीद नहीं होती है। कुछ उम्मीद बेचे गए गन्ने के भुगतान से थी भी तो शुगर फैक्ट्री उसका पेमेंट वक्त पर नहीं करती हैं। कुल मिलाकर किसानों की ना कोई सुन रहा है और ना उनकी समस्याओं को दूर कर रहा है।

मैलानी के पास में गांव है अकेला हंसपुर
यह गांव लखीमपुर पीलीभीत और शाहजहांपुर जिले के बॉर्डर पर है। इस इलाके के किसान हरबंस सिंह कहते हैं की बीते दिनों बारिश ने कटी हुई धान की फसल का बहुत नुकसान किया। हरबंस के मुताबिक वो जब अपनी धान की फसल को बेचने के लिए धान क्रय केंद्र पर पहुंचे तो उनको यह कहकर वापस कर दिया गया कि तुम्हारा धान गीला है, नहीं खरीदा जाएगा। सरकार ने किसानों के धान को खरीदने के लिए 1940 प्रति क्विंटल का रेट तय किया है। इसलिए हरबंस चाहते थे कि उनके धान को इसी क्रय केंद्र पर खरीद लिया जाए। क्योंकि अगर इस धान को किसी बिचौलिए या राइस मिल में बेचा जाएगा तो उनके धान की कीमत ग्यारह से बारह सौ रुपये प्रति क्विंटल ही मिलेगी। इसलिए वह धान क्रय केंद्र पर गिड़गिड़ाते रहे लेकिन उनके धान को नहीं खरीदा गया। नतीजतन उन्होंने अपने धान को एक राइस मिल पर जाकर औने पौने दामों में बेच दिया।

छलका किसानों ने  दर्द
गांव के किसान ओम प्रकाश वर्मा कहते हैं की सरकारी कागजों में इतनी चाक चौबंद व्यवस्था है कि आप दूर बैठकर किसी भी तरीके का सवाल व्यवस्था पर नहीं उठा सकते हैं। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। वो कहते हैं कि अभी तक गन्ने का बकाया भुगतान क्यों नहीं किया गया है। उनका कहना है हम लोग छोटे काश्तकार हैं। अगर हमारे गन्ने का भुगतान नहीं होगा तो हम अगली फसल के लिए पैसा कहां से लाएंगे। वह कहते हैं जो थोड़ा बहुत पैसा भी था वह इस बार गन्ने की ढुलाई में ज्यादा खर्च हुआ। क्योंकि डीजल महंगा था इस वजह से ट्रैक्टर का किराया बढ़ा दिया। जो बचत गन्ने की फसल से होनी थी वह इन खर्चों में भी लग गई ऊपर से मिलने वाले अपने पैसे की भी उम्मीद जल्दी नहीं है। धान की फसल दिखाते हुए उन्होंने कहा कि इसी खेत में हमारी खड़ी हुई फसल में पानी भर गया था किसी तरीके से धान को सिखाया और सुखाने के बाद जब क्रय केंद्र पर ले गए तो क्रय केंद्र की ओर से धान रिजेक्ट कर दिया गया। वह कहते हैं पहले तो उनको बताया गया धान गीला है। जैसे तैसे लड़ झगड़ कर जब यह साबित किया गया धान गिला नहीं है तो क्रय केंद्र की ओर से धान को टूटा हुआ बता कर वापस किया जाने लगा। फिर किसानों ने धान क्रय केंद्र पर झगड़ा किया तब उनको यह कहकर वापस कर दिया गया कि धान में कालापन है। वो कहते हैं जब प्राकृतिक आपदा आई तो खड़ी हुई फसल या कटी हुई फसल को बचाने का हमारे पास कोई जरिया नहीं था। उन्होंने कहा ऐसे में सरकार को थोड़ा सा और शिथिलता बरतते हुए हम किसानों की न सिर्फ मदद करनी चाहिए बल्कि क्रय केंद्र पर भी स्पष्ट निर्देश दिए जाने चाहिए।

