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कहानी उत्तर प्रदेश की: जब CM रहे उस कांग्रेसी नेता ने कहा, ‘राम मंदिर शिलान्यास हुआ, तो पहला फावड़ा मेरी पीठ पर चलेगा’

अयोध्या में शिलान्यास की योजनाओं के बीच वीएचपी का आंदोलन पूरे उत्कर्ष पर था। देश भर में शिलापूजन समारोह हो रहे थे, लेकिन यूपी की एनडी तिवारी सरकार पूरे घटनाक्रम के बीच उहापोह में थी। शिलापूजन का विरोध कांग्रेस के अंदर भी था। एक बड़े नेता ने बयान दिया कि अगर अयोध्या में विवादित स्थान पर राम मंदिर का शिलान्यास हुआ, तो पहला फावड़ा मेरी पीठ पर चलेगा।

योध्या
1989 के उस साल विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या में शिलान्यास का ऐलान किया था। 9 नवंबर 1989 की तारीख तय हो गई थी। अयोध्या में क्या होगा, उसकी रुपरेखा इस दिन से 4 महीने पहले ही बनने लगी थी। अयोध्या में राम मंदिर के उस पहले शिलान्यास की कहानी शुरू हो, उससे पहले उस पृष्ठभूमि को जानना जरूरी है, जिसमें एक शख्स ने अपने एक विचार से राम मंदिर को राष्ट्रीय आंदोलन बना दिया। इसके अलावा ये बात भी दिलचस्प है कि देश भर के भावनात्मक ज्वार के बावजूद यूपी की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अयोध्या का शिलान्यास रोकने के लिए कोर्ट में अपील की थी।

विश्व हिंदू परिषद की योजना के अनुसार, अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास जिस जगह पर होना था वो मंदिर का सिंहद्वार था। वीएचपी ने मंदिर निर्माण के लिए एक पूरा मॉडल बनाया था। इस मॉडल में प्रस्तावित मंदिर का गर्भगृह उसी स्थान को माना गया था, जहां पर बाबरी मस्जिद का मुख्य गुंबद था। मुस्लिम संगठनों ने इसी पर आपत्ति जताई थी।

सीएम योगी के गुरू बने मुख्य कर्ताधर्ता
बाबरी के इसी मुख्य गुंबद से कुल 192 मीटर दूर शिलान्यास होना था। प्रस्तावित मंदिर मॉडल के मुताबिक, राम मंदिर को 132 फीट ऊंचा और 270 फीट लंबा बनाने की योजना थी। इस योजना के अनुसार, अगर यूपी सरकार शिलान्यास की अनुमति देती तो वो हिस्सा भी मंदिर के लिए माना जाता, जहां उस वक्त मस्जिद थी। दूसरी ओर वीएचपी की ओर से शिलान्यास की तैयारी की जा रही थी। इस योजना के मुख्य कर्ताधर्ता लोगों में अशोक सिंहल, महंत अवेद्यनाथ, महंत नृत्यगोपाल दास, पूर्व डीजी श्रीशचंद्र दीक्षित, दाऊ दयाल खन्ना और सुरेंद्र गुप्ता के नाम शामिल थे।

शिलापूजन के दौरान महंत दिग्विजयनाथ, महंत अवेद्यनाथ और परमहंस रामचंद्र दास

‘बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का’
शिलान्यास के पहले आरएसएस के प्रचारक मोरोपंत पिंगले ने एक बड़ी योजना बनाई। मोरोपंत पिंगले का सुझाव दिया कि देश भर में वीएचपी की ओर से हर गांव के मंदिर में शिलापूजन समारोह का आयोजन किया जाए। संघ की योजना के तहत हिमाचल से लेकर केरल तक गांव-गांव में एक-एक ईंट को रामशिला के नाम से पूजा जाना था और गांव के लोग इस ईंट के साथ सवा रुपये का दान कर राम मंदिर के लिए अपना योगदान सुनिश्चित कर रहे थे। शिलापूजन के कार्यक्रम की शुरुआत के लिए 30 सितंबर 1989 का दिन चुना गया था। इस रोज शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि थी। विश्व हिंदू परिषद ने नारा दिया था- बच्चा बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का।

