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क्यों मुखर हो रही है बीजिंग 2022 ओलंपिक के Boycott की मांग

साल 2022 यानी अगले साल ही चीन के बीजिंग नें शीतकालीन ओलंपिक खेल होने हैं। ओलंपिक खेलों की शुरूआत में 100 दिन से भी कम समय बचा है और ऐसे में, एथलीट, राजनेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता उन लोगों में शामिल हैं जो मानवाधिकार कारणों से खेलों को रद्द या इनका बहिष्कार देखना चाहते हैं। अब अमेरिका चीन के बीजिंग शहर में होने वाले ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार पर विचार कर रहा है। इससे पहले यूरोपियन संसद में बीजिंग ओलंपिक के बहिष्कार का ऐलान किया जा चुका है वहीं दूसरी तरफ कई खिलाड़ी भी मुखर होकर इसके बहिष्कार को लेकर आवाज उठा चुके हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के जल्द ही अपने देश के अधिकारियों को खेलों में नहीं भेजने की सिफारिश को मंजूरी देनी की उम्मीद है। बता दें कि व्हाइट हाउस की तरफ से आमतौर पर ओलंपिक के उद्घाटन और समापन समारोह में एक प्रतिनिधिमंडल भेजता है। अमेरिका में शीर्ष सासंदों द्वारा राजनयिक बहिष्कार के आह्वान की गई है। एनबीए बास्केटबॉल खिलाड़ी और मुखर मानवाधिकार अधिवक्ता एनेस कनेटर बहिष्कार का आह्वान करने वाली नवीनतम हाई-प्रोफाइल आवाजों में से एक हैं। उन्होंने ट्वीट किया कि आज इसे देखने वाले सभी स्वतंत्रता समर्थकों को मेरा संदेश है। हम एक साथ मजबूत हैं।
हम सभी को #StandWithTaiwan करना चाहिए, इवान का समर्थन करें, और लोकतंत्र की रक्षा करें। हमें ताइवान को स्वतंत्र और सुरक्षित रखना चाहिए। ताइवान ताइवान के लोगों का है! इससे पहले यूरोपियन संसद में बीजिंग के शीतकालीन ओलंपिक के बहिष्कार का ऐलान किया था। मामले पर यूरोपीय संसद के सांसदों ने सहमति जताते हुए कहा कि हमें चीन के मानवाधिकारों के हनन के कारण बीजिंग 2022 शीतकालीन ओलंपिक में हिस्सा लेने वाले निमंत्रण को अस्वीकार करना चाहिए। इसके साथ ही ईयू सांसदों ने अपनी सरकारों से मांग करते हुए उईगर मुसलमानों को लेकर चीन के व्यवहार पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की बात भी कही। इससे पहले छह ओलंपिक खेलों ने बहिष्कार और कम देशों की भागीदारी झेली है।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका को ठोस कार्रवाइयों के साथ अपनी प्रतिबद्धताओं का सम्मान करना चाहिए। उसे ताइवान के साथ सभी प्रकार के आधिकारिक आदान-प्रदान या संबंधों को बढ़ावा देना बंद कर देना चाहिए। अमेरिका ‘ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधि कार्यालय का नाम बदलकर ‘ताइवान प्रतिनिधि कार्यालय’ नहीं कर सकता और उसे ‘ताइवानी स्वतंत्रता’ और अलगाववादी ताकतों को गलत संकेत भेजना तत्काल प्रभाव से बंद करना चाहिए।दरअसल वामपंथी चीन की आंखों में लोकतांत्रिक मूल्यों की पक्षधर ताइवानी सरकार हमेशा ही खटकती रहती है। ताइवान को लेकर वैश्विक स्तर पर छोटी से छोटी बात भी चीन की दुखती नब्ज पर हाथ रखने जैसे प्रतीत होती है। यही कारण है कि सांस्कृतिक और आर्थिक कार्यालय के नाम को लेकर भी चीन इतना बौखलाया हुआ है।