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कहानी UP की: टैक्सी यूनियन का वह नेता जो बसपा-भाजपा सरकार में बना मंत्री, 24 घंटे बिजली के लिए अपनी ही सरकार में कर दी थी बगावत

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बात 1990 की है। वाराणसी में भाजपा जिलाध्‍यक्ष पद के लिए चुनाव होना था। पार्टी के लोग मतदान के जरिए अपना जिलाध्‍यक्ष चुनते थे। संघ का कार्यालय तब के पूंजीपत‍ि माया शंकर पाठक के घर में हुआ करता था। संघ माया शंकर पाठक को जिलाध्‍यक्ष बनाने के पक्ष में था तो वहीं औराई, भदोही के रहने वाले रंगनाथ मिश्रा भाजपा की पसंद थे। भदोही जिला वाराणसी का ह‍िस्‍सा था। 90 के दशक में माया शंकर का बड़ा नाम हुआ करता था। क्षेत्र में उनका अच्‍छा प्रभाव था और संघ के संगठन मंत्री उनके साथ बाइक पर घूमा करते थे।

खैर, चुनाव पर लौटते हैं। रंगनाथ मिश्रा का ये पहला चुनाव था और उन्‍हें आठ मतों से हार मिली। एक साल बाद फिर यही चुनाव होता है। रंगनाथ फिर दौड़ में थे। इस बार उन्‍होंने लगभग 200 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की और बनारस भाजपा के जिलाध्‍यक्ष चुने गये। रजनीत‍ि में रंगनाथ की जीत की शुरुआत यहां से हुई। इसके बाद वे 1993, 1996, 2005 और 2007 विधानसभा चुनाव जीते। भाजपा और बसपा की सरकार में मंत्री भी रहे और उनके इस सफर में टर्निंग प्‍वाइंट रहा टैक्‍सी ड्राइवरों का यूनियन का नेता बनना, ये कहानी बड़ी ही दिलचस्‍प है।

कल्‍याण सिंह के कहने पर पहली बार लड़े विधायकी
रंगनाथ मिश्रा को कल्‍याण सिंह का हमेशा करीबी माना जाता रहा। 1991 में जिलाध्‍यक्ष बनने के बाद कल्‍याण सिंह के कहने पर उन्‍होंने पहले लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बनाया। उन्‍होंने पार्टी से टिकट से मांगा लेकिन बात नहीं बनी। वे नाराज थे, लेकिन कल्‍याण सिंह ने उन्‍हें मनाया और इसी साल हो रहे विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा। 10वीं लोकसभा चुनाव के लिए वीरेंद्र सिंह मस्‍त को मिर्जापुर से टिकट मिला, रंगनाथ मिश्रा भी यहीं से टिकट मांग रहे थे। खैर, उन्‍हें औराई विधानसभा क्षेत्र के लिए पार्टी ने टिकट दिया, जहां के वे रहने वाले थे।

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राम लहर में हुए इस चुनाव में 419 में से 221 सीट जीतकर भाजपा ने सरकार बनाई और कल्‍याण सिंह मुख्‍यमंत्री बने, लेकिन रंगनाथ को नजदीकी हार झेलनी पड़ी। उन्‍हें जनता दल के योगेश चंद्र ने 1,568 से वोटों से हाराया। इस हार के बाद पार्टी के अंदर रंगनाथ के खिलाफ गुटबाजी शुरू हो गयी। संघ के लोगों ने कहा क‍ि जब ये राम लहर में नहीं जीत पाये तो आगे क्‍या जीतेंगे।

संगठानात्‍मक मजबूती के लिए रखी अलग जिले की मांग
विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद रंगनाथ ने मंथन किया। उन्‍हें जो पहली बात समझ आई वह यह क‍ि जिला बड़ा होने की वजह से उनका प्रभाव कम रहा। वे तब बनारस के भाजपा अध्‍यक्ष थे ही। उन्‍होंने मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह से भदोही को अलग जिला बनाने की मांग की और इस पर सहमत‍ि बन गयी। आगे चलकर 1994 में भदोही बनारस से अलग होकर नया जिला बना और रंगनाथ नए जिले के पहले भाजपा अध्‍यक्ष चुने गये थे। भदोही के वरिष्‍ठ पत्रकार हरीश सिंह बताते हैं, ‘नये जिले में रंगनाथ का प्रभाव बहुत तेजी से बढ़ा। हालांक‍ि संघ के नेता उन्‍हें पसंद नहीं करते थे, उनके प्रभाव के सामने कोई खुलकर विरोध नहीं कर पाता था। लेकिन उस समय ये बात जरूर हो रही थी क‍ि उन्‍हें अब शायद ही भाजपा से टिकट मिले। औराई में उन्‍हें जो हार मिली, पहला मुद्दा था और दूसरा संघ की उनसे नाराजगी। भाजपा में संघ का दखल तब भी बहुत मजबूत था।