सबसे बड़ी शुगमर फैक्ट्री होने का था तमगा
कभी एशिया की सबसे बड़ी शुगर फैक्ट्री होने का तमगा लखीमपुर जिले के गोला गोकर्णनाथ खीरी स्थित बजाज हिंदुस्तान शुगर फैक्ट्री को था। लाखो टन पेराई करने वाली शुगर फैक्ट्री में आज किसानों को बकाया भुगतान नहीं मिल पा रहा। किसानों के बकाया भुगतान ना होने पर किसानों ने बजाज शुगर फैक्ट्री पर धरना प्रदर्शन तक शुरू कर दिया था। भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय विधायक ने किसानों के भुगतान न होने पर शुगर फैक्ट्री के द्वारा अधिकारियों को बंधक बना लिया। बजाज हिंदुस्तान शुगर फैक्ट्री में अपना गन्ना ले जाने वाले ग्राम कपरहा के किसान अनूप शुक्ला कहते हैं की सितंबर से शुगर फैक्ट्री में कोई भी भुगतान किसानों को नहीं किया है। दिवाली ऐसे ही गुजर गई। भाई दूज भी ऐसे ही गुजर गया। लेकिन शुगर फैक्ट्री के अधिकारियों के आश्वासन के बाद भी किसानों का भुगतान नहीं हो रहा है हो गया। अनूप ट्रेडिशनल खेती के साथ-साथ मॉडर्न एग्रीकल्चर में भी भरोसा करते हैं और दूसरी अन्य फसल भी उग आते हैं। इसलिए उनको इस बात का अंदाजा है कि केंद्र सरकार ने गन्ना मिल मालिकों को भुगतान के लिए 42 हजार करोड रुपए का अतिरिक्त धन भी राज्य सरकार के मार्ग पर जारी कराया है। सभी अनूप शुक्ला कहते हैं कि इतना अतिरिक्त रुपया मिलने के बाद भी किसानों को बकाया क्यों नहीं दिया जा रहा है। व सवाल उठाते हैं कि दरअसल सरकारी लचर प्रबंधन के चलते ही किसानों को भुगतान नहीं मिल रहा है।

वैसे तो तराई में उत्तर प्रदेश के बहुत सारे जिले आते हैं लेकिन लखीमपुर और पीलीभीत एक ऐसा जिला है जो हिमालय की तलहटी में बसा हुआ है। लखीमपुर जिले के दुधवा के जंगलों के बीच में घिरे एक छोटे से कस्बे का नाम है मैलानी। पूरे इलाके में धान और गन्ने की अच्छी पैदावार है। लेकिन किसानों को न धान की फसल की पूरी कीमत मिल पा रही है और ना गन्ने का भुगतान हो पा रहा है। इस इलाके के सत्तापक्ष के नेताओं को किसानों का यह दर्द पता है लेकिन इलाज कुछ नहीं है। हालांकि वरुण गांधी द्वारा किसानों की इस समस्या को उठाने के बाद इलाके के कुछ विधायक गाहे-बगाहे जिम्मेदार अधिकारियों को ना सिर्फ आड़े हाथों लेते हैं बल्कि हाल में एक सत्तापक्ष के विधायक ने शुगर फैक्ट्री के अधिकारियों को पुराना पेमेंट ना देने के चलते बंधक तक बना लिया था। डॉट कॉम की टीम ने इस इलाके के किसानों से जब बात की तो उनका दर्द उभर कर सामने आ गया।

किसानों का कहना था धान क्रय केंद्र पर धान की खरीद नहीं होती है। कुछ उम्मीद बेचे गए गन्ने के भुगतान से थी भी तो शुगर फैक्ट्री उसका पेमेंट वक्त पर नहीं करती हैं। कुल मिलाकर किसानों की ना कोई सुन रहा है और ना उनकी समस्याओं को दूर कर रहा है।

मैलानी के पास में गांव है अकेला हंसपुर

यह गांव लखीमपुर पीलीभीत और शाहजहांपुर जिले के बॉर्डर पर है। इस इलाके के किसान हरबंस सिंह कहते हैं की बीते दिनों बारिश ने कटी हुई धान की फसल का बहुत नुकसान किया। हरबंस के मुताबिक वो जब अपनी धान की फसल को बेचने के लिए धान क्रय केंद्र पर पहुंचे तो उनको यह कहकर वापस कर दिया गया कि तुम्हारा धान गीला है, नहीं खरीदा जाएगा। सरकार ने किसानों के धान को खरीदने के लिए 1940 प्रति क्विंटल का रेट तय किया है। इसलिए हरबंस चाहते थे कि उनके धान को इसी क्रय केंद्र पर खरीद लिया जाए। क्योंकि अगर इस धान को किसी बिचौलिए या राइस मिल में बेचा जाएगा तो उनके धान की कीमत ग्यारह से बारह सौ रुपये प्रति क्विंटल ही मिलेगी। इसलिए वह धान क्रय केंद्र पर गिड़गिड़ाते रहे लेकिन उनके धान को नहीं खरीदा गया। नतीजतन उन्होंने अपने धान को एक राइस मिल पर जाकर औने पौने दामों में बेच दिया।

