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मलइयो पर डोला पीएम मोदी का मन: जनसभा में अपने संबोधन में किया जिक्र, जानिए इस खास बनारसी मिठाई के बारे में

वाराणसी के करखियांव में जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बनारसी मिठाई मलइयो और लौगंलता का जिक्र किया। बनारसी मिठाइयों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अब तो मलइयो का मौसम भी आ गया है। प्रधानमंत्री ने जैसे ही मलइयो का जिक्र किया तो सभा में मौजूद हजारों की भीड़ ने तालियां बजाईं।

दरअसल, प्रधानमंत्री अमूल बनास डेयरी प्लांट के फायदों पर बात कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बनास डेयरी प्लांट जब तैयार हो जाएगा तो पूरा बनारस और उसके आसपास के जिलों के लाखों पशुपालकों को फायदा होगा। यहां आइसक्रीम और मिठाइयां भी बनेंगी।

यानि, बनारस की लस्सी और छेने की एक से बढ़कर एक मिठाइयां और लौंगलता इन सबका स्वाद और बढ़ जाएगा। वैसे अब तो मलइयो का मौसम भी आ ही गया है। पीएम मोदी ने जब मलइयों का जिक्र किया उसके बाद कई लोगों ने इस मिठाई के बारे में गूगल सर्च किया। तो आइए आज आपको बताते हैं खास बनारसी मिठाई मलइयो के बारे में।
बनारस के मिठाइयों में शुमार मलइयो का अपना अलग ही स्थान है। कुछ लोग इसे खाते हैं, तो कुछ लोग इसे पीते है। कुछ लोग कहते है कि कब खाया कब पिया पता ही नहीं चला। सबसे खास बात यह कि मलइयो सिर्फ ठंड के मौसम में ही मिलता है। वैसे तो इस दौर में अब दक्षिण के पकवान कश्मीर में मिलते हैं और पंजाब की लस्सी आसाम और सिक्किम में लेकिन मलइयो पर अब भी काशी का ही एकाधिकार है जो विदेशों तक मशहूर है। दूध से बनने वाली मलइयो की शुरुआत सैकड़ों साल पहले बनारस में ही हुई थी।

काशी की पहचान बन चुका मलइयो का जायका सिर्फ ठंड के दिनों में ही लिया जा सकता है। इसकी भी अपनी वजह है। क्योंकि, ये खास मलइयो ओस की बूंदों से बनता है। जैसे जैसे ठंड बढ़ती है, इसकी खासियत भी बढ़ने लगती है। बनारस में पक्के महाल से लेकर चौक, मैदागिन, गोदौलिया, दशाश्वमेध, गिरजाघर चौराहे तक मलइयो की कई दुकाने आपको मिल जाएंगी।

मलइयो का दुर्लभ स्वाद बनारस के अलावा दुनिया में कही नहीं मिलेगा।  केसरिया दूध की झाग में हल्की मिठास और मनमोहक सुगंध सुबह ए बनारस में चारचांद लगाती है। मुंह में जाते ही इसका स्वाद बनारसीपन घोल देता है।  बनारसी मलइयो भरी सर्दी के तीन महीने में बनाई जाती है। जितनी ज्यादा ओस पड़ती है इसकी गुणवत्ता उतनी बढ़ती है।

मलइयो बनाने वाले शरद श्रीवास्तव बताते हैं कि कच्चे दूध को बड़े बड़े कड़ाहों में खौलाया जाता है और इसके बाद रात खुले आसमान के नीचे रख दिया जाता है। रातभर ओस पड़ने के कारण इसमें झाग पैदा होता है। सुबह कड़ाहे को उतारकर दूध को मथनी से मथा जाता है। इसमें इलायची, केसर, दूध और मेवा डालकर दोबारा मथा जाता है।