एक ही मंच पर राजनाथ सिंह, कलराज मिश्र और रंगनाथ मिश्र। फाइल फोटो।

टैक्‍सी यून‍ियन के नेता बनने से बदली कहानी
1991 में भाजपा 221 सीटें लेकर यूपी विधानसभा में आई लेकिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई और कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया गय। 1993 में फिर चुनाव हुए। भाजपा के वोट तो बढ़े पर सीट घट गयी। 1993 में जब चुनाव हुए तो रंगनाथ एक बार फ‍िर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन इस बार स्थि‍त‍ि अलग थी। माहौल उनके खिलाफ था। कल्‍याण सिंह अलग मसलों को लेकर फंसे थे।

लेकिन इस मुश्‍किल समय में रंगनाथ का साथ दिया टैक्‍सी, ऑटों और जीप ड्राइवर्स ने। इन चालकों ने रंगनाथ के पक्ष में न‍ सिर्फ माहौल बनावाया, उनके राजनीतिक करियर को उठाने में भी अहम भूमिका निभाई। तब क्‍या हुआ था, क्‍या थी वह पूरी कहानी, इस बारे में हमने रंगनाथ मिश्रा के बेटे डॉक्‍टर ज्ञान मिश्रा से बात की।

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ज्ञान बताते हैं, ‘भदोही के बहुत से लोग आज भी कहते हैं क‍ि रंगनाथ मिश्रा राजनीत‍ि में आने से पहले टैक्‍सी ड्राइवर थे। लेकिन ये भ्रामक जानकारी है, बात कुछ और है जो लोगों को पता नहीं है।’

वे आगे बताते हैं, ’90 के दशक में औराई होते हुए भदोही, मिर्जापुर के बीच जो भी जीप, टैक्‍सी या ऑटो चलते थे, उनसे वसूली मांगी जाती थी। भदोही के जिलाध्‍यक्ष बनने पर पिता जी ने दो जीप निकलवाई, तब उन्‍हें इस वसूली की जानकारी मिली। इसके बाद वे धरने पर बैठे और प्रशासन से वसूली को तत्‍काल बंद कराने की मांग की। प्रशासन ने बात सुनी और वसूली बंद करा दी गई। इससे टैक्‍सी और ऑटों ने पिता जी को अपना नेता चुन लिया। तब तक वे युवा मोर्चा में शामिल हो चुके थे।’

इस घटना के बाद क्षेत्र में रंगनाथ की धाक और जम गई। जिले में भाजपा की बैठक से ज्‍यादा भीड़ युवा मोर्चा की बैठक में होने लगी। ड्राइवर बड़ी संख्‍या में अपनी गाड़ी लेकर पहुंचते थे। उन्‍हें बस एक बार कहना ही होता था। ये चर्चा का विषय बना क‍ि भाजपा की बैठक से ज्‍यादा भीड़ तो युवा मोर्चा की बैठक में होती है, और ये टर्निंग प्‍वाइंट साबित हुआ।

1993 में दर्ज की पहली जीत
जिले में रंगनाथ का भौकाल देखते हुए भाजपा ने उन्‍हें 1993 में फिर टिकट दिया। 12वें विधानसभा चुनाव में 177 सीट जीतकर भाजपा सबसे बड़ी तो रही लेकिन सरकार बनी समाजवादी पार्टी की और मुलायम सिंह यादव पहली बार प्रदेश के सीएम बने। इस बार भी कल्‍याण सिंह ने साथ दिया और उनकी सिफारिश से रंगनाथ को टिकट मिला। औराई से उन्‍होंने बसपा की राजकुमारी को 9,398 से वोटों से हराकर पहली बार विधानसभा चुनाव जीता। तीन साल बाद 1996 में फिर चुनाव हुआ। रंगनाथ ने इस बार इसी सीट पर समाजवादी पार्टी के जाह‍िद को 12,224 वोटों हराया। 13वें विधानसभा चुनाव में भी भाजपा 174 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी लेकिन स्‍पष्‍ट बहुमत न होने के कारण प्रदेश में आठवीं बाद राष्‍ट्रपति शासन लगा जो कुल 154 दिनों तक रहा।

