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UP Election: हाई कोर्ट जज की अपील पर चर्चा में आई यूपी चुनाव टलने की बात, कितने फायदे-नुकसान में बीजेपी और अखिलेश? समझिए

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लखनऊ
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के चढ़ते सुरूर के बीच कोरोना और इसके नए वैरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron Varient) के बढ़ते मामलों ने नई चिंता पैदा कर दी है। संभावित खतरे को देखते हुए हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से चुनाव टालने की अपील की थी। इस पर चुनाव आयोग ने स्थिति का जायजा लेने के लिए अगले सप्ताह यूपी के दौरे पर आने की बात कही। हालांकि इस मामले ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है।

अगले कुछ महीनों के अंदर प्रस्तावित चुनाव को टाले जाने की अपील के बीच समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता और राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने ओमिक्रॉन को गंभीर खतरा नहीं बताते हुए इसे बीजेपी का चुनावी हथकंडा करार दिया है। रामगोपाल ने कहा कि कोर्ट ने बिना किसी की अपील के ऐसी बात क्यों कही? पब्लिक बीजेपी के खिलाफ है और इसी वजह से चुनाव को टालने का हथकंडा रचा जा रहा है। कुछ ऐसा ही मानना सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर का भी है।

अब इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस सुझाव ने यह चर्चा शुरू कर दी है कि क्या प्रदेश में विधानसभा चुनाव टाल देना चाहिए। राजनीतिक नफे-नुकसान की बातें हो रही हैं। विपक्षी दल का मानना है कि हार के डर से आशंकित होकर बीजेपी चुनाव को टालना चाहती है। सपा नेता रामगोपाल का बयान भी यही इशारा करता है। उनका मानना है कि अखिलेश की सभाओं और रैलियों में उमड़ रही भीड़ को देखते हुए बीजेपी को डर सता रहा है।

रामगोपाल यादव (फाइल फोटो)

इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन के साथ बातचीत में कहा, ‘हाई कोर्ट के जिस जज ने ऐसी अपील की है, वह पहले भी अपने दायरे से बाहर जाकर बातें कहते रहे हैं। और अभी उत्तर प्रदेश में कोरोना की स्थिति गंभीर नहीं है। कोरोना का खतरा हो तो भी सावधानी बरतते हुए चुनावी प्रक्रिया संपन्न कराने में और चुनाव को ही टाल देने में काफी अंतर है। मुझे नहीं लगता कि सावधानी के साथ चुनाव संपन्न कराए जाने में किसी तरह की समस्या आएगी। अपने देश का चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्था है, जैसे कि सुप्रीम कोर्ट। लेकिन अगर किसी सरकार की तरफ से दबाव बनाया जाता है तो यह काफी गलत संदेश होगा। ऐसा करना अलोकतांत्रिक साबित होगा, जिसके दुष्कर परिणाम सामने आ सकते हैं।’

न्यूज लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया कहते हैं कि कोर्ट के जज को अपना कार्यक्षेत्र पता होना चाहिए। जरूरी मुद्दों और केस पेंडिंग पड़े रहते हैं और गैरजरूरी मसलों पर राय दी जाती है। लेकिन ख्याल इस बात का भी रखा जाना चाहिए कि जज की किसी टिप्पणी पर राजनीतिक बयानबाजी भी ना हो। चुनाव टलना कोई समाधान नहीं है। कोविड की स्थिति और तैयारी को देखते हुए कुछ दिन तक आगे-पीछे किया जा सकता है। नहीं तो कार्यकाल खत्म होने के बाद राष्ट्रपति शासन की स्थिति लग सकती है।

राजनीतिक दलों को नफे नुकसान पर अतुल चौरसिया कहते हैं कि चुनाव टलने की स्थिति में फायदे की स्थिति में तो कोई नहीं होगा। अब यूपी का चुनाव अपने फुल मोड में आ चुका है। बीजेपी भी चुनाव प्रचार पर काफी खर्च कर रही है और मुख्य विपक्षी चेहरा नजर आ रहे अखिलेश भी पत्ते खोल रहे हैं। वह अभी तक आधे प्रदेश में रैलियां और सभाएं कर चुके हैं। टलने की स्थिति में आर्थिक नुकसान तो होगा ही। साथ ही फिर नए सिरे से चुनावी कैम्पेन शुरू करने का दबाव होगा। हां, सत्ता में रहने का कुछ फायदा बीजेपी को जरूर मिल सकता है।

एक चुनावी रैली

यूपी की सियासी फिजा के रुख के बारे में रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि जनता के मन में सत्तारूढ़ पार्टी को लेकर कई तरह के भेद पैदा हो जाते हैं। और अखिलेश यादव अभी प्रदेश में बीजेपी को प्रमुख तौर पर चुनौती दे रहे हैं। लेकिन फिर भी अगले 2-3 महीने महत्वपूर्ण साबित होंगे। 2017 में हुए पिछले चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटें जीतकर पहली बार यूपी विधानसभा में तीन चौथाई बहुमत हासिल किया। वहीं अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन 54 सीटें जीत सकी। इसके अलावा प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती की बीएसपी 19 सीटों पर सिमट गई।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने देश-विदेश में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रान के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग से चुनावी रैलियों पर रोक लगाने का अनुरोध किया है। अदालत ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों से कहा जाए कि वे चुनाव प्रचार टीवी और अखबारों के माध्यम से करें। प्रधानमंत्री एक-दो माह के लिए चुनाव टालने पर भी विचार करें, क्योंकि जान है तो जहान है। इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने अगले सप्ताह यूपी आने की बात कही है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट

चुनाव आयोग की टीम उत्तर प्रदेश आ रही है। टीम 28 और 29 दिसंबर के बीच उत्तर प्रदेश में रहेगी। इस दौरान यूपी के सभी जिलों से जिलाधिकारियों, एसपी और एसएसपी को यूपी की राजधानी लखनऊ में बुलाया गया है। अधिकारियों के साथ बैठक करके आयोग, चुनावों को लेकर चर्चा करेगा। फीडबैक के आधार पर चुनावों को टालने पर भी फैसला लिया जा सकता है। फिलहाल बैठक के बाद आने वाले फीडबैक और रिपोर्ट पर ही फैसला निर्भर करेगा।

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देश में सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। इस बार उत्तर प्रदेश में 403 सीटों वाली 18वीं विधानसभा के लिए ये चुनाव होना है। बता दें 17वीं विधानसभा का कार्यकाल 15 मई तक है। पिछली बार 17वीं विधानसभा के लिए 403 सीटों पर चुनाव 11 फरवरी से 8 मार्च 2017 तक 7 चरणों में हुए थे। इनमें लगभग 61 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जिनमें 63 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं थीं, जबकि पुरुषों का प्रतिशत करीब 60 फीसदी रहा।