देश भर में पूजी गईं रामशिलाएं

गांव-गांव में हुए आयोजन, देश भर में 25 हजार शिलाओं का पूजन
इस शिलापूजन और शिलान्यास के लिए देश भर में भावनाएं उमड़ने लगीं। वीएचपी का प्रसार बढ़ने लगा और देश के गांवों में राम मंदिर के शिलापूजन की तैयारी होने लगी। वीएचपी ने पूरे देश को 22 राज्यों और 11 क्षेत्रों में बांट दिया। सभी शिलाओं को 5 नवंबर तक अयोध्या लाने की योजना बनी और रास्तों का निर्धारण कर दिया गया। दक्षिण भारत से आने वाली शिलाओं को झांसी, इलाहाबाद होते हुए अयोध्या लाया जा रहा था, वहीं उत्तर भारतीय राज्यों की शिला मुरादाबाद, बरेली और मेरठ के रास्ते अयोध्या आ रही थीं। एक-एक पत्थर स्थानीय मिट्टी से बना था, जिसे लाल कपड़े में बांधकर ट्रक में रखा जा रहा था। ये ट्रक जिला मुख्यालय, राज्य मुख्यालय और फिर अयोध्या पहुंचने थे।

शिलान्यास रोकने सरकार चली गई अदालत
वीएचपी की इस तमाम योजना के बीच सीएम नारायण दत्त तिवारी और कांग्रेस के कई नेता शिलान्यास कराने को राजी नहीं थे। विरोध करने वालों में कमलापति त्रिपाठी जैसे वरिष्ठ लोग भी शामिल थे। सितंबर में होने वाले शिलापूजन समारोह के बाद शिलान्यास राष्ट्रीय आंदोलन बनेगा, ये बात सभी को पता थी। इसे रोकने के लिए सीएम नारायण दत्त तिवारी ने एक योजना बनाई। यूपी की सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में वीएचपी के फैसले को चुनौती दी और कहा कि शिलान्यास का कार्यक्रम और शिलापूजन रोक दिया जाए। हालांकि हाईकोर्ट ने सरकार की अपील खारिज कर दी और अयोध्या के विवादित ढांचे की यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।

नारायण दत्त तिवारी (फाइल फोटो)

कमलापति त्रिपाठी सरीखे नेता भी थे नाराज
नारायण दत्त तिवारी उहापोह में पड़े रहे कि शिलान्यास की इजाजत दी जाए या नहीं। दूसरी तरफ कांग्रेस नेता कमलापति त्रिपाठी भी थे, जिन्होंने कहा था कि अगर अयोध्या में शिलान्यास की इजाजत दी गई, तो जमीन खोदने से पहले पहला फावड़ा उनकी पीठ पर चलाया जाएगा। तमाम अदालती दांवपेच के बीच देश भर से 25 हजार शिलाएं अयोध्या लाई गईं। करोड़ों लोगों ने अपने गांव में शिलापूजन किया और राम मंदिर से अपनी भावनाएं जोड़ ली। सरकार की कोशिश थी, कि शिलान्यास ऐसे स्थान पर हो जिससे मस्जिद प्रभावित ना हो। अदालतों का सहारा लिया गया, लेकिन इससे पहले ही राजीव गांधी सरकार ने खुद कमान संभाल ली।

राजीव कैबिनेट के सबसे भरोसेमंद लोगों में एक थे बूटा सिंह

बूटा सिंह एनडी तिवारी को समझाने आए
राजीव देश के पीएम थे और उनकी सरकार में पंजाब के बड़े नेता बूटा सिंह गृहमंत्री के रूप में काम कर रहे थे। कहा जाता है कि बूटा सिंह के समझाने के बाद ही नारायण दत्त तिवारी ने अयोध्या के डीएम से अदालत में हलफनामा डलवाने के बाद शिलान्यास की इजाजत दी। इस पटकथा के पीछे राजीव गांधी थे, जिन्हें शिलान्यास कराने का आदेश सिद्ध संत देवरहा बाबा से मिला था। देवरहा बाबा के आदेश के बाद राजीव गांधी ने बूटा सिंह को नारायण दत्त तिवारी से मिलने भेजा। उनके समझाने पर ही तिवारी शिलान्यास की अनुमति और व्यवस्था करने को राजी हुए।