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घड़ियालों के घर में छाया जलकाग का जादू: पर्यटकों को लुभा रहा शिकार का अनोखा अंदाज, पानी को चीरते हुए भरते हैं उड़ान

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चंबल नदी में शिकार करते जलकाग पक्षी

घड़ियालों के घर चंबल में पहुंचे कार्मोरेंट (जलकाग) पक्षी पर्यटकों का आकर्षण बने हुए है। ये जल में गोता लगाकर अपना शिकार पकड़ते है। जैसे ही मछली पकड़ में आती है, उसे ऊपर उछाल देते हैं और फिर इसे सीधा निगल जाते है। पानी को चीरते हुए उड़ान भरते हैं। पर्यटकों में कार्मोरेंट का यह अंदाज कैमरे में कैद करने की होड़ सी रहती है। पेरू, मिश्र, कोरिया, जापान आदि मुल्कों से चंबल का रुख करने वाले जलकाग ने नदी के किनारे की झाड़ियों, टापू पर घोंसले बनाए हैं। एक बार जहां घोंसला बना दिया, वहां एक जोड़ा सालों तक दोबारा आता रहता है। मादा पक्षी तीन से पांच अंडे देती हैं। इनका रंग नीले, हरे और चूने के जैसा होता है। दोनों मिलकर चूजों को पालते हैं। अंडों से चूजे निकलने के बाद नर व मादा अपने गले से तरल पदार्थ खिलाते हैं।

चंबल नदी में प्रवासी पक्षियों का डेरा

सूख जाते हैं घोंसले वाले पौधे

नर व मादा दोनों मिल कर पानी के किनारे खड़े पेड़ों पर घोंसला बनाते हैं। जिस पौधे पर ये घोंसला बनाते है, वे पौधे तीन-चार साल में सूख जाते है। इसका कारण इस पक्षी के मल का अत्यधिक अमलीय होना है। मल से पहले पत्ते सूखते हैं और बाद में पौधा भी सूख जाता है।

प्रवासी पक्षी

ये है खासियत

इन पक्षियों की आयु करीब 20-23 वर्ष की होती है। लंबाई 80-100 सेंटीमीटर होती है। इनके पंखों का फैलाव 130-160 सेंटीमीटर तक रहता है और इनका वजन दो से तीन किलोग्राम होता है।

चंबल नदी में जलकाग

इन पक्षियों का प्रजनन काल दिसंबर और फरवरी के मध्य होता है। ये प्रवासी पक्षी पेरू, मिश्र, कोरिया और जापान से चंबल में पहुंचते हैं और यहां अपना आशियाना बनाते हैं।

चंबल नदी में पक्षी

निगरानी रखी जा रही है

कार्मोरेंट की दस्तक से चंबल गुलजार है। शिकार का अंदाज पर्यटकों को रोमांचित करता है। प्रजनन की संभावना को लेकर वन विभाग इनकी गतिविधि वाले इलाके की निगरानी कर रहा है। – आरके सिंह राठौड, रेंजर, चंबल सेंक्च्युरी, बाह

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