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Kahani UP Ki: यूपी में पंजाबी मूल का भाजपा नेता, जिसने 32 साल पहले जीतना शुरू किया फिर कोई हरा नहीं पाया

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शाहजहांपुर
शाहजहांपुर की धरती देश के लिए अमिट हस्ताक्षर है। यह रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्लाह खान की साझी विरासत को सींचने वाली धरती है। शहीदों की यह धरती उत्तर प्रदेश के मध्य और पश्चिमी भाग के बीच का गेटवे है। विधानसभा चुनावों की दस्तक के बीच शाहजहांपुर की राजनीति में सबसे सक्रिय और चर्चित कोई नाम है, तो वह है सुरेश खन्ना। योगी सरकार में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बाद तीसरी रैंक पर गिने जाने वाले कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना की राजनीति भी उतनी ही दिलचस्प है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति और धर्म काफी अहम फैक्टर है। चुनावी समीकरण और जीत-हार के मायने इसी से तय होते हैं। लेकिन कई नेता अपवाद भी साबित होते हैं। और ऐसी लिस्ट अगर तैयार होगी तो सुरेश खन्ना ऊपर के पायदान पर ही रहेंगे। भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में सक्रिय खन्ना पंजाबी खत्री मूल के नेता हैं। साल 1989 में पहली बार चुनाव जीतने के बाद सुरेश खन्ना ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और जीत का सिलसिला आज तक नहीं टूटा।

शाहजहांपुर के चौक इलाके में एक मोहल्ला पड़ता है, नाम है- दीवान जोगराज। साल 1953 में रामनारायण खन्ना और कांति देवी को संतान हुई। नाम रखा गया- सुरेश। इसी सुरेश खन्ना ने बाद में चलके राजनीति में झंडे गाड़ दिए। लखनऊ यूनिवर्सिटी से एलएलबी की पढ़ाई करने वाले सुरेश खन्ना का रूझान छात्र जीवन के समय से ही राजनीति में रहा। भगवान हनुमान में अटूट आस्था है। इन्होंने आज तक शादी नहीं की। भाई के परिवार के साथ रहते हैं।

सुरेश खन्ना और सीएम योगी (फोटो- साभार)

अपने को फुल टाइम पॉलिटिशन और जमीनी नेता मानने वाले सुरेश खन्ना ने पहला चुनाव लोकदल के टिकट पर लड़ा था। लेकिन सफल नहीं हुए। बाद में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया और 1989 में पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद 1991, 1993, 1996, 2002, 2007, 2012 और 2017 के चुनाव में शाहजहांपुर की जनता सुरेश खन्ना को ही चुनती रही।

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सूबे की राजधानी लखनऊ में पत्रकारिता कर रहे शाहजहांपुर के निवासी विशाल शुक्ला पिछले 32-33 सालों से लगातार चुनाव जीत रहे 8 बार के विधायक सुरेश खन्ना की लोकप्रियता के बारे में बताते हैं। उन्होंने बताया, ‘व्यवहार और स्वभाव। यही सुरेश खन्ना की व्यक्तित्व के खास पहलू हैं। अगर कोई बिरादरी के वोटबैंक के हिसाब से देखे तो खन्ना तीसरे या चौथे नंबर पर भी नहीं रहते। वह भाजपा के ऐसे नेता हैं, जिन्हें अल्पसंख्यक भी वोट दिया करते हैं। शुरुआती दिनों में रफायतुल्लाह खान जैसे नेता ने भी आगे बढ़ने में सहयोग किया।’

विशाल शुक्ला बताते हैं, ‘सुरेश खन्ना वकालत करते थे और बजाज स्कूटर से चला करते थे। राम मंदिर आंदोलन लहर के दौरान बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े और 1989 में विधायक बन गए। यह उनकी खूबी है कि कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्रित्वकाल में वह मंत्री बने। शहर के कटिया टोला इलाके में नरक मची रहती थी। लेकिन खन्ना ने मंत्री रहते हुए उसे चमका दिया। शहीद स्मृति पार्क, म्यूजिकल फाउंटेन, खनौत नदी के बीच हनुमान भगवान की 104 फीट ऊंची मूर्ति बनवाई।’

सुरेश खन्ना (फाइल फोटो)

सुरेश खन्ना को विपक्ष की चुनौती पर विशाल बताते हैं कि शाहजहांपुर सदर में मुस्लिमों की आबादी भी अच्छी खासी है। और भाजपा के सामने कांग्रेस, सपा, बसपा में वोट बंट जाता है। ठीक-ठाक संख्या में मुसलमान खुद सुरेश को सपॉर्ट भी करते हैं। अपने काम और व्यवहार की वजह से सुरेश खन्ना को दिक्कत नहीं हुई। बीते 10-15 सालों में सपा नेता तनवीर खान मजबूत प्रतिद्वंदी बनकर उभरे हैं। लेकिन वित्त, संसदीय कार्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग संभाल रहे सुरेश खन्ना अब प्रदेश की राजनीति में काफी आगे का सफर तय कर चुके हैं।