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इसके बाद प्रदेश में मायावती सत्‍ता में आती हैं और 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर तक, कुल 184 दिन प्रदेश की बागडोर उनके हाथ रही। भाजपा फिर सत्‍ता में लौटती है और कल्‍याण सिंह दूसरी बार सीएम पद की शपथ लेते हैं। इसी दौरान रंगनाथ को मंत्रालय में जगह मिली। पहले ऊर्जा मंत्रालय की जिम्‍मेदारी मिली। 13वें विधानसभा में ही राजनाथ सिंह प्रदेश के मुख्‍यमंत्री बनते हैं। तब रंगनाथ को पर‍िवार कल्‍याण मंत्रालय और वन विभाग की भी जिम्‍मेदारी दी गई। वर्ष 2000 में गृह मंत्रालय स्‍वतंत्र प्रभार के साथ-साथ संबंध मुख्‍यमंत्री जैसी जिम्‍मेदारी सौंपी गई।

24 घंटे बिजली के लिए कर दी थी बगावत
बात 1999 की है। कल्‍याण सिंह की सरकार थी। रंगनाथ ऊर्जा मंत्री (राज्‍य) थे और नरेश अग्रवाल इस विभाग के कैबनिेट मंत्री थे। उस समय नरेश अग्रवाल राष्‍ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के अध्‍यक्ष थे और उनके समर्थन में सरकार चल रही थी। खबर आई क‍ि नरेश अपने जिला हरदोई को 24 घंटे बिजली उपलब्ध करा रहे हैं। इसके बाद रंगनाथ ने अधि‍कार‍ियों की बैठक बुलाई और कहा क‍ि हमारे जिले भदोही में भी 24 घंटे ब‍िजली आनी चाहिए। ये खबर नरेश अग्रवाल तक पहुंची। उन्‍होंने रंगनाथ के फैसले को रद्द कर दिया और कहा क‍ि 24 घंटे ब‍िजली बस उनके विधानसभा क्षेत्र को दी जा सकती है। रंगनाथ लखनऊ पहुंचते हैं और कल्‍याण सिंह के सामने त्‍याग पत्र रख देते हैं। बवाल इतना बढ़ गया क‍ि नरेश अग्रवाल लाल कृष्‍ण आडवाणी तक पहुंच जाते हैं।

आडवाणी कल्‍याण सिंह को फोन घुमाते हैं। मामला सरकार को बचाने का भी था। खबरें आने लगीं क‍ि नाराज नरेश अपना समर्थन वापस ले सकते हैं। ऊपर से आदेश आया क‍ि रंगनाथ से ऊर्जा मंत्रालय ले लिया जाए, लेकिन कल्‍याण सिंह ने चार महीने और उन्‍हें इस मंत्रालय की जिम्‍मेदारी सौंंपी रखी। 2022 तक भदोही को 24 घंटे ब‍िजली मिलती रही।

2005 में थामा बसपा का हाथ
2002 में हुए चुनाव में औराई विधानसभा सीट से रंगनाथ को उदयभान सिंह उर्फ डॉक्‍टर सिंह के हाथों हार झेलनी पड़ी। इसके बाद 2005 में रंगानाथ बसपा में शामिल हो जाते हैं। दलितों की पार्टी कही जाने वाली बसपा में ये उस समय का सबसे बड़ा ब्राह्मण चेहरा था। दरअसल 2007 में बसपा की जीत की कहानी की बुनियाद यहीं से रखी गई थी। इस चुनाव में उन्‍होंने सपा की रीता सिंह (उदय भान सिंह की पत्‍नी) को हराकर बसपा से पहली बार जीत दर्ज की। 2007 में जब बसपा पूर्ण बहुमत में आई थी, तो इस बार भी उन्‍होंने रीता सिंह को हराया। मायावती की सरकार में वे माध्यमिक शिक्षा मंत्री बने। इसके बाद 2012 विधानसभा चुनाव में मिर्जापुर और पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें भदोही विधानसभा से टिकट दिया लेकिन दोनो ही चुनाव में उन्हें हार मिली। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा ने उन्‍हें भदोही से लोकसभा का टिकट दिया, लेकिन इस बार भी उनके हिस्‍से हार ही आई।

जेल और फिर बेल की कहानी
सितंबर 2021 में ही रंगनाथ मिश्र को भ्रष्टाचार के मामले में एमपी एमएलए की विशेष अदालत ने दोषमुक्त करार दे दिया। उनके विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति का मुकदमा 26 अक्टूबर 2012 को भदोही में दर्ज हुआ था। विजिलेंस से जांच के बाद यह केस लिखाया था। आरोप है कि मंत्री रहते रंगनाथ ने आय से अधिक संपत्ति बनाई थी। अदालत ने कहा कि सजा सुनाने लायक साक्ष्य नहीं हैं। 2013 में सपा की सरकार के कार्यकाल में में रंगनाथ मिश्र के विरुद्ध भदोही में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ था। इससे पहले मायावती सरकार के दौरान करोड़ों रुपए के हुए लैकफेड घोटाले में भी उन्‍हें आरोपी बनाया गया था, 2015 में उन्‍हें इस मामले से भी बरी कर दिया था।