गांव के किसान ओम प्रकाश वर्मा कहते हैं की सरकारी कागजों में इतनी चाक चौबंद व्यवस्था है कि आप दूर बैठकर किसी भी तरीके का सवाल व्यवस्था पर नहीं उठा सकते हैं। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। वो कहते हैं कि अभी तक गन्ने का बकाया भुगतान क्यों नहीं किया गया है। उनका कहना है हम लोग छोटे काश्तकार हैं। अगर हमारे गन्ने का भुगतान नहीं होगा तो हम अगली फसल के लिए पैसा कहां से लाएंगे। वह कहते हैं जो थोड़ा बहुत पैसा भी था वह इस बार गन्ने की ढुलाई में ज्यादा खर्च हुआ। क्योंकि डीजल महंगा था इस वजह से ट्रैक्टर का किराया बढ़ा दिया। जो बचत गन्ने की फसल से होनी थी वह इन खर्चों में भी लग गई ऊपर से मिलने वाले अपने पैसे की भी उम्मीद जल्दी नहीं है। धान की फसल दिखाते हुए उन्होंने कहा कि इसी खेत में हमारी खड़ी हुई फसल में पानी भर गया था किसी तरीके से धान को सिखाया और सुखाने के बाद जब क्रय केंद्र पर ले गए तो क्रय केंद्र की ओर से धान रिजेक्ट कर दिया गया। वह कहते हैं पहले तो उनको बताया गया धान गीला है। जैसे तैसे लड़ झगड़ कर जब यह साबित किया गया धान गिला नहीं है तो क्रय केंद्र की ओर से धान को टूटा हुआ बता कर वापस किया जाने लगा। फिर किसानों ने धान क्रय केंद्र पर झगड़ा किया तब उनको यह कहकर वापस कर दिया गया कि धान में कालापन है। वो कहते हैं जब प्राकृतिक आपदा आई तो खड़ी हुई फसल या कटी हुई फसल को बचाने का हमारे पास कोई जरिया नहीं था। उन्होंने कहा ऐसे में सरकार को थोड़ा सा और शिथिलता बरतते हुए हम किसानों की न सिर्फ मदद करनी चाहिए बल्कि क्रय केंद्र पर भी स्पष्ट निर्देश दिए जाने चाहिए।

कभी एशिया की सबसे बड़ी शुगर फैक्ट्री होने का तमगा लखीमपुर जिले के गोला गोकर्णनाथ खीरी स्थित बजाज हिंदुस्तान शुगर फैक्ट्री को था। लाखो टन पेराई करने वाली शुगर फैक्ट्री में आज किसानों को बकाया भुगतान नहीं मिल पा रहा। किसानों के बकाया भुगतान ना होने पर किसानों ने बजाज शुगर फैक्ट्री पर धरना प्रदर्शन तक शुरू कर दिया था। भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय विधायक ने किसानों के भुगतान न होने पर शुगर फैक्ट्री के द्वारा अधिकारियों को बंधक बना लिया। बजाज हिंदुस्तान शुगर फैक्ट्री में अपना गन्ना ले जाने वाले ग्राम कपरहा के किसान अनूप शुक्ला कहते हैं की सितंबर से शुगर फैक्ट्री में कोई भी भुगतान किसानों को नहीं किया है। दिवाली ऐसे ही गुजर गई। भाई दूज भी ऐसे ही गुजर गया। लेकिन शुगर फैक्ट्री के अधिकारियों के आश्वासन के बाद भी किसानों का भुगतान नहीं हो रहा है हो गया। अनूप ट्रेडिशनल खेती के साथ-साथ मॉडर्न एग्रीकल्चर में भी भरोसा करते हैं और दूसरी अन्य फसल भी उग आते हैं। इसलिए उनको इस बात का अंदाजा है कि केंद्र सरकार ने गन्ना मिल मालिकों को भुगतान के लिए 42 हजार करोड रुपए का अतिरिक्त धन भी राज्य सरकार के मार्ग पर जारी कराया है। सभी अनूप शुक्ला कहते हैं कि इतना अतिरिक्त रुपया मिलने के बाद भी किसानों को बकाया क्यों नहीं दिया जा रहा है। व सवाल उठाते हैं कि दरअसल सरकारी लचर प्रबंधन के चलते ही किसानों को भुगतान नहीं मिल रहा है।

You may have missed